चतुर सुनार: एक समय की बात है – एक राजा था, जिसे अपने बुद्धिमान होने का बड़ा घमंड था। उसका विशवास था कि पूरे राज्य में एक भी ऐसा नही है, जो उसे धोका देकर साफ़ निकल जाए। एक दिन यह बात उसने मंत्रियों से कही। सबने हकमी भर दी, सिवाय एक के।
राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। “क्या तुम नही मानते कि मुझे धोका देना नामुनकिन है?”
“नही, महाराज, मै नही मानता,” मंत्री ने कहा। “हो सकता है, यह बात औरों पर लागू होती हो। लेकिन मै अच्छी तरह से जानता हूँ कि कुछ सुनार अपने ग्राहकों के साथ धोका करते हैं, हमारे अपने राज्य में भी।”
“मै नही मानता,” राजा बोला, “मै सभी सुनारों को बुलाऊंगा और उनसे खुद बात करूंगा।”
“पर महाराज, अगर यह बात सच है भी, तो क्या वे लोग अविकार कर लेंगे?” बाकी मंत्रियों ने प्रशन किया।
“आप लोग चिंता न करे। मै उनसे निपट लूंगा,” राजा बोला।
एक चतुर सुनार कैसे बना राजा: स्वप्ना दत्त
अगली सुबह ही राजा ने राज्य के सभी सुनारों को बुला भेजा।
आदेशानुसार सुनार आ पहुंचे। सब हैरान थे कि आखिर मजारा क्या है।
“राजा ने हम सबको क्यों बुलाया है?” एक ने पूछा। “क्या राजपरिवार में किसी विवाह था राज्याभिषेक कि अकस्मात तैयारियां हो रही है?”
“हो सकता है, रानियां अपने पुराने गहनों से ऊब गई हो और उन्हें तुड़वाकर नए घने बनवाना चाहती हो,” दुसरे ने जवाब दिया।
“नही,” तीसरा सुनार बोला। “रानियां तो हमे स्वयं ही बुलाती हैं। यह मामला तो महाराज से जुड़ा मालुम होता है।”
“मेरे विचार से महाराज पड़ोसी राज्य को कुछ ख़ास तोहफे भेजना चाहते हैं और कुछ गहने बनवाने की जल्दी में होंगे,” एक और सुनार बोला।
“इस तरह अनुमान लगाने से कोई फायदा नही होगा,” मदन, जो सुनारों में सबसे छोटा था, बोला। “महाराज स्वयं ही बता देंगे कि बात क्या है।”
इतने में राजा कमरे में प्रविष्ट हुआ। “मैंने आप लोगों से सीधा – सादा प्र्शन पूछने के लिए आपको यहाँ बुलाया है और मुझे आशा है कि आप सच बोलेंगे,” राजा ने कहा। “यदि मै आपको कुछ बनाने के लिए थोड़ा स्वर्ण दूँ तो क्या आप मेरे जाने बिना उस सोने में से जरा – सा भी चोरी कर सकते हैं? और यदि आप यह काम किसी की निगरानी में करे, तो भी क्या चोरी सम्भव है?”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
“हाँ?” राजा ने उन्हें गौर से देखते हुए पुछा, “बोलिए”।
सुनार एक-दुसरे का चेहरा देखने लगे।
“जी हाँ, महाराज। यदि हम सचमुच चाहे तो सम्भव है,” कभी सुनार एक स्वर में बोले।
“अच्छा?” राजा को अपने कानों पर विशवास नही हुआ। “आप लोग कितना सोना चोरी कर सकते हैं?”
