अली का गधा

अली का गधा

कच्छ के एक गाँव में एक युवक रहता था जिसका नाम था अली। अली बढ़ई का काम करता था। गाँव के सब लोग उसे बहुत प्यार करते थे। वह छोटा – सा था, तभी उसके माता – पिता की मृत्यु हो गई थी। इसलिए वह अकेला ही रहता था।रोज शाम को अपना काम खत्म करके, अली गाँव के पोखर के किनारे जा बैठता और सोचता कि काश, उसका भी अपना घर – बार होता। ले – देकर सगे – संबंधियों से उसकी एक बूढी मौसी भर थी, जो चार गाँव आगे रहती थी। अली को उससे मिले कई साल हो गए थे।एक रोज अली ने तय किया कि वह अपनी मौसी से मिलने जाएगा। आखिर वह बूढी थी। हो सकता है, बीमार भी हो। अली ख्याली – पुलाव पकाने लगा और सोचने लगा कि उसे देखते ही मौसी की आँखों में ख़ुशी के आंसू उमड़ आएंगे।

अगले दिन सूर्योदय से भी पहले, अली अपनी मौसी के घर के लिए निकल पड़ा। विमल, जो एक कुम्हार था और अली का मित्र भी, ने बहुत कोशिश की कि अली अपने जाने का इरादा छोड़ दें। “एक बार फिर सोच लो,” विमल अली से बोला। “तुम्हे अपनी मौसी से मिले हुए अरसा बीत गया है। हो सकता है, तुम्हे देखकर वह इतनी खुश न हो, जितना तुम सोच रहे हो। मेरा चचेरा भाई उसी गाँव में रहता है और उसने मुझे बताया है कि वह विधवा है और बहुत अमीर भी, पर साथ में बहुत ही कंजूस भी है। हो सकता है, तुम्हे देखकर वह सोचे कि तुम उसका पैसा हड़पने आये हो।”

लेकिन अली तो जाने की ठाणे बैठा था और विमल की बात का उस पर कोई असर नही हुआ।

अली के पास अपना कोई गधा तो या नही, इसलिए तपती हुई धुल – शनी सड़क पर वह पैदल ही चला जा रहा था। जब सूरज सिर पर चढ़ आया तो अली ताड़ के पेड़ों तले बैठकर सुस्ताने लगा। थका मांदा, भूक से बेहाल अली सूर्यास्त तक अपनी मौसी के गाँव पहुँच ही गया। गाँव में घुसते ही, अली को एक मोची मिला, जो अपनी दूकान बंद कर घर जाने की तैयारी में था। जब अली में उसने अपनी मौसी के घर का रास्ता पूछा तो मोची उसकी तरफ बड़े कौतूहल से देखने लगा।

“तुम इसी सड़क पर सीधे चलते जाओ। तुम्हे एक बहुत ही विशाल घर मिलेगा जिसे देखकर लगता है कि अब गिरा, और तब गिरा,” मोची बोला। “पर ऐसा न सोचना कि वहां तुम्हारा स्वागत – सत्कार होने वाला है और गर्मागर्म खाना मिलने वाला है,” उसने फिर कहा। “वहां जो विधवा रहती है, वह अव्वल दर्जे की कंजूस है। अगर बच्चे उसके बगीचे में गिरे हुए फल भी उठाने जाते हैं तो उन्हें भी भगा देती है।”

अली भारी कदमों से मौसी के घर की तरफ चलने लगा। वह पसोपेश में था। हो सकता है, विमल की ही बात सच हो? जब घर नजर आया तो अली का दिल डूबने लगा। घर की दीवारें मटमैले पीले रंग की थी और जगह – जगह से उनका रंग उखड़ रहा था। खपरैल टूटी पड़ी थी और आँगन में कूड़ा – कर्कट जमा था। टूटे हुए दरवाजे के पास वाले खम्बे के साथ ही एक अधमरा, उदास – सा गधा बंधा था। गधे की पसलियां तक नजर आ रही थी। उसकी आँखें देखकर अली को लगा कि शायद ही उसने इतनी दुखभरी आँखें पहले देखी हों। गधा अली की ओर ऐसे ताकने लगा, जैसे खाने की भीख मांग रहा हो। अली को गधे पर दया आई। उसे लगा कि उसे वापस जाकर पड़ोस की दूकान से थोड़ा चारा लाना चाहिए। अली चारा लाया ओर गधे के आगे फैला दिया। गधा गपागप करके ऐसे खाने लगा मानों उसने कई दिनों से कुछ नही खाया हो।

“कौन है?” एक कर्कश आवाज आई। “मेरे गधे से तुम्हे क्या काम है?”

