जियो ओर जीने दो – प्रशांत सुभाषचन्द्र साळुंके

मैँ मेरे कुछ दोस्तो के साथ बैठा था। इधर उधर की बातें हो रही थी। अचानक सड़क किनारे से एक गाड़ी गुजरी। मेरा एक दोस्त उसे देखकर बावला सा हो गया ओर बुरी तरह से भौंकते हुवे उस गाड़ी के पीछे भागा। हम सब को उसका व्यवहार बड़ा विचित्र लगा! हम कुत्ते है! पर इतना तो जरूर समझ सकते है क्या सही है और क्या गलत। तभी गाड़ी रुकी उसमे से एक इंसान बाहर आया। नीचे झुक कर उठाया और मेरे दोस्त की ओर दे मारा पर मेरा दोस्त चौकना था और निशाना चूक गया और वह वहा से भागा। उस इंसान ने कुछ पत्थर हमारी ओर भी दे मारे – मुझे आश्चर्य हुआ की हमने तो कुछ नही किया था फिर हम पर हल्ला क्यों।

वहा से भागते हुए मेंने अपने दोस्त से कहा “पगले तु क्यों गाड़ीयोे के पीछे भागता है?” जवाब में उसने कहा “जब मैं छोटा था। तब मेरे दो भाई भी हुआ करते थे। बड़े मासूम से थे वो दोनों। उस दिन माँ ने हमें ठंड से बचने के लिए ऐसी ही एक गाड़ी के नीचे बैठा दिया। हम दुबकर वहीँ सो गए। रात की शीतल हवा में मुझे बहोत गहरी नींद आ गई थी। अचानक करीबन सुबह के 4 बजे मुझे कुछ गीला गीला महसूस हुआ मेंने आँख खोलकर देखा तो मेरे दोनो भाई के सिर कुचले हुवे थे! उनमे से खून बह रहा था। मेंने उन्हें चाटा पर सब व्यर्थ। मेंने देखा माँ ने हमें जिस गाड़ी नीचे सुलाया था वो गायब थी! मेरे भाइयो का कत्ल कर वह गाड़ी वहा से भाग गई थी! मैं बहुत रोया – मैं अपने भाइयों के साथ रहना चाहता था पर तभी एक खिड़की खुली उसमे से एक औरत बाहर आई ओर मुझे पत्थर दिखा के वहा से भगा दिया। मैं ढंग से अपने भाइयो की मौत पर रो भी नही पाया!

तभी सामने से एक इंसान आलशेशियन ब्रिड का कुता लेकर वहा से गुजरा जिसे देख मेरा दूसरा मित्र बोला। “ये देख ये विदेशी केसे हमारे देश मे आकर हम पर ही रौब झाड़ते है! “इन विदेशियो को तो मैं छोड़ूँगा नही” मेंने कहा अरे रुक पर वह कहाँ मानने वाला था?” वह उस विदेशी कुत्ते के पीछे दोड़ पड़ा। तभी उसे लेकर निकले उस इंसान ने एक पत्थर उठाकर मारा जो सीधा मेरे दोस्त के पैरो पर लगा – वह बुरी तरह से चिल्लाया। उसके जख्मो से खून बहने लगा। वह ठीक से चल भी नही पा रहा था। हम दौड़कर उसके पास गए। उसके जख्मो को चाटने लगे। मेरे कुछ दोस्त तो इतने डर गए की वो तो रोने ही लगे। तभी पास से गुजर रहे एक बंदे ने हमे धुत्कारा बोला “चलो, भागो यहा से, नाक मे दम करके रखा है इन आवारा कुत्तो ने!” हम जेसे तैसे वहा से भागे। ओर एक सुरक्षित जगह पर शरण ली। मैं उसके जख्म चाटने लगा। मेरा जख्मी दोस्त बोला “गाड़ी हो या विदेशी कुत्ता हम जब भी हमारे दुश्मनो पर हमला करने जाते है तो ये इंसान क्यो बीच में आते हैं? आखिर हम उनको तो कुछ नही कहते? फिर ये क्यों फट्टे में टांग डालते हैं? जी करता है इन सबको नोंच डालू – काट खाऊ।”

तभी पास वाले घर का दरवाजा खुला एक छोटी बच्ची उसमें से बाहर आई। उसके हाथ में दूध ओर बिस्किट थे। उसने हमें दूध में बिस्कुट डबोकर बड़े प्यार से खिलाये। मेरे दोस्त के जख्मो को देखकर तो वो रो ही पड़ी। दौड़कर अंदर गई ओर कुछ दवाइया ले आई, मेरे दोस्त के पैरो को उसने मरहम पट्टी की और प्यार से हाथ घुमाकर अंदर चली गई। मेरे दोस्त ने अपने पैरों पर सर रखकर आँखे बंद करते हुए बोला “ऐसे लोगो के लिए ही मैं अपने बदले की भावना को भुला देता हूँ!”

Check Also

World Lupus Day: Date, History, Significance, Facts about autoimmune disease

World Lupus Day: Date, History, Significance, Facts about autoimmune disease

World Lupus Day is dedicated to people worldwide who suffer from this debilitating autoimmune disease …