एक समय की बात है – एक बहुत की भोला – भाला दम्पति था। पति – पत्नी, दोनों ही इतने ज्यादा भोले थे कि कई बार तो उनके निपट मूर्ख होने का भी संदेह होता था।
एक रात में कुछ शोर सुनकर दोनों उठ बैठे। “मालूम होता है, घर में चोर घुस आए हैं,” आदमी फुसफुसाया। “क्यों भागवान, तुम्हे कुछ सुनाई दे रहा है?”
“हाँ, चोर ही होंगे, वरना रात के इस पहर में घर में और कौन आवाज करेगा?” औरत भी फुफुसाकर बोली। “क्या मैं शोर मचाकर पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाऊँ?”
“नही, नही, रुको,” आदमी बोला। “तुम जानती हो कि हम कोई भी ख़ास काम सही मुहूर्त निकाले बिना नही करते। पुश्तों से हमारे परिवार कि यही रीती रही है। मुझे पंचांग में देखना होगा कि सहायता के लिए पुकारने का सबसे अच्छा समय कौन सा है।” आदमी दबे पैर अलमारी की तरफ गया और अपनी पोथियाँ और किताबें दीपक की मद्धम रोशनी में पढ़ने लगा।
“कहो जी, तुम्हारी पोथी क्या कहती है?” पत्नी व्यग्र होकर बोली।
“हे भगवान,” आदमी निराश होकर सर हिलाने लगा। “मेरे पंचांग के मुताबिक ऐसा कुछ भी करने के लिए शुभ घड़ी छह महीने बाद आएगी। तब तक हम कुछ नही कर सकते। फिलहाल तो फिर से सो जाने में ही भलाई है।”
पत्नी को यह बात कुछ ठीक नही लगी। उसे लग रहा था कि शायद इन्तजार केन ठीक नही होगा। हालाँकि वह यह बात भी जानती थी कि पंचांग और पत्रा देखने के बाद ही इस प्रकार के जरूरी काम तय किये जाते हैं। इसलिए वह चुप रही।
पति – पत्नी सिर तक चादर तानकर, चुपचाप लेट गए और नीचे के शोर को न सुनने की कोशिश करने लगे।
और चोर? उनके तो पौ बारह थे। जो कुछ भी उनके हाथ लगा, उसे समेटकर वे चंपत हो गए।
अगले दिन पति – पत्नी ने देखा – पूरा घर साफ़ था! पर चिड़िया तो खेत चुग ही चुकी थी – पछताने से भी फायदा नही था। छह महीने बीत गए। आदमी एक – एक दिन गिण रहा था और आखिर वह घड़ी आ ही गई, जो मदद के लिए शोर मचाने के लिए उत्तम थी।
“आज मैं इन चोरों को नानी याद करा दूंगा,” आदमी बड़बड़ाया। उसने अपनी पत्नी को बुलाया। दोनों इतना चिल्लाए कि बस, आसमान ही सिर पर उठा लिया। “बचाओ, बचाओ। चोर… घर में चोर घुस आए, बचाओ।”
पड़ोसियों ने सुना तो दौड़े चले आए। “कहाँ हैं चोर?” उन्हें उनके घर में उस दम्पति के सिवा और कोई नही दिखा।
“ओह, चोर तो छह महीने पहले आए थे,” आदमी बोला। “आज तो मैं आप सबको सिर्फ इसकी जानकारी दे रहा हूँ।”
“अरे मूर्ख, उसका क्या लाभ?” लोग गुस्से में बोले। “जो छह महीने पहले चोरी करके चले गए, उन्हें हम आज कैसे पकड़ें?”
आदमी धीरे से बोला. “बात यह है कि तब मदद के लिए पुकारने का मुहूर्त जो अच्छा नही था।”
ऐसा सुनकर सभी लोग एक साथ खिलखिलाकर हंस पड़े।