आप मिले तो लगा जिंदगी अपनी आज निहाल हुई मन जैसे कश्मीर हुआ है आँखें नैनीताल हुईं। तन्हाई का बोझा ढो–ढो कमर जवानी की टूटी चेहरे का लावण्य बचाये नहीं मिली ऐसी बूटी आप मिले तो उम्र हमारी जैसे सोलह साल हुई। तारों ने सन्यास लिया था चाँद बना था वैरागी रात सध्वी बनकर काटी दिन काटा बनकर त्यागी आप …
Read More »बच्चे की नींद – दिवांशु गोयल ‘स्पर्श’
गहराती रात में, टिमटिमाती दो आँखें, एक में सपने, एक भूख, अंतर्द्वंद दोनों का, समय के विरुद्ध, एक आकाश में उड़ाता है, एक जमीं पे लाता है, एक पल के लिए, सपने जीत चुके थे मगर, भूख ने अपना जाल बिखेरा, ला पटका सपनों को, यथार्थ की झोली में, सब कुछ बिकाऊ है यहाँ, सपने, हकीकत और भूख, और बिकाऊ …
Read More »मुझे अभिमान हो – दिवांशु गोयल ‘स्पर्श’
आज मुझे फिर इस बात का गुमान हो, मस्जिद में भजन, मंदिरों में अज़ान हो, खून का रंग फिर एक जैसा हो, तुम मनाओ दिवाली, मैं कहूं रमजान हो, तेरे घर भगवान की पूजा हो, मेरे घर भी रखी एक कुरान हो, तुम सुनाओ छन्द ‘निराला’ के, यहाँ ‘ग़ालिब’ से मेरी पहचान हो, हिंदी की कलम तुम्हारी हो, यहाँ उर्दू …
Read More »समय की शिला – शंभुनाथ सिंह
समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए। किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के गई घुल जवानी, गई मिट निशानी। विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने धरा ने उठाए, गगन ने गिराए। शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना, किसी …
Read More »गाँव जा कर क्या करेंगे – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’
गाँव जाकर क्या करेंगे? वृद्ध–नीमों–पीपलों की छाँव जाकर क्या करेंगे? जानता हूँ मैं कि मेरे पूर्वजों की भूमि है वह और फुरसत में सताती है वहाँ की याद रह–रह ढह चुकी पीढ़ी पुरानी, नई शहरों में बसी है गाँव ऊजड़ हो चुका, वातावरण में बेबसी है यदि कहूँ संक्षेप में तो जहाँ मकड़ी वहीं जाली जहाँ जिसकी दाल– रोटी, वहीं लोटा …
Read More »रहने को घर नहीं है – हुल्लड़ मुरादाबादी
कमरा तो एक ही है कैसे चले गुजारा बीबी गई थी मैके लौटी नहीं दुबारा कहते हैं लोग मुझको शादी-शुदा कुँआरा रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा। महँगाई बढ़ रही है मेरे सर पे चढ़ रही है चीजों के भाव सुनकर तबीयत बिगड़ रही है कैसे खरीदूँ मेवे मैं खुद हुआ छुआरा रहने को घर नहीं है सारा …
Read More »क्या बताएं आपसे – हुल्लड़ मुरादाबादी
क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए। भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए …
Read More »नाजायज बच्चे – हुल्लड़ मुरादाबादी
परेशान पिता ने जनता के अस्पताल में फोन किया “डाक्टर साहब मेरा पूरा परिवार बीमार हो गया है बड़े बेटे आंदोलन को बुखार प्रदर्शन को निमोनिया तथा घेराव को कैंसर हो गया है सबसे छोटा बेटा ‘बंद’ हर तीन घंटे बाद उल्टियाँ कर रहा है मेरा भतीजा हड़ताल सिंह हार्ट अटैक से मर रहा है डाक्टर साहब, प्लीज जल्दी आइए …
Read More »फरियाद – प्रीत अरोड़ा
आजादी के इस पावन अवसर पर आइए सुनते हैं इनकी फरियाद चीख-चीखकर ये भी कह रहे हैं आखिर हम हैं कितने आजाद पहली बारी उस मासूम लड़के की जो भुखमरी से ग्रस्त होकर न जाने हर रोज कितने अपराध कर ड़ालता है दूसरी बारी उस अबला नारी की जो आए दिन दहेज़ के लोभियों द्वारा सरेआम दहन कर दी जाती …
Read More »वक़्त का सब्र
आगे सफर था… और पीछे हमसफर था… रूकते तो सफर छूट जाता… और चलते तो हम सफर छूट जाता… मुद्दत का सफर भी था… और बरसो का हम सफर भी था… रूकते तो बिछड जाते… और चलते तो बिखर जाते… यूँ समँझ लो… प्यास लगी थी गजब की… मगर पानी मे जहर था… पीते तो मर जाते… और ना पीते …
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