समाज से मेरा रिश्ता मेरी पत्नी के माध्यम से है सीधा मेरा कोई रिश्ता बन नहीं पाया है सब्जी वाला दूध वाला अखबार वाला धोबी हो या माली सबकी मेरी पत्नी से बातचीत होती रहती है बस मुझे ही समझ नहीं आता कि इन से बात करूँ तो क्या करूँ पर मेरी पत्नी सहज भाव से इन सब से खूब …
Read More »तुक्तक – बरसाने लाल चतुर्वेदी
रेडियो पर काम करते मोहनलाल काले साप्ताहिक संपादक उनके थे साले काले के लेख छपते साले के गीत गबते दोनों की तिजोरियों में अलीगढ़ के ताले भाषण देने खड़े हुए मटरूमल लाला दिमाग़ पर न जाने क्यों पड़ गया था ताला घर से याद करके स्पीच ख़ूब रटके लेकिन आके मंच पर जपने लगे माला साले की शादी में गए …
Read More »बस इतना सा समाचार है – अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’
जितना अधिक पचाया जिसने उतनी ही छोटी डकार है बस इतना सा समाचार है। निर्धन देश धनी रखवाले भाई‚ चाचा‚ बीवी‚ साले सब ने मिल कर डाके डाले शेष बचा सो राम हवाले फिर भी सांस ले रहा अब तक कोई दैवी चमत्कार है बस इतना सा समाचार है। चादर कितनी फटी पुरानी पैबंदों में खींची–तानी लाठी की चलती मनमानी …
Read More »बरसों के बाद – गिरिजा कुमार माथुर
बरसों के बाद कभी हम–तुम यदि मिलें कहीं देखें कुछ परिचित–से लेकिन पहिचाने ना। याद भी न आये नाम रूप, रंग, काम, धाम सोचें यह संभव है पर, मन में माने ना। हो न याद, एक बार आया तूफान ज्वार बंद, मिटे पृष्ठों को पढ़ने की ठाने ना। बातें जो साथ हुईं बातों के साथ गईं आँखें जो मिली रहीं उनको भी जानें ना। ∼ गिरिजा …
Read More »बांसुरी दिन की – माहेश्वर तिवारी
होंठ पर रख लो उठा कर बांसुरी दिन की देर तक बजते रहें ये नदी, जंगल, खेत कंपकपी पहने खड़े हों दूब, नरकुल, बेंत पहाड़ों की हथेली पर धूप हो मन की। धूप का वातावरण हो नयी कोंपल–सा गति बन कर गुनगुनाये ख़ुरदुरी भाषा खुले वत्सल हवाओं की दूधिया खिड़की। ∼ माहेश्वर तिवारी
Read More »बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं – दुष्यंत कुमार
बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं, और नदियों के किनारे घर बने हैं। चीड़-वन में आंधियों की बात मत कर, इन दरख्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं। इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं, जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं। आपके क़ालीन देखेंगे किसी दिन, इस समय तो पांव कीचड़ में सने हैं। जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में, …
Read More »बातें – धर्मवीर भारती
सपनों में डूब–से स्वर में जब तुम कुछ भी कहती हो मन जैसे ताज़े फूलों के झरनों में घुल सा जाता है जैसे गंधर्वों की नगरी में गीतों से चंदन का जादू–दरवाज़ा खुल जाता है बातों पर बातें, ज्यों जूही के फूलों पर जूही के फूलों की परतें जम जाती हैं मंत्रों में बंध जाती हैं ज्यों दोनों उम्रें दिन …
Read More »बात बात में – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे क्षण भी आ जाते हैं जब हम अपने से ही अपनी–बीती कहने लग जाते हैं। तन खोया–खोया–सा लगता‚ मन उर्वर–सा हो जाता है कुछ खोया–सा मिल जाता है‚ कुछ मिला हुआ खो जाता है। लगता‚ सुख दुख की स्मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूं यों ही सूने में अंतर के कुछ भाव–अभाव सुना …
Read More »बाल पत्रिकाएं – ओम प्रकाश बजाज
बाल पत्रिकाओं में भी रूचि दिखाओ, खाली समय में इनका लाभ उठाओ। अपनी पसंद की बाल पत्रिकाएं, बुकस्टाल से लो या सीधे मंगाओं। कविताएं, कहानियां, लेखों, चुटकलों से, ज्ञान बढ़ाओ, मनोरंजन पाओ। इनमें छुपी रचनाएं देख – समझ कर, तुम भी साहस करो और कलम उठाओ। अपने मित्रों से अदला – बदली करके, कम खर्च में अधिक पत्रिकाएं जुटाओ। ज्ञान …
Read More »बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु! पूछेगा सारा गाँव, बन्धु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, कँपते थे दोनों पाँव बन्धु! बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु! पूछेगा सारा गाँव, बन्धु! वह हँसी बहुत कुछ कहती थी, फिर भी अपने में रहती थी, सबकी सुनती थी, सहती थी, देती थी …
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