सोचो ज़रा यदि सूरज दादा किसी दिन ड्यूटी पर न आते। बहाना बना कर तुम्हारी तरह वह भी छुट्टी मनाते। दिन में भी अन्धेरा छा जाता हाथ को हाथ सुझाई न देता। संसार के सारे काम रुक जाते समय का भी तो भान न होता। अपनी ड्यूटी के पक्के सारे सूरज चाँद और तारे। इनसे सीखो तुम भी निभाना नियमपूर्वक …
Read More »उफ़ यह प्यास – ओम प्रकाश बजाज
भीषड़ गर्मी के इस मौसम में बार – बार लगती है प्यास, चाहे कितना पी लें पानी नहीं बुझती है प्यास, गला सूख-सूख जाता है जितना भी तर करते हैं, लस्सी – शर्बत – आम का पन्ना चाहे जितना पीते हैं, जलजीरा और सत्तू का भी बहुत लोग सेवन करते हैं, कुल्फी – आइसक्रीम – बर्फ का गोला बच्चे अधिक …
Read More »तकिया (पिलो) – ओम प्रकाश बजाज
बिस्तर का हिस्सा है तकिया, सिरहाना भी कहलाता तकिया। अपना-अपना तकिया लेना, उस पर गिलाफ अवश्य चढ़ाना। मैले तकिये पर न सोना, नियम से उसका खोल धुलवाना। बहुत ऊंचा तकिया न लेना, पिल्लो-फाइट भी न करना। पीठ टिकाने के काम आता, गाव तकिया वह कहलाता। अच्छे-अच्छे शेर और स्वीट ड्रीम्स, गिलाफों पर काढ़े जाते थे। मेहमानों के बिस्तर में पहले, …
Read More »अपनापन – बुद्धिसेन शर्मा
चिलचिलाती धूप में सावन कहाँ से आ गया आप की आँखों में अपनापन कहाँ से आ गया। जब वो रोया फूट कर मोती बरसने लग गये पास एक निर्धन के इतना धन कहाँ से आ गया। दूसरों के ऐब गिनवाने का जिसको शौक था आज उसके हाथ में दरपन कहाँ से आ गया। मैं कभी गुज़रा नहीं दुनियाँ तेरे बाज़ार …
Read More »अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है – हरिवंश राय बच्चन
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है? उठी ऐसी घटा नभ में छिपे सब चाँद और तारे, उठा तूफ़ान वह नभ में गए बुझ दीप भी सारे, मगर इस रात में भी लौ लगाये कौन बैठा है? अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है? … गगन में गर्व से उठ उठ गगन में गर्व से घिर घिर, गरज …
Read More »अंतहीन यात्री – धर्मवीर भारती
विदा देती एक दुबली बाँह-सी यह मेड़ अंधेरे में छूटते चुपचाप बूढ़े पेड़ ख़त्म होने को ना आएगी कभी क्या एक उजड़ी माँग-सी यह धूल धूसर राह? एक दिन क्या मुझी को पी जाएगी यह सफ़र की प्यास, अबुझ, अथाह? क्या यही सब साथ मेरे जाएँगे ऊँघते कस्बे, पुराने पुल? पाँव में लिपटी हुई यह धनुष-सी दुहरी नदी बींध देगी …
Read More »कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना – आनंद बक्षी
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना कुछ रीत जगत की ऐसी है, हर एक सुबह की शाम हुई तू कौन है, तेरा नाम है क्या, सीता भी यहाँ बदनाम हुई फिर क्यूँ संसार की बातों से, भीग गये …
Read More »वो तेरे प्यार का ग़म, एक बहाना था सनम – आनंद बक्षी
वो तेरे प्यार का ग़म, एक बहाना था सनम अपनी क़िस्मत ही कुछ ऐसी थी के दिल टूट गया ये ना होता तो कोई दूसरा ग़म होना था मैं तो वो हूँ जिसे हर हाल में बस रोना था मुस्कुराता भी अगर, तो छलक जाती नज़र अपनी क़िस्मत ही कुछ ऐसी थी के दिल टूट गया… वरना क्या बात है …
Read More »आल्हाखंड: संयोगिता का अपहरण
आगे आगे पृथ्वीराज हैं‚ पाछे चले कनौजीराय। कबहुँक डोला जैयचंद छीनैं‚ कबहुँक पिरथी लेय छिनाय। जौन शूर छीनै डोला को‚ राखैं पांच कोस पर जाय। कोस पचासक डोला बढिगौ‚ बहुतक क्षत्री गये नशाय। लड़त भिड़त दोनों दल आवैं‚ पहुँचे सोरौं के मैदान। राजा जयचंद ने ललकारो‚ सुन लो पृथ्वीराज चौहान। डोला लै जइ हौ चोरी से‚ तुम्हरो चोर कहै है …
Read More »वक़्त नहीं
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में, पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं। दिन रात दौड़ती दुनिया में, ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं। सारे रिश्तों को तो हम मार चुके, अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं। सारे नाम मोबाइल में हैं, पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं। गैरों की क्या बात करें, जब अपनों के लिये ही …
Read More »