“मुस्कराना बंद करो, गोपाल,” महाराजा आगबबूला हो रहे थे। “याद है न, मैंने आज सबसे पहले तुम्हे ही देखा था।”
“जी, और मैंने आज सबसे पहले आपको देखा था महाराज!” गोपाल बोला।
“उससे क्या फर्क पड़ता है?” महाराजा चिढ़कर बोले। “मैं अपने दिन की बात कर रहा हूँ। तुम तो मेरे लिए सबसे ज्यादा अशुभ हो। आज सुबह सबसे पहले तुम्हारा चेहरा क्या देखा, घर आया और आते ही लहूलुहान! मुझे समझ नही आ रहा कि तुम्हे क्या दंड दूँ?”
“दंड, महाराज?” गोपाल ने हैरान होने का ढोंग किया।
“और क्या” महाराजा बोले। “मेरा इतना खून तो जिंदगी भर नही निकला। सोचता हूँ तुम्हे फांसी दे दूँ। जिस व्यक्ति की वजह से राजा का इतना खून बहा हो, वह इतना अशुभ है कि उसे मृत्युदंड तो मिलना ही चाहिए।”
गोपाल कुछ बौखला गया। “यह तो अन्याय है, महाराज!”
“क्यों जी?” महाराजा ने खीजकर पूछा।
“क्योंकि आप मुझसे कहीं ज्यादा अशुभ हैं, महाराज,” गोपाल बोला।
“यह बात कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?” महाराजा चिल्लाए। “इस गुस्ताखी के लिए तो तुम्हारा सिर दो बार कलम होना चाहिए!”
“हिम्मत इसलिए हुई क्योंकि बात सच है,” गोपाल भी अब अड़ गया था।
“कैसे?” महाराजा नाराज तो थे पर जानने को भी उत्सुक थे।
“बात साफ़ है, महाराज,” गोपाल बोला। “मैं अशुभ हूँ ठीक है। आपने सबसे पहले मुझे देखा तो आपको जरा – सी खरोंच आई। मैंने सबसे पहले आपको देखा, मुझे मृत्युदंड मिला। क्या अब भी मुझे समझाने की जरूरत है कि ज्यादा अशुभ कौन है?”
सुनकर महाराजा एक बार तो बिलकुल चुप हो गए। फिर एकाएक वह हंसने लगे। “तुमने ठीक कहा, गोपाल। एक छोटी – सी चोट मृत्युदंड के आगे तो कुछ भी नही। कौन जाने, मैं ही ज्यादा अशुभ हूँ! पर मुझे इतना तो समझ आ गया है कि इस तरह की मान्यताएं कितनी फिजूल होती हैं और इसके लिए मैं तुम्हारा आभारी हूँ।”
“ऐसी बात है महाराज, तो क्यों न कुछ रसगुल्ले हो जाए?” गोपाल ने कहा।
“मैंने सुबह से कुछ खाया भी नही और भूख भी जोरों की लगी है।”
“तो ठीक है,” महाराजा कृष्णचन्द्र मुस्कराते हुए बोले, “तुम्हारे लिए अभी रसगुल्ले मंगवाते हैं – भरपेट खाओ।”
और इस तरह उस सुबह सबने मजेदार रसगुल्ले का नाश्ता किया।