Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

नाश देवता – गजानन माधव मुक्तिबोध

नाश देवता – गजानन माधव मुक्तिबोध

घोर धनुर्धर‚ बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा‚ तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा। हिमवत‚ जड़‚ निःस्पंद हृदय के अंधकार में जीवन भय है। तेरे तीक्षण बाण की नोकों पर जीवन संचार करेगा। तेरे क्रुद्ध वचन‚ बाणों की गति से अंतर में उतरेंगे‚ तेरे क्षुब्ध हृदय के शोले‚ उर ही पीड़ा में ठहरेंगे। कोपित तेरा अधर संस्फुरण‚ …

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माता की मृत्यु पर – प्रभाकर माचवे

माता की मृत्यु पर – प्रभाकर माचवे

माता! एक कलख है मन में‚ अंत समय में देख न पाया आत्मकीर के उड़ जाने पर बची शून्य पिंजर सी काया। और देख कर भी क्या करता? सब विज्ञान जहां पर हारे‚ उस देहली को पार कर गयी‚ ठिठके हैं हम ‘मरण–दुआरे’। जीवन में कितने दुख झेले‚ तुमने कैसे जनम बिताया! नहीं एक सिसकी भी निकली‚ रस दे कर …

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लो वही हुआ – दिनेश सिंह

लो वही हुआ – दिनेश सिंह

लो वही हुआ जिसका था डर‚ ना रही नदी‚ ना रही लहर। सूरज की किरण दहाड़ गई गरमी हर देह उधाड़ गई‚ उठ गया बवंडर‚ धूल हवा में अपना झंडाा गाड़ गई गौरैया हांफ रही डर कर‚ ना रही नदी‚ ना रही लहर। हर ओर उमस के चर्चे हैं‚ बिजली पंखों के खरचे हैं‚ बूढ़े महुए के हाथों से उड़ …

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टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी – वंदना गोयल

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी - वंदना गोयल

इस टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी को हंस के मैं पी रही हूं किस्तों में मिल रही है किस्तों में जी रही हूं कभी आंखों में छिपा रह गया था इक टुकड़ा बादल बरसते उन अश्कों को दिनरात मैं पी रही हूं अक्स टूटते बिखरते आईनों से बाहर निकल आते हैं मेरा समय ही अच्छा नहीं बस जज्बातों में जी रही हूं …

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कल और आज – नागार्जुन

कल और आज – नागार्जुन

अभी कल तक गालियां देते थे तुम्हें हताश खेतिहर, अभी कल तक धूल में नहाते थे गौरैयों के झुंड, अभी कल तक पथराई हुई थी धनहर खेतों की माटी, अभी कल तक दुबके पड़े थे मेंढक, उदास बदतंग था आसमान! और आज ऊपर ही ऊपर तन गए हैं तुम्हारे तंबू, और आज छमका रही है पावस रानी बूंदा बूंदियों की …

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अंधा युग – धर्मवीर भारती

अंधा युग - धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती का काव्य नाटक अंधा युग भारतीय रंगमंच का एक महत्वपूर्ण नाटक है। महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पर आधारित यह् नाटक चार दशक से भारत की प्रत्येक भाषा मै मन्चित हो रहा है। इब्राहीम अलकाजी, रतन थियम, अरविन्द गौड़, राम गोपाल बजाज, मोहन महर्षि, एम के रैना और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशको ने इसका मन्चन किया है …

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हम आजाद हैं – केदारनाथ ‘सविता’

हम आजाद हैं - केदारनाथ ‘सविता’

हम आजाद हैं कहीं भी जा सकते हैं कुछ भी कर सकते हैं कहीं भी थूक सकते हैं कुछ भी फेंक सकते हैं हम आजाद हैं घर का कूड़ा छत पर से किसी पर भी फेंक सकते हैं गंगा की सफाई योजना की कर के सफाई हम किसी भी पवित्र नदी में घर की गंदगी बहा सकते हैं अरे, कहां …

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नन्हा पौधा – वेंकटेश चन्द्र पाण्डेय

नन्हा पौधा - वेंकटेश चन्द्र पाण्डेय

एक बीज था गया बहुत ही गहराई में बोया। उसी बीज के अंतर में था नन्हा पाौधा सोया। उस पौधे को मंद पवन ने आकर पास जगाया। नन्हीं नन्हीं बूंदों ने फिर उस पर जल बरसाया। सूरज बोला “प्यारे पौधे निंद्रा दूर भगाओ। अलसाई आंखें खोलो तुम उठ कर बाहर आओ। आंख खोल कर नन्हें पौधे ने तब ली अंगड़ाई। …

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नदी के पार से मुझको बुलाओ मत – राजनारायण बिसारिया

नदी के पार से मुझको बुलाओ मत - राजनारायण बिसारिया

नदी के पार से मुझको बुलाओ मत! हमारे बीच में विस्तार है जल का कि तुम गहराइयों को भूल जाओ मत! कि तुम हो एक तट पर एक पर मैं हूं बहुत हैरान दूरी देख कर मैं हूं‚ निगाहें हैं तुम्हारी पास तक आतीं कि बाहें हैं स्वयं मेरी फड़क जातीं! गगन में ऊंघती तारों भरी महफिल न रुकती है‚ …

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लजीली रात आई है – चिरंजीत

लजीली रात आई है - चिरंजीत

सजोले चांद को लेकर‚ नशीली रात आई है। नशीली रात आई है। बरसती चांदनी चमचम‚ थिरकती रागिनी छम छम‚ लहरती रूप की बिजली‚ रजत बरसात आई है। नशीली रात आई है। जले मधु रूप की बाती‚ दुल्हनिया रूप मदमाती‚ मिलन के मधुर सपनों की‚ सजी बारात आई है। नशीली रात आई है। सजी है दूधिया राहें‚ जगी उन्मादनी चाहें‚ रही …

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