वह सिर के बाल तो देर – सबेर बनवाता रहता था लेकिन दाढ़ी – मूंछें बनवाने के मामले मेँ बहुत आलसी था। फिर भी दाढ़ी सिर के बालोँ के साथ बनवा लेता था लेकिन मूंछें कई महीनों बाद बनवाता था। वह भी घर के लोगों को बहुत कहना – सुनना पड़ता था तब।
एक दिन वह खाना खाकर घर से निकला। उसके यहाँ रिश्तेदार आए हुए थे। वे बाहर ही चबूतरे पर बिछी चारपाई पर बैठे थे। घर तथा कुछ मोहल्ले के लोग भी बैठे थे। सब लोग उसका चेहरा ध्यान से देख रहे थे। उसकी मूँछोँ में नीचे की ओर चावल का बहुत छोटा टुकड़ा लगा था। पीली दाल के भी छोटे दो – एक टुकड़े चिपके हुए थे। दो – एक लोग उसकी मूँछोँ की हालत देखकर हंस रहे थे। उसके चाचा भी वहीं बैठे थे। वे उससे बोले, “घर से सब लोग इसको समझाकर हार गए। दुनिया मेँ आता है। नाई के पास तक जाने मेँ इसके पैर टूटते हैं। दाढ़ी और सिर के बाल भी बड़ी मुश्किल से बनवाने जाता है। फिर भगवान ने इसको हाथ दिए हैं। हाथ से मूंछें नही संवार सकता।”
वहीँ उसके ताऊ भी बैठे हुए थे। उससे भी चुप नहीँ रहा गया। उसने कहा, ” भैया, असली बात है कि ‘हाथ – पाँव की कायली, मुह में मूंछें जायँ’।”
मोहल्ले का काका बोला, “ठीक कहते हो तुम। इसमें कुछ भी झूठ नहीँ है।”