“हम चौथाई हिस्सा तक निकाल सकते हैं,” कुछ सुनार बोले।
“हम आधा निकाल सकते हैं,” दुसरे बोले।
“और मै चाहूँ तो पूरा ही उड़ा सकता हूँ,” मदन बोला।
राजा ने नजर भरकर उसे ऊपर से नीचे तक देखा। “मै तुम्हारी बात नही मानता पर तुम एक बार कोशिश कर देखो,” राजा मदन से बोला। “तुम रोज राजमहल आओगे। वहां मेरे दिए हुए वस्त्र पहनोगे। मै तुम्हे सोना दूंगा और मेरी उपस्तिथि में तुम गणपति की एक प्रतिमा बनाओगे। जब भी मै बाहर जाऊँगा, मेरा अंगरक्षक तुम पर नजर रखेगा। जब तुम घर लौटोगे, तो सब कुछ पीछे छोड़ जाओगे, अपने पहने वस्त्र फिर से धारण करोगे और महल के बाहर कदम रखने से पहले तुम्हारी तलाशी ली जाएगी। जब तक तुम एक गणपति नही बना लेते, तब तक तुम्हारी यही दिनचर्या होगी।”
“जी महाराज,” मदन प्रसन्नतापूर्वक बोला।
“एक बार फिर सोच लो। क्या तुम यह कर पाओगे?” राजा ने पूछा।
“जी महाराज। मुझे विशवास है कि मै यह कर लूँगा,” मदन बोला।
“अगर तुम अपने उद्देश्य में सफल हो गए तो मै अपनी बेटी का विवाह तुमसे कर दूनग और अपने राज्य का आधा हिस्सा भी दे दूंगा,” राजा बोला। “पर अगर तुम असफल रहे, तो तुम्हे हमेशा के लिए देशनिकाला दे दिया जाएगा।”
“जो आज्ञा, महाराज,” मदन फिर मुस्कराते हुए बोला।
“याद रहे, मै या मेरे सेवक हमेशा तुम पर नजर रखेंगे,” राजा बोला।
“पागल हुए हो, मदन,” दुसरे सुनार बोले।
“तुम जानते हो कि तुम यह काम नही कर सकते! तुम क्या, ऐसे कड़े पहरे में कोई भी नही कर सकता।”
“मै तो कर सकता हूँ,” उसने आत्मविश्वास के साथ कहा।
मदन अगले दिन सुबह – सुबह ही महल पहुँच गया। उसे दुसरे कपड़े पहने, सोना और औजार लिए और काम शुरू कर दिया। राजा के पहरेदार दिन भर उसे घेरे रहते। अधिकतर राजा भी वहीँ आसपास रहता। मदन अपना काम – सोना पिघलाना, तराशना, आकार देना आदि, मन लगाकर करने लगा। अपने आसपास बैठी जनता से उसे कोई फर्क नही पड़ता था। दिन भर कि मेहनत के बाद, अपने वस्त्र फिर से पहनता, राजा के आदमियों को सब सामान सौंपता और अपने घर की ओर बढ़ जाता। लेकिन घर पहुँचने पर वह एक अजीबोगरीब काम करता। जिसके बारे में किसी को मालूम नही था। मदन पीतल की हूबहू प्रतिमा बना रहा था, जिस पर देर रात तक वह काम करता था।
ऐसा रोज होता। दिन भर राजसेवकों की बड़ी निगरानी में वह सोने का गणपति बनाता। और रात की चुप्पी में पीतल की प्रतिमा जिस में कभी-कभी उसकी बहन उसकी मदद किया करती। आखिरकार, सात दिन बाद, दोनों मूर्तियां तैयार हो गई।
सांतवे दिन मदन ने गणपति की प्रतिमा उठाकर सबको दिखाई।
“क्या यह पूरी हो गई?” राजा की आवाज में उत्सुकता थी।
“बस महाराज, जरा-सा काम बाकी है,” मदन बोला। “रात भर मूर्ती को ताजे दही में डुबोकर रखना होगा और अगली सुबह उसे चमकाऊँगा। यह बहुत जरूरी है।”
“अच्छा?” राजा हैरान था। “मैंने तो पहले कभी किसी को भी दही से मूर्ती चमकाते नही सुना।”
“यह मेरी ख़ास तकनीक है,” मदन ने कहा। “क्या मुझे ताजे दही का एक बड़ा मटका मिल सकता है?”
“अब यह भी अच्छी फरमाइश है,” शाही पहरेदार मुह बिचकाते हुए बोले।
“संध्या के समय ताजा दही कहाँ से आएगा? आमतौर पर लोग रात में दही जमाते हैं जिससे कि वह सुबह तक तैयार हो जाए। तुम्हे दही चाहिए था तो सुबह क्यों नही बताया? हम थोड़ा दही जमाकर रखते।”
“मै बिलकुल ही भूल गया था,” मदन बोला। “क्या बाजरा से भी नही मिल सकता?”
तभी उन्होंने एक युवती को सिर पर बड़ा – सा घड़ा लिए सड़क की ओर जाते हुए देखा। “तुम क्या बेच रही हो?” पहरेदार जोर से चिल्लाया।
“ताजा दही,” युवती बोली। “आज मुझे घर से आने में देर हो गई और मेरा दही बिका ही नही। अब इसे वापस घर ले जा रही हूँ।”
“रुको,” राजा का नौकर बोला। “इसे यहाँ लाओ। इसे हम खरीद लेंगे।”
“भगवान का शुक्र है,” मदन बोला। “मुझे तो चिंता हो रही थी। सोच रहा था कि दही नही मिला तो फिर क्या करूंगा?”
