बलिदान दिवस पर विशेष: क्या गांधी सदा साम्प्रदायिकता की आग में जलते रहेंगे

बलिदान दिवस पर विशेष: क्या गांधी सदा साम्प्रदायिकता की आग में जलते रहेंगे

भारत का यह परम सौभाग्य रहा कि 20वीं शताब्दी में सबके आंसू पोंछने के लिए भारत की धरती पर गांधी जी का अवतरण हुआ। गांधी जी भारतीय संस्कृति को वह सबका समन्वय मानते थे। 1922 के खिलाफत आंदोलन में हिन्दू-मुस्लिम के बिच चौड़ी खाई को बापू ने पूरी तरह पाट दिया था। यह गांधी जी का ही प्रभाव था कि इस आंदोलन में मुसलमानों ने कट्टर आर्य समाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद को आमंत्रित किया था कि वह दिल्ली की जामा मस्जिद से उपदेश दें।

इसी प्रकार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की चाबियां एक मुस्लिम नेता को सौंप दी गईं। हिंदुओं और मुसलमानों ने एक ही बेड़ी पहन कर और एक साथ ही पानी पीकर यह सिद्ध कर दिया था कि हममें मतैक्य का अभाव नहीं है, लेकिन दुर्भाग्यवश हिंदुओं और मुस्लिमों की यह एकता ज्यादा दिनों तक टिक न पाई।

भारत में अंग्रेजों की औपनिवेशक सत्ता और सामाजिक विकृतियों के खिलाफ एक साथ लड़ने के लिए अभिशप्त गांधी जी जिन्ना को साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने से रोक न पाए। सत्ता के जश्न में जब पूरा भारत डूबा था तब गांधी जी घूम-घूम कर साम्प्रदायिकता की आग को बुझाते रहे। गांधी जी को इस बात का घोर आश्चर्य हो रहा था कि जिस मौलाना अबुल कलाम आजाद के नेतृत्व में भारत ने स्वतंत्रता हासिल की, उन पर मुस्लिम हिन्दू प्रभाव फैलाने का आरोप लगाने लगे।

सचमुच गांधी जी का हिन्दू-मुस्लिम एकता का स्वपन उसी समय क्षत-विक्षत हो गया जब मुस्लिमों ने मौलाना अबुल कलाम आजाद और खान अब्दुल गफ्फार खां की उपेक्षा कर जिन्ना को सिर आंखों पर बिठाया। वस्तुतः गांधी जी की हत्या तो उसी समय जिन्ना ने कर दी जिस समय उसने भारत विभाजन करवाया। नाथूराम गोडसे ने तो उस गांधी की हत्या की जो सिर्फ एक जिंदा लाश थे। गांधी जी की आंखों के सामने विभाजन के बाद दंगों में छः लाख स्त्री-पुरुष और बच्चे मारे गए। डेढ़ करोड़ शरणार्थी हो गए। फ्रांस और रूस की राज्य क्रांतियों में दोनों को मिलाकर भी इतने लोग न मारे गए होंगे जितने भारत विभाजन के समय मरे।

विभाजन के बाद अपने जन्मदिन पर एक पत्रकार को उत्तर देते हुए गांधी जी ने कहा था – वह अब और जीना नहीं चाहते और वह ईश्वर से प्रार्थना करेंगे कि वह मुझे आंसुओं की इस घाटी से उठा लें और मुझे इस हत्याकांड का असहाय दर्शक न बना रहने दें जो बर्बर बन चूका मनुष्य कर रहा है, भले ही वह अपने आपको मुसलमान या हिन्दू या कुछ और ही क्यों न कहता हो।

गांधी जी को बहुसंख्य मुसलमानों ने एक ओर काफिर समझा तो दूसरी ओर साम्प्रदायिक हिंदुओं ने परोक्ष रूप से उन पर हमला करते हुए आरोप लगाया कि जिन लोगों ने ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता के बिना स्वराज नहीं मिल सकता‘ का नारा बुलंद  किया है, उन्होंने हमारे समाज के साथ सबसे बड़ी गद्दारी की है। उन्होंने एक महान और प्राचीन जाति की जीवनशक्ति को नष्ट करने का घृणित पाप किया है। इस प्रकार 20वीं शताब्दी में हिन्दुओं और मुस्लिमों ने मिलकर गांधी की हत्या कर दी।

वस्तुतः हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जब कभी भारत में किसी गांधी ने जन्म लिया, साम्प्रदायिकता की आग में वे सदैव जलते रहे, लेकिन क्या आगे भी गांधी जी को साम्प्रदायिकता की आग में इसी तरह जलाते रहेंगे? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब हिन्दुओं और मुस्लिमों को एक साथ मिलकर ढूंढना होगा।

Check Also

World Autism Awareness Day Information

World Autism Awareness Day: Date, History, Theme, Significance

World Autism Awareness Day is observed annually on 2nd April to persuade member states to …