खेलें आँगन बाल गोपाल, नाचें-कूदें गलबहियां डाल। तरह-तरह के साज बजाएं, देशप्रेम के गीत गाएं। झगड़ा-टंटा करे न भाई, मन में इनके हो सच्चाई। खेल-खेल में धूम मचाएं, एक स्वर से गाना गाएं। आँखों के बन जाएँ तारें, तब तो होंगे पो वारे। कहे ‘प्रसाद’ देखो खेल, कैसे बढ़ता इनका मेल। ∼ राम प्रसाद शर्मा
Read More »ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय – योगेश
ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय कभी तो हँसाए, कभी ये रुलाये कभी देखो मन नहीं जागे, पीछे-पीछे सपनों के भागे एक दिन सपनों का राही, चला जाये सपनो के आगे कहाँ ज़िन्दगी कैसी है पहेली… जिन्होंने सजाये यहाँ मेले, सुख-दुःख संग-संग झेले वही चुनकर खामोशी, यूँ चले जाएँ अकेले कहाँ ज़िन्दगी कैसी है पहेली… ∼ योगेश चित्रपट : आनंद (1971) निर्माता …
Read More »अच्छे बच्चे – विजय अरोड़ा
कहना हमेशा बड़ो का मानते माता-पिता को शीश नवाते अपने गुरुजनों का मान बढ़ाते वे ही बच्चे अच्छे कहलाते ! नहा-धोकर रोज शाला जाते पढाई से जी न चुराते परीक्षा में सदा अव्वल आते वे ही बच्चे अच्छे कहलाते ! कभी न किसी से झगड़ा करते बात हमेशा सच्ची कहते उंच-नीच का भाव न लाते वे ही बच्चे सच्चे कहलाते …
Read More »कुछ रफ़्तार धीमी करो – मेरे दोस्त
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी.. मुझे याद है, मेरे घर से “स्कूल” तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले सब कुछ अब वहां “मोबाइल शॉप”, “विडियो पार्लर” हैं, फिर भी सब सूना है… शायद अब दुनिया सिमट रही है… जब मैं छोटा था, …
Read More »भारतीय सभ्यता का फ़िल्मी इंटरवल
बॉलीवुड के बादल छाये, बदलावों की बारिश है, ये है सिर्फ सिनेमा या फिर सोची समझी साजिश है! याद करो आशा पारिख के सर पे पल्लू रहता था, हीरो मर्यादा में रहकर प्यार मोहब्बत करता था! प्रणय दृश्य दो फूलों के टकराने में हो जाता था, नीरज, साहिर के गीतों पर पावन प्रेम लजाता था! लेकिन अब तो बेशर्मी के …
Read More »दिल्ली देश की शान
सडक पर बसें, गुलाबी, लाल, हरी, हैं, दिल्ली नगर निगम की शान। फिर भी दिल्ली मेट्रो, के बिना, यहां, कभी न चले काम। क्योंकि, सडकों पर पानी भरे, और कारें लगा रही है, जाम। और लोग फुटपाथ को रोक कर, बेच रहे हैं, निम्बू, जामुन, और आम। कर्मचारी, बचा रास्ता, रोक कर, ठेलों पर खडे, खा रहे हैं पान। न …
Read More »ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना
वो कमीज के बटन ऊपर नीचे लगाना अपने बाल खुद न काढ पाना पी टी शूज को चाक से चमकाना वो काले जूतों को पैंट से पोछते जाना ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना … वो बड़े नाखुनो को दांतों से चबाना और लेट आने पे मैदान का चक्कर लगाना वो prayer के समय class में ही …
Read More »एक तिनका – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ एक दिन जब था मुँडेरे पर खड़ा आ अचानक दूर से उड़ता हुआ एक तिनका आँख में मेरी पड़ा। मैं झिझक उठा हुआ बैचैन सा लाल होकर आँख भी दुखने लगी मूठ देने लोग कपड़े की लगे ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी। जब किसी ढब से निकल तिनका गया तब ‘समझ’ ने यों मुझे …
Read More »प्यार की अभिलाषा – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
होती जो देह प्यार की परिभाषा, तो कोठों की कहानी कुछ और होती। बनते जो अधर ह्रदय की अभिलाषा, तो घर की रवानी कुछ और होती। होता जो प्यार कोई भौतिक चमचमाहट, तो ऊँची मीनारे न कभी धूल में मिलतीं। होता जो प्यार ऐश्वर्य कि तमतमाहट, तो महलों कि दीवारें खण्डहर न बनतीं। देह से अलग प्यार तो नैसर्गिक आराधना …
Read More »आहिस्ता चल जिंदगी
आहिस्ता चल जिंदगी, अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है कुछ दर्द मिटाना बाकी है कुछ फर्ज निभाना बाकी है रफ़्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए कुछ छूट गए रूठों को मनाना बाकी है रोतों को हँसाना बाकी है कुछ रिश्ते बनकर, टूट गए कुछ जुड़ते – जुड़ते छूट गए उन टूटे – छूटे रिश्तों के जख्मों को मिटाना …
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