बहुत समय पहले की बात है, एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किए। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया। राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे। राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूं, तुम इन्हें उडऩे का इशारा करो। आदमी ने ऐसा ही किया।
इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे, पर जहां एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था, वहीं दूसरा कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वह उड़ा था। यह देख राजा को कुछ अजीब लगा। क्या बात है जहां एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीं यह दूसरा बाज उडऩा ही नहीं चाह रहा? राजा ने सवाल किया।
जी हुजूर, इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है, वह इस डाल को छोड़ता ही नहीं। अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊंचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों ईनाम दिए जाएंगे।
फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ, राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने यह कारनामा कर दिखाया था। वह व्यक्ति एक किसान था। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे ईनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा- तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान नहीं कर पाए वह तुमने कैसे कर दिखाया।
मालिक, मैं तो एक साधारण सा किसान हूं, मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता, मैंने तो बस वह डाल काट दी जिस पर बैठने का बाज आदी हो चुका था और जब वह डाल ही नहीं रही तो वह भी अपने साथी के साथ ऊपर उडऩे लगा।
दोस्तो, हम सभी ऊंचा उडऩे के लिए ही बने हैं लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते हैं उसके इतने आदी हो जाते हैं कि अपनी ऊंची उड़ान भरने की, कुछ बड़ा करने की काबिलियत को भूल जाते हैं।