मैं पीला–पीला सा प्रकाश‚ तू भकाभक्क दिन–सा उजास। मैं आम‚ पीलिया का मरीज़‚ तू गोरी चिट्टी मेम ख़ास। मैं खर–पतवार अवांछित–सा‚ तू पूजा की है दूब सखी! मैं बल्ब और तू ट्यूब सखी! तेरी–मेरी ना समता कुछ‚ तेरे आगे ना जमता कुछ। मैं तो साधारण–सा लट्टू‚ मुझमे ज्यादा ना क्षमता कुछ। तेरी तो दीवानी दुनिया‚ मुझसे सब जाते ऊब सखी। …
Read More »कुटी चली परदेस कमाने – शैलेंद्र सिंह
कुटी चली परदेस कमाने घर के बैल बिकाने चमक दमक में भूल गई है अपने ताने बाने। राड बल्ब के आगे फीके दीपक के उजियारे काट रहे हैं फ़ुटपाथों पर अपने दिन बेचारे। कोलतार सड़कों पर चिड़िया ढूंढ रही है दाने। एक एक रोटी के बदले सौ सौ धक्के खाये किंतु सुबह के भूले पंछी लौट नहीं घर आये। काली …
Read More »खेल – निदा फ़ाज़ली
आओ कहीं से थोड़ी–सी मिट्टी लाएँ मिट्टी को बादल में गूँधे चाक चलाएँ नए–नए आकार बनाएँ किसी के सर पे चुटिया रख दें माथे ऊपर तिलक सजाएँ… किसी के छोटे से चेहरे पर मोटी सी दाढ़ी फैलाएँ कुछ दिन इन से दिल बहलाएँ और यह जब मैले हो जाएँ दाढ़ी चोटी तिलक सभी को तोड़–फोड़ के गड–मड कर दें मिली–जुली …
Read More »काला चश्मा – बरसाने लाल चतुर्वेदी
कारे रंग वारो प्यारी चस्मा हटाई नैकि‚ देखों तेरे नैन‚ नैन अपनी मिलाइकैं। तेरे नैन देखिबे की भौत अभिलाष मोहि‚ सुनिलै अरज मेरी नेकि चित लाइकैं। कमल–से‚ कि मीन–से‚ कि खांजन–से नैन तेरे एक हैं कि दोनो‚ नैकि देखों निहारिकै। भैम भयो रानी कहूं नाहिं ऐंचातानी तू मोकों दिखाइ नैकि चस्मा हटाइकै। ~ बरसाने लाल चतुर्वेदी
Read More »हो गई है पीर पर्वत सी – दुष्यंत कुमार
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चहिए‚ इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये। आज यह दीवार‚ परदों की तरह हिलने लगी‚ शर्त लेकिन थी कि यह बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर‚ हर गली में‚ हर नगर‚ हर गांव में‚ हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं‚ मेरी कोशिश है कि …
Read More »बहुत मुसकराई होगी – राजीव रोहित
पढ़ कर दर्दीला अफसाना हाल ही में तुम बहुत मुसकराई हो कुछ देर रोने के बाद यादों के आशियाने में छिपे झरोखे को ढूंढ़ पाने के दौरां जहां बोझल होती थीं पलकें चेहरा तुम्हारा चूमती थीं सुबह की देख कर किरणें चांद के ढल जाने के बाद तुम बहुत मुसकराई होगी कुछ देर रोने के बाद। ~ राजीव रोहित
Read More »हौसले तेरे हैं बुलंद – आर पी मिश्रा ‘परिमल’
कैसे ये मासूम पाखी तूफान से टकराएंगे आंधियों में किस तरह लौट कर घर आएंगे इन की हिम्मत में है जोखिम से खेलना जोखिमों से खेलते एक दिन मर जाएंगे गमलों में ये बदबू सी क्यों आने लगी बदल दो पानी वरना पेड़ सब मर जाएंगे दूध सांपों को क्या पिलाएं इस साल बांबियों में नहीं, संसद की गली मुड़ …
Read More »मीत तुम्हारी वो बातें – डॉक्टर पारुल तोमर
हंसी रेशमी अधरों वाली सजीसंवरी थी प्रातें बिसरा मन का सूनापन पाई थीं सतरंगी सौगातें तनहा सी एक दुपहरी में आए थे बादल मंडराते भर अंक में की थी तुम ने स्नेह की निर्झर बरसातें ढलती थी सांझ सुरमई पलपल प्यार को पाते बातें करते कट जाती थीं महकी चहकी वो रातें किस से कहते – कैसे कहते मीत तुम्हारी …
Read More »तेरी याद – बलविंदर ‘बालम’
दर्द की कीमत चुकाई जाएगी याद तेरी जब भी पाई जाएगी चैन फिर उड़ने लगेगा प्यार में नींद आंखों से चुराई जाएगी दूरियां उस को समझ आ जाएंगी जब मेरी अरथी उठाई जाएगी वो मुझ से मिलने का वादा तो करे पथ पर चांदनी बिछाई जाएगी उलटा दर्पण उस ने सीधा कर दिया अब हकीकत ही दिखाई जाएगी रूठने का …
Read More »प्यार की बात करो – शंभु शरण मंडल
जब कभी इश्क प्यार की बात करो न कभी जीत हार की बात करो दो घड़ी ये मिलन की हमारे लिए कीमती हैं दीदार की बात करो डर गए तो गए इस जमाने से हम अब चलो आर पार की बात करो संग मिल के सनम खाई थी जो कसम वक्त है इकरार का बात करो ~ शंभु शरण मंडल
Read More »