उस गृहस्थ ने उसे देखकर गाडी खड़ी कर दी और उस लड़के से पूछा- ‘लड़के ! तू क्या चाहता है?’
लड़के ने कहा – ‘मैं कुछ नही चाहता, मैं तो तुम्हारे घोड़ों को पानी पिलाने आया हूँ।’ इतना कहकर उसने अपने हाथ के डोल को घोड़ों के सामने रख दिया। घोड़े पानी पीकर तृप्त हो गये।
उसके बाद उस गृहस्थ पाकेट में से चाँदी के सिक्के निकाले और उस लड़के को देना चाहा।
लड़का बोला – ‘महाशय ! मैं पैसे के लिये पानी नही लाया। मैं गरीब लँगड़ा लड़का हूँ, मेरी माँ खेत के काम करती है, उससे हम दोनों को भोजन मिल जाता है। मेरी माँ ने ही मुझसे कहा है कि जब ईश्वर ने तुझे ऐसी स्थिति में डाला है तो इसमें भी उनका कोई अच्छा उदेश्य होगा; क्योंकि ईश्वर जो करता है, वह अच्छे के लिये ही करता है। तू अधिक चल नही सकता है; तो यहीं रहकर प्यासे आदमियों और जानवरो को पानी पिलाया कर, इससे भी ईश्वर का काम हो सकेगा। यहाँ से आठ मीलतक पानी का झरना या गाँव नही है। इसीलिये अपने इस कूँए में से पानी निकालकर उसका सदुपयोग करना ठीक होगा। अपनी माँ का यह कहना मुझे बहुत ठीक लगा और उसी के अनुसार मैं यह काम करता हूँ और इसको ईश्वर का काम तथा अपना कर्तव्य समझता हूँ। मैं पैसा नही लेता।’
उस गृहस्थ ने जब लड़के के मुख की ओर देखा तो उसे उसमे परोपकार और धार्मिकता का तेज दिखायी पड़ा। लड़के के इस सदाचार को देखकर वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और मन में ईश्वर की महिमा का गान करने लगा। उसके बाद वह लड़के को उत्साह के कुछ शब्द कहकर और उसका उपकार मान कर वहाँ से चला गया।
एक असत्क लड़का भी निःस्वार्थ भाव से कैसा परोपकार कर सका, यह बात ठीक-ठीक उसकी समझ में आने पर उसके मन के ऊपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और वह भी अच्छे-अच्छे परोपकार के काम करने लगा। परोपकार की कितनी बड़ी महिमा है।
Can’t understand the story!