बहुत प्यारे बन्धनों को आज झटका लग रहा है, टूट जायेंगे कि मुझ को आज खटका लग रहा है, आज आशाएं कभी भी चूर होने जा रही हैं, और कलियां बिन खिले कुछ चूर होने जा रही हैं, बिना इच्छा, मन बिना, आज हर बंधन बिना, इस दिशा से उस दिशा तक छूटने का सुख! टूटने का सुख। शरद का …
Read More »सुख का दुख – भवानी प्रसाद मिश्र
जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है, इस बात का मुझे बड़ा दुख नहीं है, क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, बड़े सुख आ जाएं घर में तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं। यहां एक बात इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि, बड़े सुखों को देखकर मेरे बच्चे सहम जाते हैं, मैंने बड़ी कोशिश की …
Read More »पहली बातें – भवानी प्रसाद मिश्र
अब क्या होगा इसे सोच कर, जी भारी करने में क्या है, जब वे चले गए हैं ओ मन, तब आँखें भरने में क्या है। जो होना था हुआ, अन्यथा करना सहज नहीं हो सकता, पहली बातें नहीं रहीं, तब रो रो कर मरने में क्या है? सूरज चला गया यदि बादल लाल लाल होते हैं तो क्या, लाई रात …
Read More »कुम्हलाये हैं फूल – ठाकुर गोपाल शरण सिंह
कुम्हलाये हैं फूल अभी–अभी तो खिल आये थे कुछ ही विकसित हो पाये थे वायु कहां से आकर इन पर डाल गयी है धूल कुम्हलाये हैं फूल जीवन की सुख–घड़ी न पायी भेंट न भ्रमरों से हो पायी निठुर–नियति कोमल शरीर में हूल गयी है शूल कुम्हलाये हैं फूल नहीं विश्व की पीड़ा जानी निज छवि देख हुए अभिमानी हँसमुख …
Read More »मुझे अकेला ही रहने दो – ठाकुर गोपाल शरण सिंह
मुझे अकेला ही रहने दो। रहने दो मुझको निर्जन में, काँटों को चुभने दो तन में, मैं न चाहता सुख जीवन में, करो न चिंता मेरी मन में, घोर यातना ही सहने दो, मुझे अकेला ही रहने दो। मैं न चाहता हार बनूं मैं, या कि प्रेम उपहार बनूं मैं, या कि शीश शृंगार बनूं मैं, मैं हूं फूल मुझे …
Read More »सागर के उर पर नाच नाच – ठाकुर गोपाल शरण सिंह
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान। जगती के मन को खींच खींच निज छवि के रस से सींच सींच जल कन्यांएं भोली अजान सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान। प्रातः समीर से हो अधीर छू कर पल पल उल्लसित तीर कुसुमावली सी पुलकित महान सागर के उर पर नाच नाच, करती …
Read More »पथ भूल न जाना – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
पथ भूल न जाना पथिक कहीं पथ में कांटे तो होंगे ही दुर्वादल सरिता सर होंगे सुंदर गिरि वन वापी होंगे सुंदरता की मृगतृष्णा में पथ भूल न जाना पथिक कहीं। जब कठिन कर्म पगडंडी पर राही का मन उन्मुख होगा जब सपने सब मिट जाएंगे कर्तव्य मार्ग सन्मुख होगा तब अपनी प्रथम विफलता में पथ भूल न जाना पथिक …
Read More »मिट्टी की महिमा – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
निर्मम कुम्हार की थापी से कितने रूपों में कुटी-पिटी, हर बार बिखेरी गई, किंतु मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी। आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए, यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो …
Read More »मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था। गति मिली मैं चल पड़ा पथ पर कहीं रुकना मना था, राह अनदेखी, अजाना देश संगी अनसुना था। चांद सूरज की तरह चलता न जाना रात दिन है, किस तरह हम तुम गए मिल आज भी कहना कठिन है, तन न आया मांगने अभिसार मन ही जुड़ गया था। देख …
Read More »हम पंछी उन्मुक्त गगन के – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएंगे, कनक–तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे। हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे–प्यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक–कटोरी की मैदा से। स्वर्ण–श्रृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले, बस सपनों में देख रहे हैं तरू की फुनगी पर के झूले। ऐसे थे अरमान कि उड़ते नील गगन …
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