जन्माष्टमी से जुड़ी घटनाएं – ये बातें जानते हैं क्या आप
जन्माष्टमी से जुड़ी घटनाएं : श्रीकृष्ण का जीवन ही संघर्ष से शुरू हुआ। लेकिन इसकी शिकन कभी उनके चेहरे पर नहीं दिखी। वह हमेशा मुस्कराते हुए बंशी बजाते रहते थे और दूसरों को भी समस्याओं को ऐसे ही मुस्कराते हुए सुलझाने की सीख देते थे। ऐसे मुरली मनोहर के जन्म की रात अनोखी घटनाएं हुई थीं। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं…
नींद में वसुदेव कर गए महान काम
जब कृष्ण का जन्म हुआ तो जेल के सभी संतरी योगमाया द्वारा गहरी नींद में सो गए। इसके बाद बंदीगृह का दरवाजा अपने आप ही खुल गया। उस वक्त भारी बारिश हो रही थी। वसुदेवजी ने नन्हें कृष्ण को एक टोकरी में रखा और उसी भारी बारिश में टोकरी को लेकर वह जेल से बाहर निकल गए। वसुदेवजी मथुरा से नंदगांव पहुंच गए लेकिन उन्हें इस घटना का ध्यान नहीं था।
यमुना का उफनता जल हुआ शांत
श्रीकृष्ण के जन्म के समय भारी बारिश हो रही थी। यमुना नदी उफान पर थी। वसुदेवजी कन्हैया को टोकरी में लेकर यमुना नदी में प्रवेश कर गए और तभी चमत्कार हुआ। यमुना के जल ने कन्हैया के चरण छुए और फिर उसका जल दो हिस्सों में बंट गया और इस पार से उस पार रास्ता बन गया। उसी रास्ते से वसुदेवजी गोकुल पहुंच गए।
बच्चों की हुई अदला-बदली, कोई भी ना जान पाया
वसुदेव कृष्णजी को यमुना के उस पार गोकुल में अपने मित्र नंदगोप के यहां ले गए। वहां पर नंद की पत्नी यशोदाजी ने एक कन्या को जन्म दिया था। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को साथ ले आए।
नंदराय ने किया स्वागत: जन्माष्टमी से जुडी घटनाएं
कथा के अनुसार, नंदरायजी के यहां जब कन्या का जन्म हुआ तभी उन्हें पता चल गया था कि वसुदेवजी कृष्ण को लेकर आ रहे हैं। तब वह अपने दरवाजे पर खड़े होकर उनका इंतजार करने लगे। फिर जैसे ही वसुदेवजी आए उन्होंने अपने घर जन्मी कन्या को गोद में लेकर वसुदेवजी को दे दिया। हालांकि इस घटना के बाद नंदराय और वसुदेव दोनों ही यह सबकुछ भूल गए थे। यह सबकुछ योगमाया के प्रभाव से हुआ था।
देवी विंध्यवासिनी का प्राकट्य
वसुदेवजी नंदबाबा के घर जन्मीं कन्या यानी कि योगमाया को लेकर चुपचाप मथुरा के जेल में वापस लौट गए। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस वध की भविष्यवाणी की। इसके बाद वह भगवती विन्ध्याचल पर्वत पर वापस लौट गईं और विंध्याचल देवी के रूप में आज भी उनकी पूजा-आराधना की जाती है।
जन्माष्टमी से जुड़ी घटनाएं – जानें क्यों कन्हैया लगाते हैं मोरपंख
जन्माष्टमी से जुड़ी घटनाएं : राधाकृष्ण के प्रेम की कई सारी कहानियां हैं। जिन्हें पढ़कर या सुनकर उनके प्रेम की पराकाष्ठा का अहसास होता है। लेकिन कुछ ऐसे भी किस्से हैं जिन्हें जानकर हैरानी होती है। कृष्ण के सिर पर सजने वाला मोरपंख भी ऐसे ही एक किस्से का हिस्सा बना और उसका परिणाम यह रहा है कि श्रीकृष्ण ने कलिकाल तक मोरपंख को अपने शीश पर लगाने का वरदान दे दिया। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं…
