महात्मा ने कहा, “मैं आत्मा से परमात्मा बनने की साधना कर रहा हूँ।”
राजा ने पूछा, “यह साधना कब से चल रही है?”
महात्मा बोले, “पचास वर्षों से।”
राजा ने चकित होकर पूछा, “तो यह साधना कब पूरी होगी?”
महात्मा कहा, “मेरे गुरु ने मुझे एक डंडा दिया है। जब साधना पूरी हो जाएगी, इसमें हरी कोंपले आ जाएंगी।”
यह सुन राजा ने पूछा, “क्या डंडे में अभी तक कोई परिवर्तन हुआ?”
महात्मा ने उल्लास से कहा, “हाँ, अभी इसमें एक अंकुर फूटा है।”
राजा को बहुत कौतूहल हुआ। उसने कहा, “महात्मन! क्या मैं भी यह साधना कर सकता हूँ।”
महात्मा ने कहा, “हाँ! लेकिन गुरु का डंडा तो तुम्हारे पास है नहीं। ऐसा करो उसकी जगह अपना कोई हथियार जमी में गाड़ दो, साधना पूरी होने पर उसी में कोंपले आ जायेंगी।”
राजा ने एक कुटिया बनाई और तपस्या के लिए बैठ गया। कई महीने बाद संयोग से एक रात जंगल में भयंकर तूफ़ान आया। मदद की आशा से तूफान में भटका कोई यात्री अपने परिवार के साथ महात्मा की कुटिया पर पहुंचा और द्वार खटखटाया महात्मा बाहार आकर बड़े नाराज हुए, “तुम कितने स्वार्थी हो, रास्ता पूछने के लिए मेरा ध्यान भंग कर दिया। जाओ, जिंदगी भर भटकते रहो।”
दुखी मन से यात्री आगे बढ़ा तो दूसरी कुटिया दिखाई पड़ी, जो राजा की थी। उसने वह द्वार भी खटखटाया।
राजा ने सोचा की इस बार यात्री की मदद ज़रूरी है, साधना तो बाद में भी कर लूंगा। राजा ने उस परिवार को शरण दी और तूफान थमने पर सही रास्ते तक पंहुचा आया।
सुबह जब वह वापस कुटिया पहुंचा तो यह देख उसे बहुत ताज्जुब हुआ कि उसके हतियार में कोंपले फूट गयी हैं।
उसने सोचा, शायद रात को तूफान ने यह चमत्कार किया हो, यह बताने के लिए वह जल्दी महात्मा की कुटिया में गया, पर महात्मा के डंडे में पहले जो एक अंकुर था, वह भी मुरझा गया था।
सबक – जरूरतमंद की मदद करने से बड़ी कोई साधना नहीं है।
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