मातृशक्ति

मातृशक्ति – देशभक्ति को प्रेरित करता लेख

मातृशक्ति: प्रात: काल के समय सुंदर-सुंदर चिड़ियाँ चहचहाती हैं। नन्हीं-नन्हीं कलियाँ अपना हास्य मुख खोले हुए अठखेलियाँ करती हैं और छोटे-छोटे बच्चे हँसते-खेलते दिखाई देते हैं। आम की सुपुष्पित डाल में से कोयल के संगीत की मधुर ध्वनी कानों में सुन पड़ती है। विशाल वृक्ष झूम-झूमकर जगदीश को प्रणाम करते जान पड़ते हैं। सम्पूर्ण सृष्टि में नवीन जीवन दिखायी पड़ता है। यह चहल-पहल, यह स्फूर्ति, यह सौन्दर्य किस शक्ति से उत्पन्न हुआ है।

मातृशक्ति – देशभक्ति को प्रेरित करता लेख

एक वृक्ष का छोटा-सा बीज है और उससे उत्पन्न हुआ एक विशाल वृक्ष। फिर उनमें जितना विशेष अन्तर है, उतना ही उनका घनिष्ट सम्बन्ध भी है। किन्तु यह विशाल वृक्ष कहाँ से उत्पन्न हुआ है? इसे जन्म दिया है एक छोटे से बीज ने। और अन्त में यह विशाल वृक्ष किसी शासक द्वारा नीर्धरित नियमों से बद्ध है।

सभी जड़ और चेतन उत्पन्न होते, बढ़ते, हँसते-खेलते और अन्त में मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वह कौन है जो इन सब का पालन करता है। ऐसी कौन-सी शक्ति है जो संसार के सभी कष्टों को सहकर, उसको जन्म देकर और उसकी रक्षा करने का भार अपने ऊपर लेती है। वही जन्म देने वाली और पालन करने वाली शक्ति मातृशक्ति है।

पिला दूध माता हमें पलती है।
हमारे सभी कष्ट भी टलती है ।।

माता ही दूध पिलाकर बच्चे का लालन-पालन करती है। माता ही उसके खाने-पीने, खेलने-कूदने और नहाने-धोने की चिन्ता करती है। माता में ही ऐसी शक्ति है जो सन्तान पर जरा-सा कष्ट पड़ने पर, जरा-सा दुःख होने पर अपने सभी कष्टों को विस्मृत कर देती है। और सन्तान के दुःख में सहानुभूति पूर्वक अपने जीवन को त्याग की वेदी पर न्यौछावर कर देती है। उस (सन्तान) के प्राण संकट में पड़ने पर अपने प्राणों का मोह त्याग देती है। जिस समय सारा संसार सोता है उस समय माता अपने बालक का रुदन सुनकर किस प्रकार चौंक उठती है और रोते बच्चे को गोदी में लेकर उसका बार-बार मुख चूमती और पुचकारती है। वही है स्नेहमयी मातृशक्ति।

आदर्श माता ही आदर्श सन्तान उत्पन्न कर सकती है। वीर माताओं ने ही वीर सन्तान को जन्म दिया है। वीर माता में ही वह शक्ति है जो युद्ध के घोर संकट के समय अपने हँसते-खेलते हुए छोटे-से बालक के गले में विजय की माला पहनाकर, उसके माथे पर टिका लगाकर रण क्षेत्र के लिये विदा कर देती है। और उसे यह कहकर आशीर्वाद देती है कि ‘यदि वीर हो तो अपनी माता की कोख को न लजाना।

अभिमन्यु ने चक्रव्यूह-भेदन की विद्या कहाँ सीखी थी? माता सुभद्रा ने ही अर्जुन के मुख से वह युक्ति सुनकर अपने गर्भस्थति बालक के मस्तिष्क में वह ज्ञान डाल दिया था। उसी वीरांगना सुभद्रा ने जन्म दिया था वीर बालक अभिमन्यु को। यवनों से देश की रक्षा करने वाला, ब्राह्मणों और गौ का पालन करने वाल, बड़े-बड़े विशाल दुर्गों को सरलता से जितने वाला, मातृभूमि का झण्डा फहराने वाल, संसार के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखाने वाला शिवाजी अपनी माता के ही कारण छत्रपति हुआ था। वीर शिवाजी ने वह शक्ति, धैर्य, बल और साहस अपनी माता जिजाबाई की ही शिक्षा द्वारा पाया था। और अपनी माता के ही कारण वह वीर छत्रपति शिवाजी बन गया।

माता की शिक्षा आजन्म बच्चों के पास रहती है। माता के ही कारण सन्तान को शारीरिक शक्ति, बुद्धि-शक्ति और ज्ञान-शक्ति मिल शक्ति है। माता ही शिक्षा द्वारा मनुष्य उन्नति के शिखर पर शीघ्र पहुँच जाता है। माता की ऐसी शिक्षा है जिससे मनुष्य असाध्यों को साध्य कर डालता है। माता ही शिक्षा द्वारा मनुष्य के ज्ञान का विकाश धीरे-धीरे होता है जो चिरस्थाई होता है। माता की ही शिक्षा से मनुष्य उन्नतिशील प्राणी बनता है। एक चिड़ियाँ का साधारण बच्चा भी पंख निकलते ही अपनी ‘माँ’ के सिखाये बिना उड़ नहीं सकता। यह चिड़ियाँ का बच्चा न केवल उड़ने का वरं माता के सिखाये हुए अनेक विस्मयजनक कार्य करता है। माता में ही ऐसी शक्ति है जो अपने बच्चे के मानवीय ज्ञान के छिपे हुए अंकुरों के ऊपर से अज्ञान का परदा हटाकर उनकी शक्तियाँ  प्रकाश में लाती हैं।

