आज धरती पर झुका आकाश तो अच्छा लगा, सिर किये ऊँचा खड़ी है घास तो अच्छा लगा। आज फिर लौटा सलामत राम कोई अवध में, हो गया पूरा कड़ा बनवास तो अच्छा लगा। था पढ़ाया माँज कर बरतन घरों में रात दिन, हो गया बुधिया का बेटा पास तो अच्छा लगा। लोग यों तो रोज ही आते रहे, जाते रहे, …
Read More »अच्छा अनुभव – भवानी प्रसाद मिश्र
मेरे बहुत पास मृत्यु का सुवास देह पर उस का स्पर्श मधुर ही कहूँगा उस का स्वर कानों में भीतर मगर प्राणों में जीवन की लय तरंगित और उद्दाम किनारों में काम के बँधा प्रवाह नाम का एक दृश्य सुबह का एक दृश्य शाम का दोनों में क्षितिज पर सूरज की लाली दोनों में धरती पर छाया घनी और लम्बी …
Read More »कांच का खिलौना – आत्म प्रकाश शुक्ल
माटी का पलंग मिला राख का बिछौना। जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना। एक ही दुकान में सजे हैं सब खिलौने। खोटे–खरे, भले–बुरे, सांवरे सलोने। कुछ दिन तक दिखे सभी सुंदर चमकीले। उड़े रंग, तिरे अंग, हो गये घिनौने। जैसे–जैसे बड़ा हुआ होता गया बौना। जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना। मौन को अधर मिले अधरों को वाणी। …
Read More »अभी न सीखो प्यार – धर्मवीर भारती
यह पान फूल सा मृदुल बदन बच्चों की जिद सा अल्हड़ मन तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार! कुंजों की छाया में झिलमिल झरते हैं चांदी के निर्झर निर्झर से उठते बुदबुद पर नाचा करतीं परियां हिलमिल उन परियों से भी कहीं अधिक हलका–फुलका लहराता तन! तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार! तुम जा …
Read More »अब तो पथ यही है – दुष्यन्त कुमार
जिंदगी ने कर लिया स्वीकार‚ अब तो पथ यही है। अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है‚ एक हलका सा धुंधलका था कहीं‚ कम हो चला है‚ यह शिला पिघले न पिघले‚ रास्ता नम हो चला है‚ क्यों करूं आकाश की मनुहार‚ अब तो पथ यही है। क्या भरोसा‚ कांच का घट है‚ किसी दिन फूट जाए‚ एक …
Read More »आदत – सहने की – ओम प्रकाश बजाज
जरा – जरा सी बात पर, न शोर मचाओ। थोड़ा बहुत सहने की, आदत भी बनाओ। चोट – चपेट तो सब को, लगती रहती है। कठिनाइया परेशानियां तो, आती-जाती रहती है। धीरज रखना ही पड़ता है, सहना – सुनना भी पड़ता है। सहनशीलता जीवन में, बहुत काम आती है। निराश होने से हमें, सदा बचाती है। ~ ओम प्रकाश बजाज
Read More »आठवाँ आने को है – अल्हड़ बीकानेरी
मंत्र पढ़वाए जो पंडित ने, वे हम पढ़ने लगे, यानी ‘मैरिज’ की क़ुतुबमीनार पर चढ़ने लगे। आए दिन चिंता के फिर दौरे हमें, पड़ने लगे, ‘इनकम’ उतनी ही रही, बच्चे मगर बढ़ने लगे। क्या करें हम, सर से अब पानी गुज़र जाने को है, सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है। घर के अंदर मचती रहती है सदा …
Read More »आरम्भ है प्रचंड – पीयूष मिश्रा
आरम्भ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो, आन बान शान या कि जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दो। आरम्भ है प्रचंड… मन करे सो प्राण दे जो मन करे सो प्राण ले वही तो एक सर्वशक्तिमान है, कृष्ण की पुकार है ये भागवत का सार है …
Read More »आओ कुछ राहत दें – दिनेश मिश्र
आओ कुछ राहत दें इस क्षण की पीड़ा को क्योंकि नये युग की तो बात बड़ी होती है‚ अपने हैं लोग यहां बैठो कुछ बात करो मुश्किल से ही नसीब ऐसी घड़ी होती है। दर्द से लड़ाई की कांटों से भरी उगर एक शुरुआत करें आज रहे ध्यान मगर‚ झूठे पैंगंबर तो मौज किया करते हैं ईसा के हाथों में …
Read More »आँचल बुनते रह जाओगे – राम अवतार त्यागी
मैं तो तोड़ मोड़ के बन्धन, अपने गाँव चला जाऊँगा, तुम आकर्षक सम्बंधों का, आँचल बुनते रह जाओगे। मेला काफी दर्शनीय है पर मुझको कुछ जमा नहीं है, इन मोहक कागजी खिलौनों में मेरा मन रमा नहीं है। मैं तो रंग मंच से अपने अनुभव गाकर उठ जाऊँगा लेकिन, तुम बैठे गीतों का गुँजन सुनते रह जाओगे। आँसू नहीं फला …
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