Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

भारतीय समाज – भवानी प्रसाद मिश्र

भारतीय समाज - भवानी प्रसाद मिश्र

कहते हैं इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को इतनी ज्यादा बारिश की याद नहीं है। कहते हैं हमारे घर के सामने की नालियां इससे पहले इतनी कभी नहीं बहीं न तुम्हारे गांव की बावली का स्तर कभी इतना ऊंचा उठा न खाइयां कभी ऐसी भरीं, न खन्दक न नरबदा कभी इतनी …

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भर दिया जाम – बालस्वरूप राही

भर दिया जाम - बालस्वरूप राही

भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे! वैसे तो मैं कब से दुनियाँ से ऊब चुका, मेरा जीवन दुख के सागर में डूब चुका, पर प्राण, आज सिरहाने तुम आ बैठीं तो– मैं सोच रहा हूँ हाय मरूं तो भी कैसे! मंजिल अनजानी पथ की भी पहचान नहीं, है थकी थकी–सी …

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भंगुर पात्रता – भवानी प्रसाद मिश्र

भंगुर पात्रता - भवानी प्रसाद मिश्र

मैं नहीं जानता था कि तुम ऐसा करोगे बार बार खाली करके मुझे बार बार भरोगे और फिर रख दोगे चलते वक्त लापरवाही से चाहे जहाँ। ऐसा कहाँ कहा था तुमने खुश हुआ था मैं तुम्हारा पात्र बन कर। और खुशी मुझे मिली ही नहीं टिकी तक मुझ में तुमने मुझे हाथों में लिया और मेरे माध्यम से अपने मन …

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भैंसागाड़ी – भगवती चरण वर्मा

भैंसागाड़ी - भगवती चरण वर्मा

चरमर चरमर चूं चरर–मरर जा रही चली भैंसागाड़ी! गति के पागलपन से प्रेरित चलती रहती संसृति महान्‚ सागर पर चलते है जहाज़‚ अंबर पर चलते वायुयान भूतल के कोने–कोने में रेलों ट्रामों का जाल बिछा‚ हैं दौड़ रहीं मोटरें–बसें लेकर मानव का वृहद ज्ञान। पर इस प्रदेश में जहां नहीं उच्छ्वास‚ भावनाएं‚ चाहें‚ वे भूखे‚ अधखाये किसान भर रहे जहां …

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भेड़ियों के ढंग – उदयभानु ‘हंस’

भेड़ियों के ढंग By Udaybhanu Hans

देखिये कैसे बदलती आज दुनिया रंग आदमी की शक्ल, सूरत, आचरण में भेड़ियों के ढंग। द्रौपदी फिर लुट रही है दिन दहाड़े मौन पांडव देखते है आंख फाड़े हो गया है सत्य अंधा, न्याय बहरा, और धर्म अपंग। नीव पर ही तो शिखर का रथ चलेगा जड़ नहीं तो तरु भला कैसे फलेगा देखना आकाश में कब तक उड़ेगा, डोर–हीन पतंग। …

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बीते दिन वर्ष – विद्यासागर वर्मा

बीते दिन वर्ष - विद्यासागर वर्मा

बीते दिन वर्ष! रोज जन्म लेती‚ शंकाओं के रास्ते घर से दफ्तर की दूरी को नापते बीते दिन दिन करके‚ वर्ष कई वर्ष! आंखों को पथराती तारकोल की सड़कें‚ बांध गई खंडित गति थके हुए पाँवों में‚ अर्थ भरे प्रश्न उगे माथे की शिकनों पर‚ हर उत्तर डूब गया खोखली उछासों में। दीमक की चिंताएँ‚ चाट गई जर्जर तन‚ बैठा …

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सारे दिन पढ़ते अख़बार – माहेश्वर तिवारी

सारे दिन पढ़ते अख़बार - माहेश्वर तिवारी

सारे दिन पढ़ते अख़बार; बीत गया है फिर इतवार। गमलों में पड़ा नहीं पानी पढ़ी नहीं गई संत-वाणी दिन गुज़रा बिलकुल बेकार सारे दिन पढ़ते अख़बार। पुँछी नहीं पत्रों की गर्द खिड़की-दरवाज़े बेपर्द कोशिश करते कितनी बार सारे दिन पढ़ते अख़बार। मुन्ने का तुतलाता गीत- अनसुना गया बिल्कुल बीत कई बार करके स्वीकार सारे दिन पढ़ते अख़बार बीत गया है …

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बेजगह – अनामिका

बेजगह - अनामिका

अपनी जगह से गिर कर कहीं के नहीं रहते केश, औरतें और नाखून अन्वय करते थे किसी श्लोक का ऐसे हमारे संस्कृत टीचर और डर के मारे जम जाती थीं हम लड़कियाँ अपनी जगह पर। जगह? जगह क्या होती है? यह, वैसे, जान लिया था हमने अपनी पहली कक्षा में ही याद था हमें एक–एक अक्षर आरंभिक पाठों का “राम …

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सच झूठ – ओमप्रकाश बजाज

सच झूठ - ओमप्रकाश बजाज

सच झूठ का फर्क पहचानो झूठे का कहा कभी न मानो। झूठे की संगत न करना, झूठे से सदा बचकर रहना। मित्रता झूठे से न करना, झूठे का कभी साथ न देना। झूठ कभी भी चुप न पाता, देर-सवेर पकड़ा ही जाता। सच्चे का होता सदा बोलबाला, झूठे का मुँह होता काला। ~ ओमप्रकाश बजाज

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चंदा ओ चंदा – ओम प्रकाश बजाज

चंदा ओ चंदा – ओम प्रकाश बजाज

चंदा ओ चंदा तू है कितना प्यारा, सबकी आखों का है तू दुलारा, चंदा ओ चंदा…. तू तो है नित न्यारा, रोशन करता है रत जग सारा, चंदा ओ चंदा…. बताता कोई तुझे मामा हमारा, हम चाहें सिर्फ तुझे अपना बनाना, चंदा ओ चंदा…. होता है जब उपवास माँ का, तब क्यों इतनी देर लगाता, चंदा ओ चंदा…. तू है …

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