जब ब्राह्मण रो – रोकर प्रार्थना कर रहा था, तभी वहां देवी दुर्गा और भगवान शिव अपने भक्तजनों का कुशलक्षेम जानने के लिए विचरण कर रहे थे। देवी ने ब्राह्मण के रोने की आवाज सुनी और भगवान शिव को उसका पूरा हाल सुना डाला। “हे कैलाशपति! कृपा करके इस ब्राह्मण को एक ऐसी हांडी दीजिए जिसमें मुड़की (खील का चावल) का अक्षुण्ण भंडार हो।”
भगवान शिव ने तुरंत ही एक हांडी भगवान के सामने धर दी। देवी ने ब्राह्मण को बुलाया और उसे वरदान देती हुई बोली, “हे ब्राह्मण! तुम्हारी आराधना से मै प्रसन्न हुई। यह हांडी लो, जब भी तुम्हे अन्न की आवश्यकता हो, इसे उल्टा करके हिलाना। जब तक तुम इसे फिर से सीधा नही कर दोगे, इसमें से स्वादिष्ट मुड़की गिरती रहेगी। इससे तुम अपने परिवार का पोषण भी कर सकोगे और जीविकोपार्जन के लिए बेच भी सकोगे।”
आन्दातिरेक में ब्राह्मण ने देवी को प्रणाम किया और अपने परिवार को यह वरदान दिखाने घर की ओर भागा। सभी वह कुछ ही दूर पहुंचा था कि उसके मन में सवाल आया कि हांडी सचमुच अपना काम करेगी भी या नही। उसने हांडी को उलटा किया तो क्या देखता है! हांडी से बहुत बढ़िया मुड़की निकल रही है! मुड़की को गमछे में बांधकर वह आगे निकल पड़ा।
दोपहर हो चली थी और ब्राह्मण के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। पर उसने न तो स्नान किया था, न ही पूजा – अर्चना ही कि थी। उस पर, पोटली में बंधी मुड़की उसकी भूख को और भड़का रही थी। पास में ही एक सराय थी। ब्राह्मण अंदर गया और सराय के स्वामी से हांडी संभालकर रखे रहने के लिए बोला। ततपश्चात, वह नहाने चला गया।
अब सराय वाला सोचने लगा कि आखिर इस साधारण – सी हांडी के लिए ब्राह्मण इतना चिंतित क्यों है। उसके पास कई तरह के ग्राहक आए थे लेकिन किसी ने भी इस तरह हांडी को संभालकर रखने की फरमाइश नही की थी।
वह हांडी को उल्ट – पलटकर देखने लगा पर उसे खाली पाकर सराय वाला बहुत निराश हुआ। लेकिन जैसे ही उसने हांडीं को उलटा करके हिलाया, उसमें से बहुत – सी मुदकी गिरने लगी। उसने अपनी पत्नी और तीनों बच्चों को झट से बुलाया और पलक झपकते ही सराय के सब बर्तन और मर्तबान मुदकी से भर गए। अब तो सरायवाले के दिल में खोट आ गया। उसने सोचा, क्यों न वह जादुई हांडी उसकी हो जाए। फिर उसने दिव्य हांडी के स्थान पर बिल्कुल वैसे ही, पर साधारण हांडी रख दी।
इस बीच ब्राह्मण अपने नित्यकर्म और पूजा – पाठ से निवृत्त हो गया। उसने अपने गमछे में से नर्म – नर्म मुदकी निकाली और आनदपूर्वक खाने लगा। उसके पश्चात सराय वाले से वह बदली हुई हांडी लेकर ख़ुशी – ख़ुशी अपने घर की ओर चल पड़ा।
पर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी और बच्चों को माँ दुर्गा के वरदान के बारे में बताया पर किसी को भी उसकी बात पर विशवास नही हुआ। उन्हें लगा कि गरीबी और भूख से ब्राह्मण का दिमाग फिर गया है। और जब हांडी में से मुदकी का एक भी दाना नही निकला तो उनका संशय सच में बदल गया।
ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ। सराय में मालिक की चाल उसकी समझ में आ गई। वह उलटे पैर सराय पहुंचा पर सराय वाला बात से अनजान होने का नाटक करने लगा और उसने ब्राह्मण को वहां से भगा दिया।
ब्राह्मण फिर से जंगल पहुंचा और दुर्गा मैया से प्रार्थना करने लगा। “हे माँ! तेरा दिया हुआ प्रसाद चोरी हो गया है। तेरा भक्त लूट गया, माँ। मेरी सहायता कर।”
माँ दुर्गा और भगवान शिव ने फिर से ब्राह्मण पर कृपा की। उसे एक और हांडी देते हुए बोले, ” जाओ वत्स! इस हांडी का सदुपयोग करना और इसे संभालकर रखना।”
ब्राह्मण घर की ओर चल पड़ा, पर बीच रस्ते में ही रुक गया, यह देखने कि इस बार हांडी में से क्या निकलेगा। उसने हांडी को उलटा किया। पर इस बार उसमें से भोजन की जगह भयानक दिखने वाला राक्षस निकलकर उसे पीटने लगे।
अचंभित ब्राह्मण को देवी के इस वरदान का अर्थ समझ में आ गया और हांडी को सीधा करके, वह एक बार फिर सराय जा पहुंचा।
