15 वर्ष के वीर हकीकत राय का बलिदान और उनके साथ ही सती हो जाने वाली उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी के बलिदान की गाथा भी जुड़ी है वसंत पंचमी के साथ।
बच्चों की एक छोटी-सी लड़ाई मृत्युदंड का कारण बनेगी ऐसा कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा परन्तु सन 1734 ई. के वसंत पंचमी के उत्सव पर मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के काल में एक नन्हे बालक हकीकत राय पूरी को जब वधशाला की ओर ले जाया जा रहा था तो पूरा नगर अक्षुपूरित आंखों से उसे देख रहा था। हाकिम उसे बचाना चाहते थे, काजी को उस पर दया आ रही थी किन्तु मुल्लाओं के भय से इस बालक को मौत की सजा हो चुकी थी।
Vasant Panchami Legend:
वीर हकीकत का जन्म कार्तिक कृष्ण 12 सम्वत 1776 को हुआ था और मृत्यु के समय उनकी आयु मात्र 15 वर्ष ही थी। उस वीर बाल का जन्म पंजाब के सुप्रिसद्ध व्यापारिक केन्द्र स्यालकोट के एक धनाढ्य तथा पुण्यात्मा खत्री जाति के लाला भागमल पुरी के यहां माता कैरों की कोख से हुआ था। उन्हीं दिनों परम्परानुसार बटाला के श्री किशन सिंह की पुत्री लक्ष्मी देवी से हकीकत का विवाह भी कर दिया गया था।
आत्मा मात्र चोला बदलती है। शरीर नाशवान है। इन बातों का बालक हकीकत को अच्छा ज्ञान था। हकीकत राय कुशाग्र बुद्धि तो थे ही, इसी कारण मौलवी द्वारा मदरसे में उनसे अत्यधिक स्नेह किया जाता था, लेकिन हकीकत को मिलने वाला स्नेह अन्य बच्चों में उनके प्रति इर्ष्या पैदा कर रहा था। एक दिन कक्षा की बागडोर उसे संभालकर मल्ला जी किसी काम से गए तो अन्य छात्रों ने बवाल खड़ा कर दिया और बच्चों का विवाद धर्म की लड़ाई बन गया। परस्पर आक्षेप लगने लगे। मदरसे के आने पर हकीकत की शिकायत बढ़ा-चढ़ा कर लगाई गई।
परिणामस्वरूप नगर शासक के पास अभियोग लाया गया, निर्णय सुनाया गया कि वह अपना धर्म परिवर्तन कर लें अन्यथा इनका वध कर दिया जाए। बालक हकीकत राय को लाड़-प्यार द्वारा धर्म से गिराने का प्रयास किया गया लेकिन हकीकत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। धर्म प्रिय बालक ने धर्म के स्थान पर सिर देना स्वीकार किया। वीर बालक का दाह संस्कार बड़ी धूमधाम से लाहौर से लगभग 5 किलोमीटर दूर रावी नदी के तट पर कोट खोजेशाह के क्षेत्र में वसंतोत्सव पर किया गया और बाद में वहां समाधि बनी।
इस बलिदान का समाचार सुनकर उनके ससुराल बटाला में कोहराम मच गया किन्तु उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी ने अपनी मां को दिलासा देते हुए सती होने की ठान ली। उसने चिता सजाई। सबके सामने अपने प्राण प्यारे पति हकीकत राय का ध्यान करते हुए अंतः करण में परमेश्वर का स्मरण करते हुए चिता में कूदकर सती हो गईं और उसके बाद बटाला में ही लक्ष्मी देवी की भी समाधि बना दी गई। हकीकत राय का स्मारक तो विभाजन के बाद पाकिस्तान में रह गया किन्तु लक्ष्मी देवी की समाधि पर प्रतिवर्ष भारी मेला लगाकर इस युगल का स्मरण किया जाता है और इसी दिन वसंत पंचमी होती है।
दैनिक प्रार्थना सभा बटाला जो सामाजिक कार्यों में देशभर में हमेशा अग्रणी रही है, के संचालक महाशा गोकुल चंद के नेतृत्व में वीर हकीकत राय की पत्नी सती लक्ष्मी देवी की याद में बहुत बड़ा स्मारक बना हुआ है और यहां सभी की और से प्रतिवर्ष वसंत पंचमी के उत्सव पर बलिदान दिवस के रूप में बहुत बड़े समारोह का आयोजन किया जाता है।
