लाखों लोगों की भीड़ छठ घाटों पर जुटती है। आस्था के इस पर्व में न सिर्फ पूर्वांचल, बल्कि दिल्ली के लोग भी शिरकत करने लगे हैं। दिल्ली भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दूबे बताते हैं कि 50 साल पहले तो छठ के बारे में लोगों को शायद ही पता था। लेकिन अब राजधानी में जिस तरह से छठ का पर्व चारों ओर मनाया जाने लगा है, उससे यह पर्व अब दिल्ली का पर्व हो चुका है। दूबे बताते हैं कि उस वक्त वे अपनी मां के लिए छठ पूजा की सामग्री पहाड़गंज जाकर खरीदते थे और यह बड़ी मुश्किल से मिलती थी।
उन दिनों छठ करने के लिए यमुना के किनारे लोग शायद ही जाते थे। वे अपने घर की छत पर हौद में पानी डालकर छठ पूजा के दौरान सूर्य को अर्घ्य देते थे। या फिर जो लोग छठ पूजा करते थे, वे आपस में मंडली बनाकर किसी मंदिर के प्रांगण में जमीन में गड्ढा खोदकर उसमें पानी डाल देते थे और उसमें खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। लेकिन अब यमुना किनारे बकायदा छठ के लिए घाट बनाए जाते हैं और साफ सफाई की भी विशेष व्यवस्था की जाती है।
दिल्ली में छठ
एशियाड के बाद बदल गया ट्रेंड
एशियाड के बाद इस स्थिति में बड़ा बदलाव आया। 80 के दशक में एशियाड के कारण राजधानी दिल्ली में बड़ी संख्या में निर्माण का काम हुआ और इसके लिए भारी संख्या में मजदूरों का दिल्ली की ओर पलायन हुआ। बिहार और पूर्वांचल के मजदूर और अन्य वर्ग के लोग काम की तलाश में दिल्ली आए और एशियाड के बाद भारी संख्या में ये लोग यहीं बस गए। इसके बाद से यहां छठ पर्व मनाने वालों की संख्या हजारों से लाखों में पहुंच गई।
दिल्ली में छठ पर यमुना के घाटों की सफाई
1993 में दिल्ली की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने पहली बार छठ पूजा के लिए यमुना के घाटों की साफ-सफाई शुरू करवाई। छठ के लिए घाटों पर लाइट और सुरक्षा के इंतजाम भी किए गए। वहीं साल-2000 में कांग्रेस सरकार ने छठ के मौके पर पहली बार दिल्ली में रिस्ट्रिक्टेड हॉलिडे यानी आरएच की घोषणा की।
दिल्ली में छठ पर सार्वजनिक छुट्टी
बिहार और झारखंड के अलावा ऐसा राज्य बना, जहां छठ पर्व के लिए आरएच की घोषणा हुई। इसके बाद सरकार छठ के लिए राजधानी में यमुना नदी के किनारों के अलावा बुराड़ी, किराड़ी, नजफगढ़, पालम, नांगलोई सहित अन्य इलाकों में 79 घाटों में साफ-सफाई का इंतजाम करा रही है। केंद्र सरकार ने भी 2011 में छठ पर आरएच की घोषणा कर दी। वहीं साल-2014 में दिल्ली सरकार ने छठ के मौके पर सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा कर दी। वहीं पड़ोसी राज्य यूपी भी पीछे नहीं रहा और 2015 में वहां भी सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा की गई। राजधानी में छठ पर्व की लोकप्रियता की स्थिति आज यह है कि यहां हर साल करीब 25 से 30 लाख लोग इस पर्व में शिरकत करने लगे हैं और हर साल इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है।
सैकड़ों जगहों पर सामान की बिक्री
छठ पूजा से जुड़े सामान की भी मांग बढ़ी तो पूर्वांचल के लोगों ने वहां से पूजा से संबंधित सामग्रियां भी लानी शुरू कर दीं और यहां बेचना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाले सामान राजधानी के तमाम बड़े बाजारों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में मिलना शुरू हो गया। पिछले तीन दशक से डाबड़ी मोड़ पर दुकान लगाने वाले प्रभाकर कुमार बताते हैं कि 1990 के आसपास डाबड़ी में गिनती की दो-तीन दुकानें ही थीं जहां छठ पूजा का सामान मिलता था, लेकिन आज छोटी-बड़ी 100 दुकानें हैं।
उन दिनों 100 से 150 खरीददार होते थे और अब छठ पूजा से जुड़े खरीददारों की संख्या अकेले डाबड़ी में ही 20 हजार से भी ज्यादा है। इसी तरह से दिल्ली भर में सैकड़ों बाजार लगते हैं, जहां छठ पूजा का सामान मिलता है। राजधानी में छठ पर्व का ट्रेंड बदल गया है। लोग अब अपने घर जाने की बजाए यहीं पर रहकर इस पर्व को मनाते हैं, क्योंकि उन्हें यहां सारी सहूलियतें मिल रही हैं और पूजा से जुड़ा हर एक छोटा-बड़ा सामान भी अब यहां आसानी से उपलब्ध है।