सराय वाला ब्राह्मण को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। ब्राह्मण ने फिर से उसे अपनी हांडी सौंपी और उसे ध्यानपूर्वक रखनें के लिए बोला। इतना कहकर ब्राह्मण नहाने चला गया। ब्राह्मण के जाते ही सराय वाले ने अपने परिवार को बुलाया।
सबने मिलकर हांडी को उलटा किया। उन्हें आशा थी कि इस बार तो मिठाई निकलेगी। लेकिन जब मिठाई की जगह भयंकर राक्षसों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया तो उनकी सारी ख़ुशी हवा हो गई।
ब्राह्मण निवृत्त होकर जैसे ही वापस आया, सराय के मालिक ने उसके पैर पकड़ लिए और क्षमा – याचना करने लगा। ब्राह्मण ने अपनी दिव्य हांडी वापस मांगी और इस दूसरी हांडी को सीधा करके राक्षसों से मुक्ति दिलाई।
प्रसन्नचित्त ब्राह्मण दो – दो हांडियां लेकर घर पहुंचा। ख़ुशी – ख़ुशी उसने दोंनो हांडियां अपने परिवार को दिखाई। उसके बाद सबने मजेदार मुदकी से अपनी भूख शांत की।
अगले दिन ब्राह्मण ने मुदकी की दूकान शुरु कर दी। देखते ही देखते उस दूकान के चर्चे दूर – दूर तक होने लगे। उसने अपने लिए एक पक्का घर भी बना लिया। आखिरकार, गरीबी और फाकों के दिन समाप्त हो गए।
पर कहते है न, कि समय बदलते देर नही लगती। ब्राह्मण के भी समाप्त हो गए थे। पहली बार तो वह बच गया क्योंकि एक वक्त पर घर लौट आया था। हुआ कुछ यूं कि उसके बच्चों ने गलती से दूसरी हांडी को उलटा कर दिया।
जब वह घर पहुंचा तो राक्षस धड़ल्ले से बच्चों कि धुलाई कर रहे थे। उसने लपककर हांडी को सीधा किया और उसे संभालकर रख दिया।
पर दूसरी बार, उसके आने में देर हो गई। छीना – झपटी में बच्चों के हाथ से वह दिव्य हांडी छूटकर टुकड़े – टुकड़े हो गई।
एक बार फिर बड़े ही भारी मन से ब्राह्मण ने माँ दुर्गा और भगवान शिव को स्मरण किया। दोनों ब्राह्मण के समक्ष प्रकट हुए और उसकी दुखभरी कहानी सुनकर उसे एक और हांडी दे डाली। “इसके बाद और कोई हांडी नही,” दोनों ने ब्राह्मण को आग्रह कर दिया।
ब्राह्मण ने उन्हें प्रणाम किया और घर भागा। घर पहुंचकर अपनी पत्नी और बच्चों के सामने उस नई हांडी को उलटा किया। और इस बार मुदकी कि जगह हांडी में से संदेशों कि बरसात होने लगी। गोल – गोल चाँद के टुकड़े जैसी सन्देश मिठाई देखकर ब्राह्मण के परिवार के मुह में पानी आ गया। उनकी ख़ुशी का पारावार न था।
ब्राह्मण ने मिठाई कि दूकान खोल ली और उसके स्वादिष्ट संदेशों की खबर आग की तरह फ़ैल गई। उसके और आसपास के सभी गाँवों में शादी – विवाह का कोई भी सुअवसर उसकी दूकान की मिठाइयों के बिना अधूरा रहता।
ब्राह्मण की दिन – दुगुनी उन्नति से गाँव के जमींदार को ईर्ष्या हुई। उसने भी उस चमत्कारी हांडी के बारे में बहुत सुना था। मन ही मन उसने तय कर किया कि उस हांडी को वह कसी भी तरह हासिल करेगा।
जमींदार के बेटे की शादी जल्दी ही होने वाली थी। इस अवसर पर उसने कई लोगों को आमंत्रित किया और ब्राह्मण से भी कहा कि वह अपने साथ अपनी हांडी लेता आए, जिससे महमानों कि खातिरदारी मजेदार संदेशों से की जा सके।
ब्राह्मण को जमींदार की नीयत पर शक तो हुआ पर उसे मना करना भी मुश्किल था। आखिर वह जमींदार था। जैसे ही ब्राह्मण की हांडी से सन्देश के हजार टुकड़े निकले, जमींदार ने उसके हाथ से हांडी छीन ली। उसने ब्राह्मण को खूब बुरा – भला कहा और उसे वहां से भगा दिया।
ब्राह्मण कुछ न कर सका और बेचारा चुपचाप घर लौट आया। उसकी अक्ल काम ही नही कर रही थी। जैसे ही उसने माँ दुर्गा का स्मरण किया, उसे दूसरी हांडी की भी याद हो आई।
कांपते हाथों से उसने हांडी निकाली और विवाह मैं लौट आया। वहां पहुंचकर उसने हांडी उलट दी। हांडी उलटते ही उससे राक्षसों की बारिश होने लगी जो जमींदार और उसके चेले – चपाटों को मारने के लिए दौड़ पड़े। राक्षसों ने जमींदार को दौड़ा – दौड़कर छटी का दूध याद दिल दिया।
थक – हारकर वह ब्राह्मण से क्षमा मांगने लगा और फिर उसकी हांडी भी लौटा दी।
उसके बाद, ब्राह्मण अपने परिवार के साथ प्रसन्नतापूर्वक दिन बिताने लगा।