~ “वीर हकीकत राय का बलिदान” by योगेश बेरी / विपन पुरी, बटाला
‘कोई पूज्य फातिमा बीबी को ऐसा कहे तो तुम्हें कैसा लगेगा’: माँ भवानी के अपमान पर बोला 14 साल का बालवीर, सिर धड़ से हुआ अलग
14 साल के हकीकत राय का ईशनिंदा के आरोप में लाहौर में खुलेआम सिर क़लम कर दिया गया था।
इस्लाम में ‘ईशनिंदा (Blasphemy)’ की सज़ा काफी सख्त है। शरीयत कानून की मानें तो मौत से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। हाल ही में पाकिस्तान में दो भाइयों पर मस्जिद के अपमान का आरोप लगा और सैकड़ों की भीड़ ने थाने में घुस कर उन्हें मार डालने की कोशिश की। अगर आपको लगता है कि ये सब नया है, तो आप गलत हैं। सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही इस्लाम में ऐसा ही होता आ रहा है। ऐसा ही एक नाम है ‘वीर’ हकीकत राय का।
हकीकत राय का जन्म एक खत्री हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके बारे में हम जानेंगे, लेकिन उससे पहले अत्याचारी मुगलों की बात। जब हकीकत राय का जन्म हुआ था, तब भारत में मुग़ल शासन भी अपने अंतिम दिन गिन रहा था और साम्राज्य काफी सीमित हो गया था। सितम्बर 1719 से अप्रैल 1748 तक दिल्ली में मुहम्मदशाह ‘रंगीला’ का शासन था। 13वाँ मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह, बहादुरशाह जफ़र I का पोता और खुजिस्ता अख्तर का बेटा था।
मात्र 17 वर्ष की उम्र में उसने तब प्रभावशाली मुग़ल सरदारों सैयद भाइयों की मदद से सत्ता पा ली थी। बाद में उसने सैयद भाइयों में से एक का कत्ल करवा दिया तो एक को ज़हर देकर मरवा दिया। हालाँकि, वामपंथी उसे कला, संगीत, प्रशासनिक विकास और संस्कृति का वाहक मानते हैं। उसी के काल में पर्सिया का नादिर शाह दिल्ली आया और सब कुछ लूट कर ले गया। साथ ही उसने भारत की राजधानी में लाशों का अंबार भी लगा दिया।
हकीकत राय का पालन-पोषण भी कुछ इसी अवधि में हो रहा था। भगवद्गीता सीखते हुए बड़े हो रहे थे। परिवार अमीर था। पूरी खत्री खानदान के हकीकत राय को किसी चीज की कमी न थी। उस दौरान फ़ारसी भाषा का बोलबाला था। संस्कृत से लेकर अंग्रेजी तक, भाषा वो लोकप्रिय नहीं होती है जो सबसे ज्यादा बोली जाती है, बल्कि उस भाषा की माँग सबसे ज्यादा होती है जिनका इस्तेमाल प्रशासनिक कार्यों में होता हो।
सीधे शब्दों में कहें तो हर माँ-बाप अपनी संतान को उस भाषा का ज्ञान प्राथमिकता से देना चाहता है, जिसका इस्तेमाल वहाँ के प्रबुद्धजन करते हों। इसी तरह हकीकत राय को भी फ़ारसी पढ़ने के लिए एक मौलवी के पास भेजा जाता था। मुग़ल काल में अदालतों से लेकर दरबार तक की कार्यवाहियाँ फ़ारसी में ही हुआ करती थीं। जिस सियालकोट में हकीकत राय का जन्म व पालन-पोषण हुआ, वो आज पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित है।
पिता भागमल ने जिस मदरसे में हकीकत राय को फ़ारसी पढ़ने के लिए भेजा था, जाहिर है कि वहाँ अधिकतर छात्र मुस्लिम थे। उसी मदरसे में एक ऐसी छोटी सी घटना हुई, जिसके कारण हकीकत राय को अपनी जान गँवानी पड़ी। पिता की इच्छा थी कि फ़ारसी पढ़ कर उनका बेटा एक बड़ा सरकारी अधिकारी बनेगा। बालक कुशाग्र बुद्धि था और उसने शिक्षक का प्रेम कुछ ही समय में प्राप्त कर लिया। वो मन लगा कर पढ़ता।