अद्भुत है राधे-कृष्ण की यह प्रेमकथा
कथा मिलती है कि गोकुल में एक मोर रहता था, वह श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त था। एक बार उसने श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए कन्हैया के द्वार पर जाकर जप करने का विचार किया। इसके बाद वह उनके द्वार पर बैठकर कृष्ण-कृष्ण जपता रहा। जप करते हुए उसे एक बरस बीत गया लेकिन उसे श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त नहीं हुई। एक दिन दु:खी होकर मोर रोने लगा। तभी वहा से एक मैना उड़ती जा रही थी, उसने मोर को रोता हुए देखा तो बहुत अचंभित हुई।
कन्हैया के दर पर जब रोता रहा मोर
मैना ने सोचा कि यूं तो मोर किसी भी कारण से रो सकता है लेकिन कन्हैया के दर पर कोई रोए यह तो अचंभित करने वाली बात है। इसके बाद मैना मोर के पास गई और रोने का कारण पूछा तब मोर ने बताया कि एक बरस से मैं कन्हैया को प्रसन्न करने के लिए कृष्ण नाम जप कर रहा हूं। लेकिन कन्हैया ने आज तक मुझे पानी भी नहीं पिलाया।
मैना ने दी राधारानी की शरण में जाने की सलाह
यह सुनकर मैना बोली मैं श्रीराधेरानी के बरसना से आई हूं। तू मेरे साथ वहीं चल, राधेरानी बहुत दयालु हैं। वह तुझपर जरूर कृपा करेंगी। मोर ने मैना की बात मान ली और दोनों ही उड़ते-उड़ते बरसाना पहुंच गए। लेकिन मोर ने राधारानी के दर पर भी कृष्ण नाम का ही जप किया। यह सुनते ही श्रीराधे दौड़ती हुई आईं और मोर को गले से लगा लिया।
राधा बोलीं नहीं मेरे कान्हा ऐसे निर्मोही नहीं
राधारानी ने मोर से पूछा तू कहां से आया है। तब मोर ने कहा कि जय हो राधारानी की। आज तक सुना था की तुम करुणामयी हो और आज देख भी लिया। राधारानी बोली वह कैसे तब मोर बोला में पिछले एक बरस कन्हैया के द्वार पर कृष्ण नाम जप कर रहा हूं। लेकिन पानी पिलाना तो दूर उन्होंने तो मेरी ओर देखा तक नहीं। तब राधाजी ने कहा कि नहीं मेरे कान्हा ऐसे निर्मोही नहीं हैं।
राधे ने दी मोर को अनोखी सीख: जन्माष्टमी से जुड़ी घटनाएं
किशोरीजी ने कहा कि फिर से तुम कन्हैया के द्वार पर जाओ। लेकिन इस बार कृष्ण नहीं राधे-राधे रटना। मोर ने राधा रानी की बात मान ली और लौट कर गोकुल वापस आ गया फिर से कृष्ण के द्वार पर पहुंचा और इस बार राधे-राधे रटने लगा। यह सुनते ही कृष्ण दौड़े चले आए और मोर से पूछा तुम कहां से आए हो? तब मोर ने कहा हे माधव एक बरस से तुम्हारा नाम संकीर्तन कर रहा था तब तो तुमने मुझे पानी तक नहीं पिलाया आज राधे-राधे जपने पर दौड़े चले आए।
राधे का नाम जपना सौभाग्य की बात है
मोर की बात सुनकर कृष्णजी बोले मैंने तुझको कभी पानी नहीं पिलाया यह मैंने पाप किया है। लेकिन तूने राधा का नाम लिया, यह तेरा सौभाग्य है। इसलिए मैं तुझको वरदान देता हूं कि जब तक यह सृष्टि रहेगी, तेरा पंख सदैव ही मेरे शीश पर विराजमान होगा। साथ ही जो भी भक्त किशोरीजी का नाम लेगा वह भी मेरे शीश पर रहेगा।