माता का प्रेम अपने बालक के प्रति अवर्णनीय है। किस प्रकार वह अपने बालक के प्रेम को चिरस्थायी रखती है। सारा संसार माता के महत्त्व को जनता है। मता का प्रेम अपने बालक के प्रति कैसे और किस प्रकार होता है। माता प्रेम के कारण मनुष्य बड़े-बड़े कार्य शीघ्र साध सकता है। माता के प्रेम के सम्मुख मनुष्य को सिर निचा कर देना पड़ता है, और उनकी आज्ञा शिरोधार्य करनी पड़ती है। जब गौ का नया बच्चा पैदा होता है, उस बच्चे को जरा-सा छेड़ने पर वह गौ कितना व्याकुल और क्षुब्ध हो जाती है। जब पशुओं में इतना प्रेम है तब मनुष्य का अपने बच्चे से प्रेम होना तो स्वाभाविक है। राम वन गमन के दृश्य को ध्यान करके देखिये। माता कैकेयी के महल से श्री रामचन्द्रजी अपने वन जाने का आदेश सुनकर लौट आते हैं, उस समय कौशल्याजी बार-बार पुत्र का मुख चूमती हैं। हर्ष से उनका शरीर रोमांचित हो जाता है। राम जी को गोद में बिठाकर हर्ष से हृदय से लगाकर प्रेम सने हुए वचन कहती हैं –

कहहु तात जननी बलिहारी। कबहिं लगन मुद – मंगलकारी।।
सुकृत सील सुख – सिंव सुहाई। जन्म लाभ कह अवधि अघाई।।

राम जी ने माता के वचनों को सुना और धर्म की गति को समझ कर माता के प्रश्न का उत्तर शान्तिपूर्वक दिया –

पिता दीन्ह मोंहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू।।

राम के मुख से सुन कर माता कौशल्या के कोमल हृदय में कितना कष्ट, कितनी वेदना हुई होगी। वह राम और कौशल्या के बिना और कौन जान सकता है। राम जैसे वीर के लिये भी वह भयभीत हुई, किन्तु धर्म की रक्षा करने के विचार से उन्हें ‘पितु बनदेव मातु बनदेवी’ कहकर विदा किया।

आधुनिक समय में भारतवासियों ने माता के महत्व और शक्ति को विस्मृति के तिमिर में विलुप्त कर दिया। जबतक भारत मातृशक्ति का मान तथा आदर करता रहा तबतक भारत समस्त संसार का मुकुटमणि रहा, किन्तु जबसे उसने माता की उपेक्षा की तबसे भारत का पतन प्रारम्भ हो गया।

प्राचीन इतिहास के पन्ने उलट डालीये, माता का ही महत्त्व दिखायी देगा। हर एक वीर ने, प्रत्येक वीरांगना ने मातृभूमि के लिये तन, मन, धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया। रानी दुर्गावती यद्दपि असहाय अबला स्त्री थी किंतु वीर माता की पुत्री ने माता का दूध पीकर ही दो बार यवनों को युद्ध में पराजित किया था और अन्त में लड़ते-लड़ते ही प्राण त्याग दिये थे। ऐसा कौन-सा प्राचीन वीर है जिसने भारतमाता की रक्षा के लिये, भारत माता को संकट के मुख से छुड़ाने के लिये अपने प्राण न त्यागे हों। तब भारत माता में वह शक्ति थी जिसके द्वारा मनुष्य एकता के सूत्र में बँधे हुए थे। वीर क्षत्रिय धर्मयुद्ध को ही अपना जीवन समझता था। वीर ने अपनी माता से साहस सिखा था और बल पाया था, जिस कारण वे अजर-अमर हुए। किन्तु अब भारतवासी माता के महत्त्व और उसकी शक्ति को नहीं जानते। इसी का फल यह हुआ है कि हमारे पैरों में बेड़ी और हाथों में हथकड़ियाँ पड़ी हुई हैं।

आज हम में न बल है, न साहस है न बुद्धि – क्योंकि हमे प्राचीन काल के पास से आज वैसी उच्च शिक्षा नहीं मिलती। यही कारण है कि हम माता के महत्त्व और शक्ति को नहीं जानते। अत: निद्रा के घोर अंधकार में सोये हुए भारत वासियों! जागो, और माता के महत्त्व और शक्ति को समझकर मातृभूमी की सेवा के लिये तत्पर हो जाओ। एक बार फिर भारत कह उठे – ‘जय मातृशक्ति।‘ भगवती माता दुर्गा का वीरस्वरूप सबके नेत्रों में समा जाय। ‘जय मातृशक्ति।

Check Also

When is Chinese New Year 2008?

When is Chinese Lunar New Year?

When is Chinese Lunar New Year? The Chinese New Year that is celebrated for about …

Leave a Reply