कृष्णा – वीर राजपूत नारी की लोक कथा

वीर राजपूत नारी कृष्णा की लोक कथा

मेवाड़ के महाराजा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा अत्यन्त सुन्दरी थी। उससे विवाह करने के लिये अनेक वीर राजपूत उत्सुक थे। जयपुर और जोधपुर के नरेशों ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी। मेवाड़ के महाराणा ने सब बातों को विचार करके जोधपुर नरेश के यहाँ अपनी पुत्री की सगाई भेजी।

जब जयपुर के नरेश को इस बात का पता लगा कि मेवाड़ के महाराणा ने मेरी प्रार्थना अस्वीकार कर दी और अपनी पुत्री का विवाह जोधपुर कर रहे हैं तो उनहोंने अपना अपमान समझा। वे चित्तौड़ पर चढाई करने की लगे।

जोधपुर नरेश इस बात को कैसे सह सकते थे कि उनके सगाई करने के कारण कोई चित्तौड पर आक्रमण करे। फल यह हुआ की पहले जयपुर और जोधपुर के नरेशों में ही ठन गयी। दोनों ओर के राजपूत सैनिक युद्ध करने लगे। भाग्य जयपुर नरेश के पक्ष में था।

जोधपुर की सैना हार गयी, जयपुर नरेश विजयी हो गये! अब उन्होंने मेवाड़ नरेश के पास संदेश भेजा कि अपनी पुत्री कृष्णा का विवाह वे उनसे कर दें।

मेवाड़ के महाराणा ने उत्तर दिया – “मेरी पुत्री कोई भेड़-बकरी नहीं है कि लाठी चलाने वालों में जो जिते वही उसे हाँक ले जाय। मैं उसके भले-बुरे का विचार करके ही उसका विवाह करूँगा।”

जब जयपुर यह समाचार पहुँचा तो वहाँ की सैना ने कूच कर दिया। जयपुर नरेश ने मेवास के पास पड़ाव डाल दिया और महाराणा को धमकी दी – “कृष्णा अब मेवाड़ में नहीं रह सकती। या तो उसे मेरी रानी होकर जयपुर चलना होगा या मेरे सामने से उसकी लाश ही निकलेगी।”

महाराणा भीमसिंह बड़ी चिंता में पड़ गये। मेवाड़ की छोटी सी सैना जयपुर नरेश का युद्ध में सामना नहीं कर सकती थी। इस प्रकार की धमकी पर पुत्री को दे देना तो देश के लिये पराजय से भी बड़ा अपमान था। अन्त में उन्होंने जयपुर नरेश की बात पकड़ ली – “कृष्णा की लाश ही निकलेगी”।

चित्तौड़ के सम्मान की रक्षा का एक ही उपाय था – कृष्णा की मृत्यु। उस सुन्दर सुकुमारी राजकुमारी को मारेगा कौन?

महाराणा की आँखें रोते-रोते लाल हो गई थीं। महारानी के दुःख का कोई पार नहीं था; लेकिन कृष्णा ने यह सब सुना तो वह ऐसी प्रसन्न हुई, जैसे कोई बहुत बड़ा उपहार मिल गया हो। उसने कहा – माँ! तुम क्षत्राणी होकर रोती हो? अपने देश के सम्मान के लिये मर जाने से अच्छी बात मेरे लिये और क्या हो सकती है?

माँ! तुम्हीं तो बार-बार मुझसे कहा करती थीं कि देश के लिये मर जाने वाला धन्य है। देवता भी उसकी पूजा करते हैं।’

अपने पिता महाराणा से उस वीर बालिका ने कहा – “पिताजी! आप राजपूत हैं, पुरुष हैं और फिर भी रोते हैं? चितौड़ की सम्मान की रक्षा के लिये तो मैं सौ-सौ जन्म लेकर बार-बार मरने को तैयार हूँ। मुझे एक प्याला विष दे दीजिये।”

कृष्णा को विष प्याला दिया गया। उसने कहा – “भगवान एक लड़की की जय!” और गटागट पी गयी।

जब कृष्णा की लाश निकली, उस देश पर बलिदान होने वाली बालिका के लिये जयपुर नरेश भी हाथ जोड़कर सिर झुका दिया। उनकी आँखों से भी आँसू टपकने लगे।

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