एक दिन जाड़े में एक लड़का उस बाँध के पास से होकर जा रहा था; इतने में उसने देखा की बाँध में से धीरे- धीरे पानी निकल रहा है। तुरंत ही उसे अपने बाप की कही बात याद आयी। उसने विचार किया की “दौड़कर मैं यह बात अपने पिता से कहु या यहाँ से भागकर किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाऊ।” फिर उसके मन में आया कि “ऊँची जगह चढ़ने पर मैं अकेला तो बच जाँऊगा, पर दूसरे सभी लोग मर जायंगे। क्या, मै उनको भी किसी तरह नही बचा सकता? मै दौड़ता हुआ सबसे कहने जाऊँगा और इतने में पानी जोर से आ जायगा और छेद बड़ा हो जाने से सारा गाँव डूब जाएगा। इसलिये यदि किसी तरह बाँध में से आते हुए जल को रोक सकू तभी मै, मेरे पिता तथा सब लोग बच सकेंगे।”
इसके बाद उसने सोच-विचार कर अपना हाथ वहाँ दे दिया जहाँ से जल आ रहा था और इस प्रकार जल का आना तथा छेद का बढ़ना रोक दिया। सारी रात उसने इसी प्रकार अपना हाथ पानी रोकने में लगाये रखा। एक तो कड़ाके के जाड़े की रात थी, दूसरे वह ठंडी जगह बैठा था और तीसरे उसका हाथ पानी में डूबा हुआ था। इन तीनो कारणों से उसे बहुत अधिक जाड़ा लग रहा था, पर वह इसकी तनिक भी परवा न करके जहाँ-का-तहाँ बैठा रहा। घर पर उसका पिता उसकी बाट जोह रहा था। सबेरे के समय उधर से जाते हुए एक आदमी ने उस लड़के को बाँध के पास बैठे और बाँध के छेद में हाथ घुसेड़े हुए देखकर पूछा- “तू यहाँ क्या कर रहा है?” लड़के ने लडखडाती हुई आवाज में कहा कि “यहाँ से पानी निकलता है, इसको मैंने रोक रखा है, नही तो गाँव डूब जायँगे।”
इससे अधिक वह बोल न सका; क्योंकि वह भूखा था और घोर शीत के कारण बेसुध हो गया था। बाद उस आदमी ने उसका हाथ निकालकर अपना हाथ वहाँ डाल दिया और सहायता के लिये पुकार मचायी। थोड़ी देर में लोग आ गये और उन्होंने पानी निकलने की जगह को अच्छी तरह भर दिया। पीछे उस लड़के को लोगो ने बहुत सम्मान प्रदान किया; क्योंकि स्वय संकट झेलकर उसने सारे गाँव को डूबने से बचाया था।