लेकिन, मदरसे में पढ़ने वाले अन्य मुस्लिम छात्रों को ये बात खटकती थी। वो किसी न किसी प्रकार से हकीकत राय को प्रताड़ित करने लगे थे और पढ़ाई से ध्यान भटकाने के लिए उन्हें परेशान किया करते थे। मदरसे के कुछ बच्चे चोरी और जुआ में मशगूल थे, जिनकी शिकायत हकीकत ने शिक्षकों से कर दी थी। इसके बाद वो छात्र और भी चिढ़ गए। हकीकत राय की उम्र तब मात्र 13-14 वर्ष ही थी। उनके विवाह की बात भी चल रही थी।
लाहौर के ही एक बड़े घराने में उनका रिश्ता तय होने वाला था। एक दिन जब छात्रों के झगड़े में हकीकत राय के कपड़े फट गए तो पिता भागमल शिकायत लेकर मदरसा पहुँचे। मौलवी ने दोषी छात्रों को सज़ा दी। इसके बाद से ही उन लोगों ने मन बना लिया था कि वो किसी तरह से इसका बदला लेंगे। हकीकत राय का विवाह तय हो चुका था। मौलवी को भी निमंत्रण भेजा गया था। लेकिन, उसी बीच ईद का त्यौहार भी आ गया।
‘सुरुचि प्रकाशन’ द्वारा संकलित हकीकत राय की जीवनी के अनुसार, ईद के दिन हकीकत राय ने एक सोने का सिक्का देकर मौलवी साहब को त्यौहार की बधाई दी। इसी दौरान अन्य छात्र उससे कबड्डी खेलने की जिद करने लगे, लेकिन माँ भवानी की सौगंध खाकर हकीकत राय ने कहा कि उनका खेलने का मन नहीं है। फिर क्या था, मुस्लिम छात्रों ने माँ भवानी को ‘पत्थर का टुकड़ा’ बताते हुए उनकी प्रतिमा को सड़क पर फेंकने और लात से मारने की धमकी दी।
‘Gateway To Sikhism‘ और सुरुचि प्रकाशन में वर्णित हकीकत राय की जीवनी के अनुसार, उन्होंने माँ भवानी का अपमान करते मुस्लिम छात्रों से बस इतना ही पूछा कि अगर कोई उनकी पूज्य फातिमा बीबी के लिए कोई ऐसा कहेगा तो उन्हें कैसा महसूस होगा? इसके बाद उन छात्रों ने भीड़ जुटा दी और मौलवी से शिकायत की। फिर हकीकत राय को ‘काफिर’ बताते हुए काजी से उनकी शिकायत की गई।
हकीकत राय ने माफ़ी माँगने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने कोई अपशब्द नहीं कहे थे। काजी ने हकीकत राय और उनके पिता के सामने शर्त रखी कि हकीकत को इस्लाम कबूल करना पड़ेगा, तभी उसकी जान बच सकती है। लेकिन, हकीकत राय ने इनकार कर दिया। हकीकत राय को रस्सी से बाँध कर लाहौर के हाकिम के पास ले जाया गया। भागमल के नाम मिन्नतें करने के बावजूद उसने काजी के फैसले को पलटने से इनकार कर दिया।
भागमल अपने बेटे की जान की भीख माँगते रहे, उधर हाकिम ने जल्लाद को आवाज़ दी। उसे आदेश दिया गया कि वो एक ही वार में हकीकत राय का सिर धड़ से अलग कर दे और उसने उपस्थित सभी लोगों के सामने ही ऐसा ही किया। हकीकत राय ने गुरु तेग बहादुर और संभाजी जैसे वीरों के रास्ते पर चलते हुए जान दे दी, लेकिन इस्लाम कबूल नहीं किया। ‘ईशनिंदा’ का झूठा आरोप लगा और उन्हें मार डाला गया।
सिर कलम किए जाने से पहले हकीकत राय ने काजी से पूछा था कि क्या मुस्लिमों को मौत नहीं आती? अगर आती है तो मैं अपना धर्म क्यों छोड़ूँ? हकीकत राय के बलिदान पर सिख सम्राट रणजीत सिंह को भी नाज़ था। 18वीं सदी में इस्लामी शासकों और अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने वाले ‘शेर-ए-पंजाब‘ रणजीत सिंह अक्सर उनके बलिदान को याद करते थे। सिख और हिन्दू, दोनों ही वीर हकीकत राय को याद करते हैं। पंजाब के गुरदासपुर में उनकी समाधि भी है।