“पर स्कूल का समय हो गया है” – यों कहकर वह लड़का चला गया और स्कूल आकर खेलने लगा।
बेचारा गाड़ीवान कबसे बैठा-बैठा थक गया और उसको भूख भी लगी थी; परंतु कोई आदमी उस रास्ते से नहीं आ-जा रहा था। वह लड़का निकला तो वह भी चला गया। इससे ‘अब क्या करूँ’ यों कहकर वह रोने लगा। इतने में जान विल्सन नामका एक बहुत छोटी उम्र का विधार्थी उधर से निकला। गाड़ीवान को रोते देखकर उसको दया आयी और उसके पास जाकर उसने कहा – “गाड़ीवान भाई ! मत रोओ। मैं तुमको गाडी ऊपर चढ़ाने में मदद करूँगा। चलो, खड़े हो जाओ।”
इतना सुनते ही वह गाड़ीवान उठकर आगे गया और उसने जुआ पकड़ा। पीछे से विल्सन गाड़ी को ढकेलने लगा। इस तरह गाड़ी को ऊपर पहुँचाकर वह अपनी स्लेट और पुस्तकें हाथ में लेकर स्कूल की और जाने लगा। इतने में उसने गाड़ी पर के बोरे से नीचे अनाज गिरते देखा और गाड़ीवान से कहा – “भाई ! गाड़ी को खड़ी करो। तुम्हारे बोरे से अनाज नीचे गिर रहा है। उसे बंद करके गाड़ी हाँको।”
गाड़ीवान ने गाड़ी खड़ी कर दी और छेद देखकर बोल उठा – “मैं तुम्हारा बड़ा ही आभारी हूँ। परमात्मा तुम्हारा भला करेगा। यदि तुमने यह बात मुझे न बतलायी होती तो मुझ गरीब आदमी का बहुत ही नुक्सान हो जाता।” इसके बाद वह छोटा लड़का स्कूल की ओर चला गया।
वह लड़का जब स्कूल में पहुँचा तो घंटा बजकर दस मिनट हो गये थे। किसी भी दिन वह देर करके नहीं आता था, इससे गुरुजी ने पूछा – “आज तुम्हे देर क्यों हुई? मैं आज तुमको माफ़ करता हूँ।” इसके बाद दोपहर की छुट्टी होने पर सब लड़के खेलने लगे। खेलते-खेलते जिस लड़के ने गाड़ीवान को मदद देने से इनकार किया था, उसने उस छोटे लड़के से कहा – “तुम क्यों देर से आये हो, यह मैं जानता हूँ। रास्ते में बैठे हुए गाड़ी चढ़वाने में देर लगी होगी और उसके लिये तुम्हे पैसे भी मिले होंगे। इसीलिए गुरू जी को तुमने साफ़ नही बतलाया।”
लड़के ने कहा – “मैंने पैसे के लिये गाड़ीवान की सहायता नही की थी।” यह सुनकर वह लड़का बोला – “मैं तो पैसे के बिना कोई भी काम नही करता। मुझको भी उसने कहा था; पर बदले में कुछ देने के लिये नही कहा था। इसीलिए मैंने इनकार कर दिया था। तू ही मुर्ख है कि जो उससे पैसे नहीं लिये।”
छोटे लड़के ने कहा – “बेचारा गरीब गाड़ीवाला अपनी गाड़ी बढ़ा नही सकता था। उसकी मदद करना तो मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। मेरी सहायता माँ-बाप ने की है, इसीसे मैं बच सका हूँ। इसीलिए मुझे भी दूसरों की सहायता करनी चाहिये।”
सारांश यह कि सेवा का बदला पैसे से लेना तो व्यापार करने के समान है। इसीलिये बिना बदला लिए ही सेवा करनी चाहिये।