एक दिन लड़के ने अपनी बहन के जाने के लिए कार्यक्रम बनाया। दो दिन का रास्ता था। चलते समय लड़के ने कुत्ते को अपने साथ ले जाना चाहा। उसने सोचा था कि रास्ता ठीक से कट जाएगा। लेकिन उसकी माँ ने मना करते हुए कहा कि यह घर की रखवाली करता है। रास्ते में तमाम कुत्ते मिलेंगे। उनसे बचना मुश्किल हो जाएगा। उसने जब तोता को ले जाने के लिए कहा तो माँ ने कहा कि इससे पूरे दिन बातें करती रहती हूँ। रास्ते में कोई बिल्ली मार देगी। फिर उसकी माँ ने कहा कि इस नेवले को लेजा। तू इसी से अधिक शरारतें करता है।
दूसरे दिन जब वह चला तो नेवले को साथ ले लिया। उसके गले में लंबी पतली रस्सी बांद राखी थी। नेवला दौड़ता हुआ आगे – आगे चला जा रहा था। चलते – चलते रात हो गई। वह गाँव के बाहर मंदिर के पास पीपल के पेड़ के नीचे रुक गया। वहीँ पास में एक कुआँ भी था। खाना खाकर नेवले को खिलाकर धरती पर ही बिस्तर लगाया। नेवले कि रस्सी पीपल कि जड़ से बांद दी और सो गया। नेवला भी बैठा – बैठा ऊंघता रहा।
रात को वहां एक सर्प आया और उस लड़के को काटने के लिए फुंकारा। सर्प कि फुंकार से नेवले की आँख खुल गई। लड़के को संकट में देखकर नेवले ने सर्प पर आक्रमण कर दिया। काफी देर तक दोनों लड़ते रहे। नेवला जख्मी हो गया लेकिन उसने सर्प के टुकड़े – टुकड़े कर दिए।
लड़का बहुत थका हुआ था इसलिए उसकी नींद नही खुली। सुबह जब उठा, तो उसने अपने आस – पास खून देखा। फिर उसकी दृष्टि मरे सर्प के टुकड़ों पर गई। जख्मी नेवला बैठा था। उधर से एक साधू निकला और वहां आकर रुक गया। एक – दो व्यक्ति और आ गए थे। साधू को घटना के समझते देर नही लगी। और यह कहते चल दिए – ‘एक से भले दो‘।