Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

जिंदगानी मना ही लेती है – बालस्वरूप राही

हर किसी आँख में खुमार नहीं हर किसी रूप पर निखार नहीं सब के आँचल तो भर नहीं देता प्यार धनवान है उदार नहीं। सिसकियाँ भर रहा है सन्नाटा कोई आहट कोई पुकार नहीं क्यों न कर लूँ मैं बन्द दरवाज़े अब तो तेरा भी इंतजार नहीं। पर झरोखे की राह चुपके से चाँदनी इस तरह उतर आई जैसे दरपन …

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जीवन क्रम – बालस्वरूप राही

जो काम किया‚ वह काम नहीं आएगा इतिहास हमारा नाम न दोहराएगा जब से सपनों को बेच खरीदी सुविधा तब से ही मन में बनी हुई है दुविधा हम भी कुछ अनगढ़ता तराश सकते थे दो–चार साल समझौता अगर न करते। पहले तो हम को लगा कि हम भी कुछ हैं अस्तित्व नहीं है मिथ्या‚ हम सचमुच हैं पर अक्समात …

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राही के मुक्तक – बालस्वरूप राही

मेरे आँसू तो किसी सीप का मोती न बने साथ मेरे न कभी आँख किसी की रोई ज़िन्दगी है इसकी न शिकायत मुझको गम तो इसका है की हमदर्द नहीं है कोई। आप आएं हैं तो बैठें जरा, आराम करें सिलसिला बात का चलता है तो चल पड़ता है आप की याद में खोया हूँ, अभी चुप रहिये बात करने …

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इस तरह तो – बालस्वरूप राही

इस तरह तो By Balswarup Rahi

इस तरह तो दर्द घट सकता नहीं इस तरह तो वक्त कट सकता नहीं आस्तीनों से न आंसू पोंछिये और ही तदबीर कोई सोचिये। यह अकेलापन, अंधेरा, यह उदासी, यह घुटन द्वार तो है बंद, भीतर किस तरह झांके किरण। बंद दरवाजे ज़रा से खोलिये रोशनी के साथ हंसिए बोलिये मौन पीले–पात सा झर जाएगा तो हृदय का घाव खुद …

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व्यक्तित्व का मध्यांतर – गिरिजा कुमार माथुर

लो आ पहुँचा सूरज के चक्रों का उतार रह गई अधूरी धूप उम्र के आँगन में हो गया चढ़ावा मंद वर्ण–अंगार थके कुछ फूल रह गए शेष समय के दामन में। खंडित लक्ष्यों के बेकल साये ठहर गए थक गये पराजित यत्नों के अन–रुके चरण मध्याह्न बिना आये पियराने लगी धूप कुम्हलाने लगा उमर का सूरजमुखी बदन। वह बाँझ अग्नि …

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न्यूयार्क की एक शाम – गिरिजा कुमार माथुर

देश काल तजकर मैं आया भूमि सिंधु के पार सलोनी उस मिट्टी का परस छुट गया जैसे तेरा प्यार सलोनी। दुनिया एक मिट गई, टूटे नया खिलौना ज्यों मिट्टी का आँसू की सी बूँद बन गया मोती का संसार, सलोनी। स्याह सिंधु की इस रेखा पर ये तिलिस्म–दुनिया झिलमिल है हुमक उमगती याद फेन–सी छाती में हर बार, सलोनी। सभी …

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मेरे सपने बहुत नहीं हैं – गिरिजा कुमार माथुर

मेरे सपने बहुत नहीं हैं छोटी सी अपनी दुनिया हो, दो उजले–उजले से कमरे जगने को–सोने को, मोती सी हों चुनी किताबें शीतल जल से भरे सुनहले प्यालों जैसी ठण्डी खिड़की से बाहर धीरे हँसती हो तितली–सी रंगीन बगीची छोटा लॉन स्वीट–पी जैसा, मौलसरी की बिखरी छितरी छाँहों डूबा ­­ हम हों, वे हों काव्य और संगीत–सिंधु में डूबे–डूबे प्यार …

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कौन थकान हरे जीवन की – गिरिजा कुमार माथुर

कौन थकान हरे जीवन की? बीत गया संगीत प्यार का‚ रूठ गई कविता भी मन की। वंशी में अब नींद भरी है‚ स्वर पर पीत सांझ उतरी है बुझती जाती गूंज आखिरी — इस उदास बन पथ के ऊपर पतझर की छाया गहरी है‚ अब सपनों में शेष रह गई सुधियां उस चंदन के बन की। रात हुई पंछी घर …

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घर: दो कविताएं – निदा फ़ाज़ली

अहतियात घर से बाहर जब भी जाओ तो ज्यादा से ज्यादा रात तक लौट आओ जो कई दिन तक ग़ायब रह कर वापस आता है वो उम्र भर पछताता है घर अपनी जगह छोड़ कर चला जाता है। लगाव तुम जहाँ भी रहो उसे घर की तरह सजाते रहो गुलदान में फूल सजाते रहो दीवारों पर रंग चढ़ाते रहो सजे …

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पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला – महादेवी वर्मा

घेर ले छाया प्रमा बन आज कज्जल अश्रुओं में, रिम झिमा ले यह घिरा घन और होंगे नयन सूखे तिल बुझे औ पलक रूखे आर्द्र चितवन में यहां शत विद्युतों में दीप खेला पंथ होने दो अपरिचित, प्राण रहने दो अकेला। अन्य होंगे चरण हारे और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे दुखव्रती निर्माण उन्मद यह अमरता नापते …

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