श्री गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का सम्पादन भाई गुरदास जी की सहायता से किया और रागों के आधार पर गुरुग्रंथ साहिब जी में संकलित बाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है।
सिख धर्म में सबसे पहला बलिदान शांति के पुंज और शहीदों के सरताज पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी का हुआ। उन्हें मुग़ल बादशाह जहांगीर ने अकारण ऐसी अमानवीय यातनाएं देकर शहीद किया जिसे सुन कर रूह कांप जाती है।
गुरु अर्जुन देव जी: शहीदों के सरताज
विश्व को “सरबत दा भला” का संदेश देने वाले तथा विश्व में शांति लाने की पहल करने वाले किसी महान गुरु को यातनाएं देकर शहीद कर देना मुगल साम्राज्य के पतन का भी कारण बना।
गुरु अर्जुन देव जी का बलिदान अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्यलोकनायक थे जो दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते। उनके मन में सभी धर्मों के प्रति अथाह सम्मान था।
श्री गुरु अर्जुन देव जी के बाद श्री गुरु हरगोबिद साहिब जी ने शांति के साथ-साथ हथियारबंद सेना तैयार करनी बेहतर समझी तथा मीरी-पीरी का संकल्प देते हुए श्री अकाल तख्त साहिब की रचना की।
श्री गुरु रामदास जी के गृह में माता भानी जी की कोख से जन्म लेने वाले श्री गुरु अर्जुन देव जी का प्रकाश गोइंदवाल साहिब में हुआ। इनका पालन-पोषण गुरु अमरदास जी जैसे गुरु तथा बाबा बुड्डा जी जैसे महापुरुषों की देख-रेख में हुआ।
ये बचपन से ही बहुत शांत स्वभाव तथा भक्ति करने वाले थे। इनके बाल्यकाल में ही गुरु अमरदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि वह बाणी की रचना करेंगे।
गुरुगद्दी संभालने के बाद श्री गुरु अर्जुन देव जी ने जनकल्याण तथा धर्म प्रचार के कामों में तेजी ला दी तथा गुरु रामदास जी द्वारा शुरू किए गए सांझे निर्माण कार्यों को प्राथमिकता दी। नगर अमृतसर में आपने संतोखसर तथा अमृत सरोवरों का काम पूरा करवा कर अमृत सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब जी का निर्माणकराया, जिसका शिलान्यास मुसलमान फकीर साईं मियां मीर जी से करवा कर धर्मनिरपेक्षता का सबूत दिया।
गुरु जी ने नए नगर तरनतारन साहिब, करतारपुर साहिब, छहर्य साहिब, श्री हरगोबिंदपुरा आदि बसाए। तरन तारन साहिब में एक ओर तो गुरुद्वार साहिब तथा दूसरी ओर कुष्ठ रोगियों के लिए एक दवाखाना बनवाया जो आज तक चल रहा है। इन्होंने गांवों में कुओं का निर्माण कराया और सुखमणि साहिब को भी रचना की। गुरु जी ने सदैव परमात्मा पर भरोसा रखने तथा सर्व सांझीवालता का संदेश दिया।
अकबर की मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर बादशाह बना तो गुरु जी के भाई पृथ्वी चंद ने उससे नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं। जहांगीर गुरुजी की बढ़ती लोकप्रियता को पसंद नहीं करता था। उसे यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई कि गुरु अर्जुन देव जी ने उसके विद्रोही बेटे खुसरों की मदद क्यों की। वह गुरुजी की बढ़ रही लोकप्रियता से आहत था, इसलिए उसने उन्हें शहीद करने का फैसला कर लिया।
श्री गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 30 मई, 1605 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा व सियासत‘ कानून, जिसमें किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है, के अंतर्गत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया।
गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह जल गया तो इन्हें ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया, जहां गुरु जी का पावनशरीर लुप्त हो गया।
जहां गुरु जी ज्योति ज्योत समाए उसी स्थान पर लाहौर में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) बनाया गया है।
श्री गुरु अर्जुन देव जी का संगत को बड़ा संदेश था कि परमेश्वर की रजामें राजी रहना । जब आपको जहांगीर के आदेश पर आग के समान तपरही तवी परबिठा दिया, उस समय भी आप परमेश्वर का शुक्राना कर रहे थे: