बच गया रे... बच गया...

बच गया रे… बच गया…

गाँव में झलूस था! सीमा पार के उस कुए पर हर साल की तरह इस साल भी मुर्गो कि बली दि जा रही थी। पंडित जी जोरो शोरो से मंत्र तंत्र पढ रहे थे, गाँव का उस्तव संपन्न हुआ ओर सभी अपने अपने घर लोटने लगे। रास्ते में छोटे सागर ने अपने पिताजी मनोहर का हाथ थाम और पुछा “पिताजी हम हर साल क्यो उस कुए पे मुर्गो की बली देते है?”

इस पर पिताजी मनोहर ने बडे गंभीर स्वर में कहा “बेटे ये हमारे गाँव की परंपरा है – बरसो से चली आ रही है।”

सागर जवाब से संतुष्ट न हुआ उसने जिद्द करके पुछा – “पर इस परंपरा का कोई तो कारण होगा ना?”

मनोहर ने एक पेड़ की छाव तलाश कर उसके नीचे बैठा ओर कहा “तू मानेगा नही, है ना?” तो सून बेटे – बहुत पुरानी बात है। मेरे दादाजी गोवर्धन को उनके पिताजी हरीलाल ने बताई थी। एक दिन उनके मित्र मांगीलाल पास के गाँव में अपने कुछ काम से गये थे, वहा से लोटने में उन्हे देरी हो गई थी, शाम का वक़्त था, अंधेरा छा रहा था। इसलिये मांगीलाल जल्दी जल्दी अपने घर जाना चाहते थे, अचानक मांगीलाल को लगा की उनके पीछे पीछे कोई आ रहा है। वे सावधान हो गये ओर रुक गये। तब आवाज भी रुक गई। थोडा आगे जाकर उन्होने देखा – उन्हे कुछ दिखाई नही दिया! वे पुनः अपने रास्ते चलने लगे। कदमो की आवाज फिर से सुनाई दि। तभी एक पत्थर उनके पीठ पर आकर लगा। उन्होने पलटकर देखा पर कुछ दिखाई नही दिया! अचानक पास में आम के पेड़ की पत्तीया अचानक हिलने लगी। मांगीलाल डर गया। उसने अपने कदम तेज कर दिये। अब कदमो की आवाज आनी बंध हो गई थी, वो थोडा सांस लेने रुके तभी फिर से वही आवाज आने लगी। मांगीलाल अब बेहद्द डर गया। वह अपने कदम गांव की ओर तेजी से बढ़ाने लगा। आखिरकार वो गाँव की सीमा पार के इस कुए के पास आ पहुचा।

तभी अचानक कुए से छपाक की आवाज आई ओर उसके बाद एक दिल को कांप देने वाली आवाज “बच गया रे… बच गया…”

मांगीलाल ने देखा वो गावं की सीमा के पास खडा था। डर से वो बुरी तरह कांप रहा था, बिना यहाँ वहां देखे वो वहा से सिधा गाँव की ओर भागा। गाँव आकर वह डर के मारे बेहोश हो गया, जब होश में आया तब उसने आसपास इक्कठा हुए गाँव के लोगो को अपनी कहानी सुनाई।

उसकी आप बिती सून गाँव के एक बुढे ने बताया की “मांगीलाल आज तू थोडे के लिए बच गया”, तुम्हे पता है? आज बडी अमावस्या है, ओर जंगल में बुरी आत्माये भटकती रहती है, पर उनके अपने इलाके होते है, दुसरे इलाको में वे जा नही सकते, मांगीलाल के पीछे जो था वो सीमा पार का भूत होगा। जो मांगीलाल के पीछे पड़ा था। पर मांगीलाल ने जेसे ही अपने गाँव की सीमा में पेर रखा वो उसका कुछ बिगाड नही सकता था, क्योकि उस भूत की अपनी सीमा वहा खत्म होती होगी, मांगीलाल को फसाने के लिए वो कुए में गुस्से से कुद गया, ताकी मांगीलाल पलट कर देखे! पर होशियार मांगीलाल ने पलट कर देखा ही नही इसलिये उसने मांगीलाल से कहा की आज तू मेरे हाथ से “बच गया रे… बच गया…”।

एक गाँव वाले ने डर से पुछा “मतलब कल वो हमे परेशान कर सकता है?”

बूढ़े ने कहा – “शायद”

सभी गाँव वालो ने इसका उपाय पुछा।

तब उस समझदार बूढ़े बाबा ने कहा की “हमे उस कुवे में गई अतृप्त आत्मा को तृप्त करना चाहिये ओर इसलिये हर अमावस्या बली देनी होगी, मुर्गो की बली ताकी वो आत्मा संतुष्ट रहे ओर फिरसे किसीको परेशान न करे”। तब से ये पूजा हर साल गाँव में होती है, ओर तब से गाँव पे कोई आपती भी नही आती। समझा बेटा?

बेटे सागर ने खुशी से कहा – “समझ गया पिताजी, मुर्गे की बली देकर हम उस कुवेवाली आत्मा को शांत रखते है। जिससे वो हमे परेशान न करे। अब मैं भी हर साल इसकी पूजा करूंगा क्योकि इसी रास्ते से मुझे स्कूल जाना होता है।”

बच्चा बात समझ गया ये जानकर मनोहर पेड़ की छाव से उठ खड़ा हुआ और उसका हाथ थाम अपने घर लोट गया।

*****

बहुत पुरानी बात है, एक गाँव में धनीराम नामक चोर रहता था। चुपचाप रात को वो लोगो के घर लुटता ओर दिन में शरीफो की तरह अपना गुजर बसर करता। एक दिन उसके कानो में बात आई की गाँव वालो को उस पर शक गया है ओर कल उसके घर की गाँव के सरपंच तलाशी लेंगे। वो बेहद डर गया। दिन भर सोचने के बाद उसे एक बढिया विचार आया। वो शाम होने की राह देखने लगा। जेसे थोड़ा अंधेरा हुवा वह अपने घर में पड़ा सब चोरी का माल एक प्लास्टिक की थेली में डालकर, चुपचाप गाँव के बहार जाने लगा। वह बेहद सतर्क था की कोई उसे देख न ले। गाँव के रास्ते उसे अचानक ऐसा लगा की उसके आगे चल रहा इंसान अचानक रुक गया है, ओर अब वापिस मूडकर अपने पास ही आ रहा है, उसे कुछ में नही आया, वो बेहद डर गया ओर एक पेड़ की आड में छिप गया। कुछ देर के बाद वो आदमी लोट गया। तब उस चोर ने पेड़ पे नजर डाली वो आम का पेड़ था। उसे आम खाने की इच्छा हुई। उसने एक पत्थर उठाके पेड़ पर मारा। पर आम बहुत दूर थे। उसने पेड़ की एक डाळी पकड़ के उसे हिला के देखा शायद आम गिरे! पर व्यर्थ अब उसने लालच छोड़ वापिस अपने काम पर ध्यान देना योग्य समझा। आखिरकार वह अपनी मंजील गाँव के बहार आये कुवे के पास पहुच गया। कुवे में उसने वह पोटली डाल दि। उसे किसी ने नही देखा था, कल जब सरपंच घर की तलाशी लेगा तो उसे उसके घर कुछ नही मिलने वाला था, बाद में मामला शांत होते ही वो कुवे में से थेली निकाल लेगा, उसे अब चोर साबित करना मुश्कील था! इस बात से खुश होकर वो खुशी के मारे जोर से चील्लाया “बच गया रे… बच गया…” ओर वहा से तुरंत लोट गया।

*****

काश! मांगीलाल ने थोडी हिम्मत कर उस वखत मूडकर देखा होता तो! कुवे के पास का चोर धनीराम उसे दिखाई दिया होता ओर बहुत कुछ बच जाता। गांव जुठे अंधविश्वास से बच जाता। ओर हर साल बली के नाम पर कटने वाले मुर्गे भी! सही है न।

~ प्रशांत सुभाषचंद्र साळूंके

About Prashant Subhashchandra Salunke

कथाकार / कवी प्रशांत सुभाषचंद्र साळूंके का जन्म गुजरात के वडोदरा शहर में तारीख २९/०९/१९७९ को हुवा. वडोदरा के महाराजा सर सयाजीराव युनिवर्सिटी से स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण की. अभी ये वडोदरा के वॉर्ड २२ में भाजपा के अध्यक्ष है, इन्होने सोश्यल मिडिया पे क्रमश कहानी लिखने की एक अनोखी शुरुवात की.. सोश्यल मिडिया पे इनकी क्रमश कहानीयो में सुदामा, कातील हुं में?, कातील हुं में दुबारा?, सुदामा रिटर्न, हवेली, लाचार मां बाप, फिरसे हवेली मे, जन्मदिन, अहेसास, साया, पुण्यशाली, सोच ओर William seabrook के जीवन से प्रेरित कहानी “एक था लेखक” काफी चर्चित रही है. इसके अलवा बहोत सी छोटी छोटी प्रेरणादायी कहानीया भी इन्होने सोश्यलमिडिया पे लिखी है, वडोदरा के कुछ भुले बिसरे जगहो की रूबरू मुलाकात ले कर उसकी रिपोर्ट भी इन्होने सोश्यल मिडिया पे रखी थी, जब ये ६ठी कक्षा में थे तब इनकी कहानी चंपक में प्रकाशित हुई थी, इनकी कहानी “सब पे दया भाव रखो” वडोदरा के एक mk advertisement ने अपनी प्रथम आवृती में प्रकाशित की थी, उसके बाद सुरत के साप्ताहिक वर्तमानपत्र जागृती अभियान में इनकी प्रेरणादायी कहानिया हार्ट्स बिट्स नामक कोलम में प्रकाशित होनी शुरू हुई, वडोदरा के आजाद समाचार में इनकी कहानी हर बुधवार को प्रकाशित होती है, वडोदरा के क्राईम डिविजन मासिक में क्राईम आधारित कहानिया प्रकाशित होती है, 4to40.com पे उनकी अब तक प्रकाशित कहानिया बेटी का भाग्य, सेवा परमो धर्म, आजादी, अफसोस, चमत्कार ऐसे नही होते ओर मेरी लुसी है. लेखन के अलावा ये "आम्ही नाट्य मंच वडोदरा" से भी जुडे है, जिसमें "ते हुं नथी" तथा "नट सम्राट" जेसे नाटको में भी काम किया है, इनका कहेना है "जेसे शिल्पी पत्थर में मूर्ती तलाशता है, वैसे ही एक लेखक अपनी आसपास होने वाली घटनाओ में कहानी तलाशता है", इनका इमेल आईडी है prashbjp22@gmail.com, आप फेसबुक पे भी इनसे जुड सकते है.

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20 comments

  1. nainesh kanasara

    amazing story… I am speech less

  2. nainesh kanasara

    It is masterpieace good one

  3. Really amazing. .. good story plot

  4. This story give very nice message

  5. What a great story!

  6. Really very nice story

  7. मेने इन लेखक की सभी कहानिया पढ़ी है बेटी का भाग्य, सेवा परमो धर्म, आजादी, अफसोस, चमत्कार ऐसे नही होते ओर मेरी लुसी सभी बढ़िया है। ओर आज की यह कहानी तो सभी कहानियो से जबरदस्त है। इनकी कहानियो का इंतजार रहता है। धन्यवाद 4to40.com

  8. वाकई मे बढिया कहानी

  9. very nice story

  10. nice never believes in superstition

  11. Awwww That’s a lovely story…

    Youth must like it atleast each person of our country has to read…

  12. Hey You’r God gifted. Such a realistic story. I like to read this kinda stories.. Thanks to 4to40.com

  13. Maja Aa Gaya – Ek dum mast kahani.

  14. Amazing story

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  17. Two different story but at last line open all secret what a amazing story…

  18. Very Nice story

  19. End is amazing

  20. At last line makes the story clear… What a story plot… Amazing writing skills…