लड़की दही का घड़ा लेकर आ गई।
“मै पहले इसकी जांच करूंगा,” मदन बोला। “जाने अच्छा है भी या नही?”
“मुझे जब तक इसके पैसे नही मिलेंगे तब तक तुम्हे हाथ भी नही लगाने दूंगी। ताजा माल है। तुमने अगर खराब कर दिया तो आधे दाम पर भी नही बिकेगा, समझे।”
“अच्छा, अच्छा, ठीक है। हम इसे खरीद लेते हैं।,” मटके के अंदर झांकते हुए मदन बोला। “ठीक ही लगता है” कहते हुए उसने गणपति की स्वर्ण प्रतिमा घड़े में डाल दी।
राजा ने लड़की को सोने की अशर्फी दी। वह जाने ही वाली थी कि मदन ने उसे फिर आवाज दी। “मुझे यह दही अच्छा नही लगा,” वह बोला। “इसमें पानी ज्यादा है और इससे मूर्ती में वह चमक नही आएगी। मै कल सुबह ताजा दही लेकर अपना काम करूंगा।”‘
“और मै क्या इस दही का आचार डालूं?” लड़की गुस्से में बोली। “अब तो इसे कोई खरीदेगा भी नही!”
“खाओ, फेंको, जो मन में आए करो।,” मदन ने घड़े में से मूर्ती निकालते हुए कहा।, “और खबरदार ज्यादा बड़बड़ की तो। भूल गई, महाराज ने इसकी कीमत दे दी है।”‘
लड़की ने घड़ा उठाया और मुह में कुछ बड़बड़ाती हुई चली गई।
अगले दिन मदन ने मूर्ती ताजे दही मैं चमकाई और राजा के हाथ में दे दी। राजा ने अपने स्वर्ण विशेषज्ञ को बुलवाया। “इसे देखकर बताओ कि सुनार ने इसमें से कितना सोना गायब किया है?”
विशेषज्ञ स्वर्णकार ने उसे जांचना शुरू कर किया। लेकिन बार – बार जांचने – परखने के बाद भी उसकी समझ में कुछ नही आया।
“बताओ भई, क्या बात है?” राजा अधीर हो वहला था।
“महाराज, इसमें तो रत्ती भर भी सोना नही है।”
“यह कैसे हो सकता है?” राजा एकदम हैरान था। “स्वयं मैंने इसे सारा सोना दिया और इसने मूर्ती भी मेरे ही सामने बनाई है। इसे कमरे में से एक भी वस्तु बाहर नही ले जाने दी गई।”
“यह सब तो मै नही जानता। पर इतना जानता हूँ कि यह मूर्ती खालिस पीतल की है। सोने का तो इसमें नामोनिशान भी नही है,” विशेषज्ञ बोला।
“यह तो कमाल हो गया,” राजा चकित था।
“मै न कहता था कि मै कर सकता हूँ,” मदन मुस्कराते हुए बोला।
आखिरकार राजा ने मदन से पुछा कि उसने यह चकमा दिया कैसे।
“महाराज, क्या आप वादा करते हैं कि आप मेरे सच बताने पर आप मुझे सजा नही देंगे?” मदन ने पूछा।
“विशवास रखो, मै तुम्हे सजा नही दूंगा,” राजा ने कहा।
फिर मदन ने सारी कहानी सुनाई – वह दही बेचने वाली लड़की, मदन की बहन थी जो ठीक उसी वक्त वहां आ पहुंची थी। पीतल की प्रतिमा, जो मदन रात में बनता था, पहले से ही दही में छिपा दी गई थी। जब वह लड़की महल में आई तो मदन ने सोने की मूर्ती दही में डालकर पीतल की निकाल ली।
कहानी सुनकर राजा पहले तो हैरान हुआ और फिर उठकर हंस पड़ा। “भई, वाह! तुम तो बहुत होशियार निकले। तुमने हम सबको कैसा बुद्धू बनाया! मै मान ही नही सकता था कि कोई मेरी आँखों में भी धुल झोंक सकता है। पर तुमने मुझे गलत साबित कर दिया।”
वादे के मुताबिक़, मदन कि शादी राजकुमारी से हो गई और राज्य का आधा भाग भी उसे दे दिया गया। राजा बनने के बाद मदन ने फिर कोई चालबाजी नही की। कई वर्षों तक उसने प्रजा का स्नेह पाया और राज्य के श्रेष्ठतम राजाओं में उसका नाम गिना जाने लगा।