उस परिवार मेँ एक लड़की भी थी। जब उसकी दादी चावल पकाती तो कुछ देर बाद चमचा से चला देती। फिर कुछ देर बाद हांडी का ढक्कन उठाकर चमचा डालती और कुछ चावल निकालती। वह उसमेँ से एक चावल निकाल कर देखती फिर चमचे के चावल हांडी मेँ डालकर ढक्कन रख देती। फिर थोड़ी देर बाद कुछ चावल निकालती देखती और यदि चावल पके हैं तो हांडी को चूल्हे से उतार लेती।
लड़की चावल पकने का पूरा कर्म इसी तरह देखती रहती। आश्चर्य मेँ बनी रहती लेकिन किसी से कुछ ना कहती थी। उसे दादी से पूछने मेँ डर लगता था। ओर किसी से वह पूछती ही नहीँ थी। एक दिन उसकी दादी ने जैसे हांडी चूल्हे से उतरकर रखी, तो उसने हिम्मत जुटाकर दादी से पूछ लिया, “दादी, चावल बनाते समय आप एक चावल ही क्यों देखती हैं? और चावलों को क्यों नही देखती?” उसकी दादी ने हँसते हुए कहा, “अरे पागल लड़की। तू यह भी नहीँ जानती। चावल इसी तरह पकाएँ जाते हैं।”
लड़की आश्चर्य मेँ डूबी सुनती रही। उसकी समझ मेँ कुछ नहीँ आया। सोचती रही – मैने दादी से पूछा था कि हांडी मेँ एक चावल क्योँ देखते हैं? दादी ने कुछ नहीँ बताया। कह दिया कि चावल इसी तरह पकाए जाते हैं। वही पास में उसके दादा जी बैठे हुए थे। वे ठहाका लगाकर हँसे। हंसी का ठहाका सुनकर लड़की और उसकी दादी दोनों आश्चर्य में पैड गए। उसकी दादी ने कहा कि इसमे ठहाका लगाने की क्या बात है?
फिर दादा लड़की की तरफ हँसते हुए बोले, “बेटा, सब चावल एक साथ पकते हैं। यानी, सब चावला आधे कच्चे होंगे, तो एक चावल भी आधा कच्चा होगा। जब सब चावल पके होंगे, तो एक चावल भी पका होगा ना। यानी एक चावल पका होगा तो सब चावल पके होंगे। इसलिए ‘हँड़िया मेँ एक चावल देखा जाता है’।”
अब उस लड़की की समझ मेँ आया एक चावल देखने का राज।