Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला है लहरों का यौवन मचला है आज हृदय में और सिन्धु में साथ उठा है ज्वार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलो इस अंधड में साहस तोलो कभी-कभी मिलता जीवन में तूफानों का प्यार तूफानों की ओर घुमा दो …

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समोसा – ओम प्रकाश बजाज

समोसा - ओम प्रकाश बजाज

चटनी के साथ गर्म- गर्म समोसा, चाय के साथ परोसा जाता है। बच्चा, बड़ा, मर्द, औरत हर कोई बड़े चाओ से खाता है, न जाने कब किसने समोसे का, पहली बार अविष्कार किया। बाहरी आवरण बनाया समोसा भरा, तेल में तल कर समोसा तैयार किया। तब से अब तक अनगिनत पीढ़िया, इसका आनदं लेती आई है। कही-कही इसी पकवान को, …

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मज़ा ही कुछ और है – ओम व्यास ओम

मज़ा ही कुछ और है – ओम व्यास ओम

दांतों से नाखून काटने का छोटों को जबरदस्ती डांटने का पैसे वालों को गाली बकने का मूंगफली के ठेले से मूंगफली चखने का कुर्सी पे बैठ कर कान में पैन डालने का और डीटीसी की बस की सीट में से स्पंज निकालने का मज़ा ही कुछ और है एक ही खूंटी पर ढेर सारे कपड़े टांगने का नये साल पर …

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पिता – ओम व्यास ओम

पिता - ओम व्यास ओम

पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है पिता उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है पिता कभी कुछ खट्टा, कभी खारा है पिता पालन है, पोषण है, पारिवारि का अनुशासन है पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान …

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लौट आओ – सोम ठाकुर

लौट आओ - सोम ठाकुर

लौट आओ मांग के सिंदूर की सौगंध तुमको नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है। आज बिसराकर तुम्हें कितना दुखी मन‚ यह कहा जाता नहीं है मौन रहना चाहता‚ पर बिन कहे भी अब रहा जाता नहीं है मीत अपनों से बिगड़ती है‚ बुरा क्यों मानती हो लौट आओ प्राण! पहले प्यार की सौगंध तुमको प्रीत का बचपन निमंत्रण दे …

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कोई और छाँव देखेंगे – ताराप्रकाश जोशी

कोई और छाँव देखेंगे – ताराप्रकाश जोशी

कोई और छाँव देखेंगे। लाभ घाटों की नगरी तज चल दे और गाँव देखेंगे। सुबह सुबह के सपने लेकर हाटों हाटों खाए फेरे। ज्यों कोई भोला बनजारा पहुचे कहीं ठगों के डेरे। इस मंडी में ओछे सौदे कोई और भाव देखेंगे। भरी दुपहरी गाँठ गँवाई जिससे पूछा बात बनाई। जैसी किसी ग्रामवासी की महा नगर ने हँसी उड़ाई। ठौर ठिकाने …

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लगाव – निदा फ़ाज़ली

लगाव - निदा फ़ाज़ली

तुम जहाँ भी रहो उसे घर की तरह सजाते रहो गुलदान में फूल सजाते रहो दीवारों पर रंग चढ़ाते रहो सजे बजे घर में हाथ पाँव उग आते हैं फिर तुम कहीं जाओ भले ही अपने आप को भूल जाओ तुम्हारा घर तुम्हें ढूंढ कर वापस ले आएगा ~ निदा फ़ाज़ली

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अहतियात – निदा फ़ाज़ली

अहतियात - निदा फ़ाज़ली

घर से बाहर जब भी जाओ तो ज्यादा से ज्यादा रात तक लौट आओ जो कई दिन तक ग़ायब रह कर वापस आता है वो उम्र भर पछताता है घर अपनी जगह छोड़ कर चला जाता है। ~ निदा फ़ाज़ली

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गरीबों की जवानी – देवी प्रसाद शुक्ल ‘राही’

गरीबों की जवानी - देवीप्रसाद शुक्ल राही

रूप से कह दो कि देखें दूसरा घर, मैं गरीबों की जवानी हूँ, मुझे फुर्सत नहीं है। बचपने में मुश्किल की गोद में पलती रही मैं धूंए की चादर लपेटे, हर घड़ी जलती रही मैं ज्योति की दुल्हन बिठाए, जिंदगी की पालकी में सांस की पगडंडियों पर रात–दिन चलती रही मैं वे खरीदें स्वपन, जिनकी आँख पर सोना चढ़ा हो …

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फूल और कली – उदय प्रताप सिंह

फूल और कली - उदय प्रताप सिंह

फूल से बोली कली‚ क्यों व्यस्त मुरझाने में है फायदा क्या गंध औ’ मकरंद बिखराने में है तू स्वयं को बांटता है‚ जिस घड़ी से तू खिला किंतु इस उपकार के बदले में तुझको क्या मिला देख मुझको‚ सब मेरी खुशबू मुझी में बंद है मेरी सुंदरता है अक्षय‚ अनछुआ मकरंद है मैं किसी लोलुप भ्रमर के जाल में फंसती …

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