बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी – कहानियां कहावतो की
एक परिवार में दो छोटे बच्चे थे। तीन वर्ष और पांच वर्ष के। एक दिन बच्चों के दादा एक बकरी खरीद कर लाये। पहले तो बच्चे बकरी से दूर-दूर रहते थे। जब वह सींग मारने को गर्दन टेढ़ी करती, तो बच्चे भाग खड़े होते। कुछ दिन बाद इस बकरी ने एक बच्चे को जन्म दिया। उन बच्चों ने उसे बड़े प्यार से देखा। थोड़ी देर में ही वह खड़ा होकर मिमियाने लगा। उन बच्चों को बड़ा आश्चर्य हुआ। दो एक घंटे बाद वह धीरे धीरे कुदकने भी लगा। दोनों बच्चे प्रसन्न होकर उसे देखते रहे। उनकी इच्छा हुयी कि बकरी के बच्चे को छुएं लेकिन बकरी के डर से वे पास नहीं गए।
सुबह होते ही दोनों बच्चे बकरी के पास पहुँच गए। उनके दादा बकरी के बच्चे को पकड़कर बच्चों के पास ले गए। बकरी के बच्चे को दोनों ने छेड़ना शुरू कर दिया। कुदक-कुदक्कर भागने लगा। दोनों बच्चे उसके साथ खेलने लगे। थोड़े दिनों में ही वह बच्चों का साथी बन गया। दोनों उस बच्चे के साथ खेलते रहे। बच्चों का उसके साथ बहुत अपनापन हो गया था। उसके दुःख-सुख से बच्चे द्रवित हो जाते थे।
अब बच्चा बकरी की तरह ही बड़ा हो गया था। जब ईद का त्यौहार आने वाला हुआ, तो उस बच्चे को खूब खिलाया जाने लगा। घर वालों की देखा-देखी बच्चे भी उसे खूब प्यार करने लगे थे।
बकरी का बच्चा पूरा बड़ा हो गया था। अब उसे घर के लोग बच्चा न कहकर बकरा कहने लगे थे। बकरी अपने बच्चों को बड़े होते ही खोटी आ रही थी। इस समय भी बकरी को लग रहा था की इसका भी समय निकट है। बकरी दुखी रहने लगी।
घर के लोग बकरी को दुखी देखने लगे। एक दिन घर के बच्चे ने दादा से पूछ लिया की यह बकरी दुखी क्यों है ? दादा के पास कोई माक़ूल जवाब नहीं था। लेकिन उत्तर तो देना ही था। दादा ने उत्तर देते हुए कहा कि बकरीद आ रही है उस दिन क़ुरबानी दी जायेगी। वैसे भी बकरा एक न एक दिन कटता ही है। यह तो बनाया ही गया है काटने के लिए। बकरी की ओर देखते हुए फिर बोले, ‘बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी।’
इतना कहकर दादा चुप हो गए।