कौन सा पथ है? मार्ग में आकुल–अधीरातुर बटोही यों पुकारा कौन सा पथ है? ‘महाजन जिस ओर जाएं’ – शास्त्र हुँकारा ‘अंतरात्मा ले चले जिस ओर’ – बोला न्याय पंडित ‘साथ आओ सर्व–साधारण जनों के’ – क्रांति वाणी। पर महाजन–मार्ग–गमनोचित न संबल है‚ न रथ है‚ अन्तरात्मा अनिश्चय–संशय–ग्रसित‚ क्रांति–गति–अनुसरण–योग्या है न पद सामर्थ्य। कौन सा पथ है? मार्ग में आकुल–अधीरातुर …
Read More »नींद भी न आई (तुक्तक) – भारत भूषण अग्रवाल
नींद भी न आई, गिने भी न तारे गिनती ही भूल गए विरह के मारे रात भर जाग कर खूब गुणा भाग कर ज्यों ही याद आई, डूब गए थे तारे। यात्रियों के मना करने के बावजूद गये चलती ट्रेन से कूद गये पास न टिकट था टीटी भी विकत था बिस्तर तो रह ही गया, और रह अमरुद गये। …
Read More »मैं और मेरा पिट्ठू – भारत भूषण अग्रवाल
देह से अलग होकर भी मैं दो हूँ मेरे पेट में पिट्ठू है। जब मैं दफ्तर में साहब की घंटी पर उठता बैठता हूँ मेरा पिट्ठू नदी किनारे वंशी बजाता रहता है! जब मेरी नोटिंग कट–कुटकर रिटाइप होती है तब साप्ताहिक के मुखपृष्ठ पर मेरे पिट्ठू की तस्वीर छपती है! शाम को जब मैं बस के फुटबोर्ड पत टँगा–टँगा घर …
Read More »यह भी दिन बीत गया – रामदरश मिश्र
यह भी दिन बीत गया। पता नहीं जीवन का यह घड़ा एक बूंद भरा या कि एक बूंद रीत गया। उठा कहीं, गिरा कहीं, पाया कुछ खो दिया बंधा कहीं, खुला कहीं, हँसा कहीं रो दिया पता नहीं इन घड़ियों का हिया आँसू बन ढलका या कुल का बन दीप गया। इस तट लगने वाले कहीं और जा लगे किसके …
Read More »वह युग कब आएगा – बेधड़क बनारसी
जब पेड़ नहीं केवल शाखें होंगी जब चश्मे के ऊपर आंखें होंगी वह युग कब आएगा? जब पैदा होने पर मातमपुरसी होगी जब आदमी के ऊपर बैठी कुरसी होगी वह युग कब आएगा? जब धागा सुई को सियेगा जब सिगरेट आदमी को पियेगा वह युग कब आएगा? जब अकल कभी न पास फटकेगी जब नाक की जगह दुम लटकेगी वह …
Read More »विदा की घड़ी है – राजनारायण बिसरिया
विदा की घड़ी है कि ढप ढप ढपाढप बहे जा रहे ढोल के स्वर पवन में, वधू भी जतन से सजाई हुई–सी लजाई हुई–सी, पराई हुई–सी, खड़ी है सदन में, कि घूँघट छिपाए हुए चाँद को है न जग देख पाता मगर लाज ऐसी, कि पट ओट में भी पलक उठ न पाते, हृदय में जिसे कल्पना ने बसाया नयन …
Read More »हल्दीघाटी: युद्ध के लिये प्रयाण – श्याम नारायण पाण्डेय
डग डग डग रण के डंके मारू के साथ भयद बाजे, टप टप टप घोड़े कूद पड़े कट कट मतंग के रद बाजे कल कल कर उठी मुगल सेना किलकार उठी, ललकार उठी असि म्यान विवर से निकल तुरत अहि नागिन सी फुफकार उठी फर फर फर फर फर फहर उठा अकबर का अभिमानी निशान बढ़ चला कटक ले कर …
Read More »हल्दीघाटी: युद्ध – श्याम नारायण पाण्डेय
निर्बल बकरों से बाघ लड़े भिड़ गये सिंह मृग छौनों से घोड़े गिर पड़े, गिरे हाथी पैदल बिछ गये बिछौनों से हाथी से हाथी जूझ पड़े भिड़ गये सवार सवारों से घोड़े पर घोड़े टूट पड़े तलवार लड़ी तलवारों से हय रुण्ड गिरे, गज मुण्ड गिरे कट कट अवनी पर शुण्ड गिरे लड़ते लड़ते अरि झुण्ड गिरे भू पर हय …
Read More »स्त्री बनाम इस्तरी – जेमिनी हरियाणवी
एक दिन एक पड़ोस का छोरा मेरे तैं आके बोल्या ‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे द्यो’ मैं चुप्प वो फेर कहन लागा : ‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे द्यो ना?’ जब उसने यह कही दुबारा मैंने अपनी बीरबानी की तरफ कर्यौ इशारा : ‘ले जा भाई यो बैठ्यी।’ छोरा कुछ शरमाया‚ कुछ मुस्काया फिर कहण लागा : ‘नहीं चाचा जी‚ …
Read More »क्या कहा? – जेमिनी हरियाणवी
आप हैं आफत‚ बलाएं क्या कहा? आपको हम घर बुलाएं‚ क्या कहा? खा रही हैं देश को कुछ कुर्सियां‚ हम सदा धोखा ही खाएं‚ क्या कहा? ऐसे वैसे काम सारे तुम करो‚ ऐसी–तैसी हम कराएं‚ क्या कहा? आज मंहगाई चढ़ी सौ सीढ़ियां‚ चांद पर खिचड़ी पकाएं‚ क्या कहा? आप ताजा मौसमी का रस पियें‚ और हम कीमत चुकाएं‚ क्या कहा? …
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