Maha Shivaratri Celebrations: Hindu Culture & Traditions

Maha Shivaratri Celebrations by Hindu Devotees

हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में 12 शिवरात्रियां होती हैं। प्रत्येक माह की कृष्ण चतुर्दशी, जो कि माह का अंतिम दिन होता है उस दिन शिवरात्रि मनाई जाती है। लेकिन प्राचीन भारतीय परंपरा में फाल्गुन मास की त्रयोदशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के व्रत को अमोघ फल देने वाला बताया गया है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर और मां पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था तथा इसी दिन प्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था। शिव भक्त पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ इस दिन भोलेनाथ की विशेष पूजा, अर्चना और स्तवन करते हैं। भारत के अलग अलग प्रदेशों में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों पर इस दिन हजारों भक्त जलाभिषेक कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। महाशिवरात्रि, शिवजी का सबसे महत्वपूर्ण व्रत है। इस दिन सभी शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

ऐसा विश्वास है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं और उपासक को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है कि इसी दिन सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी की भौहों से रूद्ररूप में शिवजी का अवतरण हुआ था। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव ने तांडव नृत्य करते हुए अपनी तीसरी नेत्र से सृष्टि का संहार किया था। इसीलिए इस दिन को महाकालरात्रि भी कहा जाता है।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्री वर्ष के अंत में आती है इसलिए इस दिन पूरे वर्ष में हुई गलतियों के लिए भगवान शंकर से क्षमा याचना की जाती है और आने वाले वर्ष में उन्नति एवं सदगुणों के विकास के लिए प्रार्थना की जाती है।

ॐ नमः शिवाय:‘ पंचतत्वमक मंत्र है इसे शिव पंचक्षरी मंत्र कहते हैं। इस पंचक्षरी मंत्र के जाप से ही मनुष्य संपूर्ण सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है। भगवान शिव का निरंतर चिंतन करते हुए इस मंत्र का जाप करें। सदा सब पर अनुग्रह करने वाले भगवान शिव का बारंबार स्मरण करते हुए पूर्वाभिमुख होकर पंचक्षरी मंत्र का जाप करें।

शिव भक्त जितना भगवान शिव के पंचक्षरी मंत्र का जाप कर लेता है उतना ही उसके अंतकरण की शुद्धि होती है और वह अपने अंतःकरण में स्थित अव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान के रूप में विराजमान भगवान शिव के समीप होता जाता है। उसकी दरिद्रता, रोग, दुख, शत्रुजनित पीड़ा और कष्टों का अंत हो जाता है और उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है।

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