अँधा बांटे रबड़ी, घूम - धूम अपने को देय - Folktale on Hindi Proverb

अँधा बांटे रेबड़ी, घूम – धूम अपने को देय Folktale on Hindi Proverb

एक गड़रियों का गाँव था। ये लोग अधिकतर बकरियां और भेड़े चराने का काम करते थे। उनमें कई लोग ऊंट भी रखते थे। ऊंट से गाँव के आस – पास लगने वाले हाटों का सामान लाते, ले जाते थे।

एक दिन एक गड़रिया ऊंट खरीदकर लाया। उसने इस ख़ुशी में लोगों को प्रसाद बांटना चाहा। उसने दो व्यक्तियों को बनिया की दुकान पर भेज दिया। बनिया के यहाँ उस समय कोई मिठाई तैयार नही थी, लेकिन रेबडियां थीं। वे लोग दो सेर रेबडियां खरीदकर ले आए। उस समय उंटबरिया के दरवाज़े पर सैंकड़ों लोग इकट्ठे थे। दोनों ने रेबडियों का अंगोछा चबूतरे पर रख दिया।

अब रेबडियां बांटने का समय आया तो समझदार और बुजुर्ग व्यक्ति को चुनने के लिए लोग सोचने लगे। वहां बैठे नैनसुख का नाम लिया गया। एक आदमी उठा और नैनसुख को लेकर आया। रेबडियों का अंगोछा नैनसुख को पकड़ा दिया। नैनसुख ने अंगोछा की झोली बनाकर बांए कंधे पर टांग ली।

नैनसुख के हाथों में झोली आते ही आवाजें आने लगी थी। कोई कहता – बाबा मुझे देना रेबड़ी। कोई कहता – ताउजी, मुझे देना रेबडियां। इस प्रकार तरह – तरह की आवाज़ें आने लगी भीड़ में से।

नैनसुख थे तो बड़े होशियार लेकिन थे अंधे, बीच में खड़े थे और चारों ओर से आवाज़ें सुनाई पड़ रही थी। वे आँखे फाड़ – फाड़कर आवाज़ें पहचान रहे थे। आवाज़ें पहचानने में उन्हें महारथ हासिल था। आवाज़ से ही वे जान लेते थे कि बोलने वाले का नाम क्या है? उन्हें अपने घरवालों की, घर के आस – पास के लोगों की, उनसे रोज बतियाने वालों की आवाज़ें याद थीं।

एक आवाज़ आई, “काका मुझे देना।” नैनसुख तुरंत समझ गए कि यह तो आवाज़ मेरे भतीजे की है। नैनसुख बोले, “कौन, श्यामोला?” उत्तर मिला, “हाँ काका।” नैनसुख ने ‘ले’ कहा और रेबडियों की एक मुट्ठी उसकी ओर बढ़ा दी। दूसरी आवाज़ सुनाई दी, “दद्दू, मुझे भी देना।” नैनसुख ने आवाज़ों की भीड़ में पहचानते हुए पूछा, “कौन, रामलाल?” उत्तर मिला, “हाँ दद्दू।” नैनसुख ने रेबडियों की एक मुट्ठी फिर निकाली और बढ़ा दी उस ओर। रामलाल ने रबड़ी ले लीं। अबकी बार एक आवाज़ पीछे से आई, “मुझे भी देना।” यह आवाज़ रामप्यारी की थी। नैनसुख तुरंत पीछे घूम गए ओर बोले, “कौन, रामप्यारी?” उत्तर मिला, ” हाँ, चाचा।” एक मुट्ठी उस ओर बढ़ते हुए कहा, “ले।”

नैनसुख रेबडियां बांटते – बाटते चकरघिन्नी हो गया। कभी दांय घुमते,  कभी बाएं घुमते। कभी पीछे घुमते। फिर उसी ओर घूम जाते। दूर से देखने वाला यही समझेगा कि भीड़ में कोई घूम – घूमकर नाच रहा है। वह भी पुरुष।

नैनसुख को थोड़ी – थोड़ी झुंझलाहट होने लगी थी। लोग समझ गए थे कि नैनसुख उन्ही को रेबडियां दे रहे हैं जिनकी वे आवाज़ पहचानते हैं या जो उनके थे। तो अब जैसा ही वे रेबडियों की मुट्ठी झोली से निकालते, तो दुसरे लोग बीच में ले लेते। और जब नैनसुख किसी की आवाज़ दोबारा सुनता तो नैनसुख बोल पड़ते, “अभी तो तुझे दी थी। फिर दोबारा मांग रहा है।”

नैनसुख की आवाज़ सुनकर वह व्यक्ति बोलता, “मुझे नही मिली। वो तो सदाशिव ने ले ली।”

यह तमाशा देखकर कुछ लोग फुसफुसाने लगे कि नैनसुख तो अपने लोगों को ही रेबडियां बाँट रहे हैं। तो भीड़ में से एक नैनसुख के बुजुर्ग साथी ने ही कहा, “भैया, ‘अँधा बांटे रबड़ी, घूम – घूम अपने को देय‘।”

Check Also

Lala Lajpat Rai Famous Quotes

Lala Lajpat Rai Famous Quotes in English and Hindi

Lala Lajpat Rai Famous Quotes: Lala Lajpat Rai (28 January 1865 – 17 November 1928), …

One comment

  1. Great story. Never knew we had this site.