अली ने मुड़कर देखा तो पके बालों वाली पतली – सी बुढ़िया खड़ी थी। “तो यह है मेरी मौसी,” अली मन ही मन बोला। वह साडी में थी, जो सफेद कम, पीली ज्यादा थी। उसके माथे पर क्रोध की रेखाएं साफ़ दिखाई पद रही थी।

अली ने उसे अपना नाम – पता बताया पर मौसी, अली से मिलकर बिलकुल खुश नही हुई। ओर जैसा कि विमल ने कहा था, मौसी को लगा कि अली उसके पैसे ऐंठने ही आया है।

“मैं तो बहुत ही गरीब हूँ,” वह बोली। “मेरे पास कोई पैसा – वैसा नही है। अपना ही पेट मुश्किल से पालती हूँ, तो तुम्हे क्या दूँ?” तुम तो बस मुह उठाकर आ धमके मेरे पास।”

अली को बुरा तो बहुत लगा मगर उसने कुछ भी जाहिर नही होने दिया। उसे तो सिर्फ थोड़ी आत्मीयता, थोड़ा प्यार चाहिए था। उस रात जब अली रसोई के फर्श पर सोया तो उसका पेट खाली था ओर मन भरा हुआ। मौसी ने उसे सिर्फ एक कटोरी पतला, कुनकुना – सा दलिया खाने के लिए दिया था ओर जब अली ने कहा कि वह अगली सुबह लौट जाएगा तो एक बार भी उसे रोकने कि कोशिश नही की।

अगले दिन जब अली चलने को तैयार हुआ तो मौसी बोली कि अगले दिन गाँव तक वह भी उसके साथ चलेगी।

donkey-of-ali-2“आज मंगलवार है – गाँव में बाजार लगेगा,” वह बोली। “मै अपने इस निखट्टू गधे को आज ही बेच दूंगी। काम न काज का, दुश्मन अनाज का!”

बेचारा, गधा क्या था, हड्डियों का ढांचा भर था। किसी को बैठा तो सकता नही था। अली ओर मौसी जैसे – तैसे उसे बाजार तक ले गए। गाँव भर के लोग वहां जमा था। दुकानदार ओर खरीददार चिल्ला – चिल्लाकर आपस में मोलभाव कर रहे थे। झुण्ड के झुण्ड दुकानों के आसपास खड़े तरह – तरह की चीज़ें देख रहे थे – चटकीले कपड़े, सजीले मटके, कई तरह के फल ओर सब्ज़ियाँ ओर बच्चों के लिए लड़की के खिलौने।

अली ओर बुढ़िया बाजार के बीचोबीच आ गए, जहाँ लोग अपने – अपने जानवर बेचने आये हुए थे। अपनी तीखी आवाज में मौसी ने घोषणा की कि जो भी उसके गधे का सर्वाधिक दाम देगा, गधा उसी का हो जाएगा।

अली यह देखकर बहुत हैरान हुआ कि बहुत से व्यापारी बोली लगाने के लिए आगे आए। तब उसे एहसास हुआ कि दरअसल गधा काफी हट्टा – कट्टा, चौड़ी पीठ वाला था। अगर उसे ठीक से खिलाया – पिलाया जाए तो वह अपने मालिक के बहुत काम आ सकता था। तभी एक धनवान व्यापारी ने, अपनी दर्पीली आवाज में, गधे के लिए ऊंची बोली लगाई।

गधा सिर उठकर सीधा अली को तकने लगा। ऐसा लगता था, जैसे वह अली से इल्तिजा कर रहा हो कि उसे खरीद ले। मानो कह रहा हो, “जरा इस सेठ को तो देखो, लगता है मुझ पर खूब कोड़े बरसाएगा ओर तुम्हारी मौसी से भी कहीं ज्यादा मेरी मरम्मत करेगा।”

“मै तुम्हारा गधा खरीदता हूँ,” अली एकदम मौसी से बोला।

बुढ़िया ने जब देखा कि अली का दिल गधे पर आ गया है ओर वह उसे किसी भी कीमत पर खरीदना चाहेगा, तो वह अली से बोले, “ठीक है, पर सेठ की लगाई बोली से 50 रुपय ज्यादा लुंगी।” ओर ले – देकर अली की पूँजी बस उतनी ही थी। पर अली गधे की मूक प्रार्थना को अनसुना नही कर पाया ओर बुढ़िया को उसकी मुंहमांगी कीमत दे दी।

