अब तक आपने पढ़ा की एक गाँव मे हुई तेज बारिश से बचने के लिए लोगो ने एक मंदिर का सहारा लिया। एक एक करके लोग बढ़ने लगे। तब सब ने निर्णय लिया की जो बहार है उसे बहार ही रहने दो, सभी के मना करने के बावजूद मुखिया ने एक बूढ़े को मंदिर के अंदर लिया, जब एक दूसरी औरत मंदिर मे साहरा लेने आई तब खुदगर्ज वही बूढ़ा मुखिया का विरोध करने लगा। अब आगे…
इस कहानी का पहला भाग यहाँ पढ़िये…
बुढे की बात सून मुखिया गुस्से से आग बबुला हो उठा ओर बोला “केसे स्वार्थी हो तुम सब? अपनी जान बच गई तो, दुसरो का दर्द भूल गये? याद करो तुम भी इसी लाचारी में बाहर थे। अगर मैं तुम सब को अंदर न लेता तो आराम से इस मंदिर में रह सकता था, पर मैंने सब का विचार किया। ये औरत भी अंदर आयेगी.” ऐसा बोल मुखिया ने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही ओरत अपने दो बच्चोें को लेकर अंदर आ गई! अब सच में वहा खडा रहना भी मुश्कील था। कुछ देर बाद बुढा तडप उठा, ओर बोला अब तो यहा घुटन सी हो रही है। इस पर वह औरत भी बोली: “हाँ – बैठना तो छोडो खडे रहने के भी लाले पड रहे है”।
मुखिया ने शांती से जवाब दिया “धीरज रखे कुछ ही देर में बारिश रुक जायेगी। तब हम मंदिर से बहार निकलेंगे”।
इस पर एक आदमी ने चीड़ कर कहा “मुखिया, आवाज सुनो पानी के टपकने की आवाज यहाँ तक आ रही है, यह बारिश रुकेगी नही, अब तो किसी एक को बहार निकालना ही पडेगा.”
मुखिया ने आश्चर्य से कहा: “पर हम किसे बाहर निकालेंगे?”
इस पर बुढे ने कहा: “किसे क्या? हम तुम्हे ही बहार निकालेंगे। अगर तुम अंदर रहे तो जरूर किसी न किसी को फिर से अंदर ले लोगे”।
सब एक साथ बोले: “सही बात है.”
इस पर मुखिया ने गुस्से से कहा “तुम ये ठीक नही कर रहे हो, तुम वही गलती कर रहे हो जो सोमगढ के लोगो ने की थी।
एक ने पुछा: कोनसी गलती? सोनगढ की क्या कहानी है?”
इस पर मुखिया ने थोडा रुककर कहा “ऐसी ही एक बारिश में सोनगढ के कुछ निवासियों ने एक झोपडे में सहारा लिया। वह झोपडा एक मनहूस ओरत का था। बाहर तेज बिजलीया चमक रही थी, अंदर के लोगो ने सोचा की अगर वह मनहूस ओरत झोपडे में रहेगी, तो जरूर बिजली झोपडे पे गीरेगी। ओर उन्होने उसे धक्के मार मार कर बहार निकाला, जेसे ही वो ओरत बहार गई, झोपडे पे बिजली गिरी ओर सब राख हो गया। उस ओरत के पुण्य प्रताप से ही वह अब तक बचे थे..। समझे?”
बुढे ने कहा: “ओ पुण्यशाली, हमारा जो होना है होगा। तू बहार जा। ओर सब ने उसे धक्के मार मार कर बहार निकाला। ओर झट से दरवाजा बंध किया”।
मुखिया ने बाहर से जोर जोरो से दरवाजा खटखटाया “अरे मेरी बात सुनो, दरवाजा खोलो। यह तुम अच्छा नही कर रहे। हम सब बच सकते है। मेरी बात सुनो”।
पर अंदर के लोगो ने उसकी एक बात नही मानी। ओरत को कुछ अच्छा नही लगा। उसने कहा “अरे मुखिया को अंदर ले लो, आखिर उसी ने तो हमारी जान बचाई है! अगर कुछ अमंगल हुआ तो?”
ओर ऐसा बोल वह दरवाजा खोलने लगी, तभी बुढे ने उसे रोककर कहा बेवकूफ लड़की बहार बारिश की आवाज सून। पानी अब बहुत बढ गया है, दरवाजा खोलते ही वह मंदिर में भी आ सकता है, ऐसा बोल उस बुढे ने एक ताला जेब से निकालते कहा “घर का दरवाजा खोला ही था की पानी मेरी ओर आते देख में भागा था, सो अच्छा हुआ ताला मेरे पास ही रह गया। अब कोई दरवाजा नही खोलेगा। ओर चाबी मेरे पास रहेगी। जब तक मैं न कहू दरवाजा नही खुलेगा, ओर ए लडकी – तू भी ज्यादा चटर पटर करेगी तो तुझे भी बहार निकाल देंगे.”
बात को दो दिन हो गये..। मंदिर का दरवाजा बाहर से कोई जोरो से खटखटा रहा था। अंदर थी निरव शांतता! अब दरवाजे पे कोई भारी चीज पटकने की आवाज आने लगी। ओर कुछ ही देर में दरवाजा खुल गया! मंदिर में मुखिया के साथ कुछ लोग अंदर दाखील हुए। अंदर पड़ी लाशो को देख मुखिया ने आह भरी, ओर कहा “मुझे लगा था ऐसा ही होगा! जब मुझे बाहर फेका गया मेने लाख कोशिश की उन्हे समजानेकी की भाई दरवाजा खोलो, बारिश रुक गई है! पानी उतर रहा है, अगर हम किनारे किनारे चलकर टील्ला उतर जाये तो सब बच सकते है, अगर वे दरवाजा खोलते तो मैं उन्हे दिखाता की बारिश का नहीं पर मंदिर के गुंबज पर जमा हुआ पानी सिर्फ टपक रहा है!
एक गावंवालो ने कहा: “पर मुझे यह समझ नही आ रहा की ये लोग दम घुटने तक अंदर क्यो रहे? बाहर निकलने का प्रयास क्यो नही किया?”
मुखिया ने कहा: यह ही बात तो मेरे भी समझ में नही आ रही।
अपने दोनो हाथो से मुट्ठी दबाये बुढे की लाश अभी भी कोने में पडी थी!
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Very nice really good story plot by Prashant Subhashchandra Salunke
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बहुत ही बेहतरीन कहानी
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Kya behetarin kahani… mene dono part padhe. Dono badhiya he.. please writer ka contact number de
Super and amazing story
Kya baat he! Maja aa gaya
Dono part badhya he…..
Very nice story