उस सूखे से गधे को लिए अली अपने गाँव वापस आ गया। जैसे ही विमल ने उसे देखा तो ठहाका लगाकर हंस पड़ा। “मिलने गए थे मौसी से, ओर लौट रहे हो, इस हड्डियों के ढाँचे के साथ,” उसने चुटकी ली। “ठीक है अली भाई! अगली बार मेरा कहा तो मानोगे।”

अली ने गधे को भरपेट खिलाना शुरू किया। जल्दी ही गधा खूब मोटा – ताजा हो गया। अब गधा अली का बोझ भी ढोने लगा। अली हर वक्त अपने गधे से बतियाता रहता था ओर गधा भी न सिर्फ अली के शब्दों को बल्कि उसकी भावनाओं को भी खूब समझता था।

गधे की आँखों में सदा कृतग्यता का भाव रहता। अली को भी गधा खरीदने का कोई पछतावा नही था क्योंकि वह अली के जीवन का अहम हिस्सा बन चूका था। अब शाम को सब गाँव वालो के अपने – अपने घरों को लौट जाने के बाद भी, अली को अकेलापन महसूस नही होता था।

कुछ महीने बाद, अली को अपनी मौसी के देहांत की खबर मिली। अली को लगा कि मौसी के अंतिम संस्कार का जिम्मा उसका है। आखिर वही तो था, जो मौसी का अपना था। अपने गधे पर सवार हो, अली अंत्येष्टि की सब तैयारियां करने निकल पड़ा। क्रिया – कर्म के बाद अली ने अंतिम बार अपनी मौसी के घर में रात बिताई। वह गधे की रस्सी खोलने बरामदे में गया। गधा सुबह से ही बेचैन था ओर अली को ऐसा महसूस हो रहा था मानो गधे को मौसी के दुर्व्यवहार की पिछली बातें याद आ रही हो।

जैसे ही अली ने रस्सी खोली, गधा आँगन के दुसरे कोने में जाकर अपने खुर से जमीन खोदने लगा।

“शायद भूखा है,” अली ने ऐसा सोचते हुए उसके सामने हरी घास फैला दी। पर गधा जमीन खोदता रहा।

“शायद प्यासा है,” अली ने सोचा और उसे पीने के लिए पानी दे दिया। लेकिन गधे ने पानी भी नही पिया और जमीन खोदता रहा।

अली थका हुआ था। उसने चिढ़कर पुछा, “आखिर तुम्हे चाहिए क्या?” गधा बेचारा क्या बोलता, वहीँ खड़ा रहा।

यकायक अली को फावड़े का ख्याल आया। “फावड़ा?” रात के इस पहर में मुझे फक़वडे की क्या जरूरत है?” उसने खुद से पुछा। फट से उसके दिमाग में एक जबरदस्त बात आई। क्या गधा उसे कुछ बताने की कोशिश कर रहा है? क्या वह उससे जमीन खोदने की इल्तिजा कर रहा है?

अली तेजी के साथ वहीँ फावड़ा चलाने लगा, जहाँ पहले गधा खोद रहा था। उसने कुछ फुट ही खोदा था कि उसका किसी सख्त चीज़ से टकराया और दन्न की आवाज आई।

अली जल्दी – जल्दी हाथ चलाने लगा और तब उसे लोहे का एक संदूक दिखाई पड़ा। संदूक से बंधी हुई रस्सी खींचकर अली ने उसे बाहर निकाला।

उसे खोलते हुए अली का दिल जोर से धड़क रहा था। पूरा संदूक चांदी के बर्तनों और सोने के गहनों से भरा पड़ा था। अली समझ गया कि इसी संदूक में मौसी ने अपनी तमाम दौलत छिपाई हुई थी। मौसी ने जब इसे जमीन में गाड़ा होगा, तो गधे ने देख लिया होगा।

अली ने अपनी बाहें गधे के गले में डाल दी। “मेरे दोस्त,” वह प्रफुल्लित होकर बुला, “तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूँ?”
गधा आँखों से अली के प्रति आभार प्रकट कर रहा था।

अली ने संदूक को गधे की पीठ पर रखा और अपने गाँव लौट आया। उसने एक दूकान खोली और जल्दी ही एक कामयाब और ईमानदार दुकानदार के रूप में जाना जाने लगा। लेकिन वह कभी नही भूला कि यह सौभाग्य उसको अपने गधे के कारण ही मिला था।

भारत की लोक कथाएं ~ माला पांडुरंग

Check Also

Guru Nanak Dev Ji

Guru Nanak Dev Ji Biography For Students

Guru Nanak Dev Ji was the founder of one of the largest religions of the …