संकट ग्रस्त जहाज को बचानेवाला दयालु बालक

कई वर्ष हुए, जाड़े के दिनों में समुंद्र के किनारे एक गाँव में शोर हुआ कि ‘एक जहाज थोड़ी दूर पर कीचड़ मे फँस गया है और उस पर बैठे हुए लोग बड़े संकट में हैं।’ इस बात को सुनते ही चारों ओर से लोग एकत्र होने लगे और चिन्ता करने लगे। उस समय वहाँ एक भी नाव न थी, जिससे उनको उतारा जा सके। तीन दिनों तक इस प्रकार सब लोग खाये-पीये बिना समुंद्र में फँस रहे। पानी बहुत गहरा होने के कारण कोई तैर करके भी वहाँ नही जा सकता था। बहुत लोग दया प्रकट करने लगे; पर किसी का साहस न हुआ कि उनको बचावे। इतने में एक विधार्थी वहाँ आया। जहाज के आदमियों पर उसको बड़ी दया आयी। वह बहुत बलवान न था; परंतु था बड़ा साहसी। इसीलिये तुरंत बोल उठा- ‘मै उनको बचाने के लिये जाता हूँ।’ इतना कहकर उसने एक आदमी से रस्सा लेकर उसकी छोर को अपनी कमर में बाँधा और वह समुंद्र में कूद पड़ा। सब लोग उसकी हिम्मत देखकर आश्चर्य करने लगे और उसकी सफलता के लिए ईश्वर से प्राथर्ना करने लगे।

संकट ग्रस्त जहाज को बचानेवाला दयालु बालक

वह विधार्थी बड़ी कठिनता से समुंद्र में तैरने लगा। उसके मन में यह विश्वास था की मैं जाकर संकट में पड़े लोगो को बचा लूँगा। गहरे पानी में लम्बी दूर तक तैरना कठिन काम है। दूसरे लोग जो यह सब कुछ देख रहे थे, उनके शरीर उसकी अपेक्षा बहुत मजबूत होने पर भी वे तैरने से डरते थे। वह विधार्थी दया के आवेश में कष्ट उठाकर भी जहाज के पास पहुँच गया। उसने दाँतों में चाकू पकड़ रखा था, उससे कमर की रस्सी काट डाली। किनारे पर खड़े हुए उसके मित्र ने वह रस्सा पकड़ रखा था; ताकि यदि वह तैर न सके तो उसको वापस खीच लिया जाय। उसके बाद जहाज में से एक आदमी को साथ लेकर वह तैरता हुआ किनारे पर लौट आया। उसके बाद दूसरी बार गया और फिर दूसरी बार एक आदमी को साथ लेकर आया। इस प्रकार छः बार जाकर उसने छः आदमियो के प्राण बचाये। अब वह खूब थक गया था, फिर सांतवी बार जाकर उसने एक दुर्बल लड़के को लाने का प्रयत्न किया। लड़का दुर्बल होने के कारण ठीक न तैर सका और डूब गया। तब उसने डूबकी मारकर उसे ऊपर निकाला। इस प्रकार दो बार उसने डुबकी मारकर उसे ऊपर निकाला। अन्त में बड़ी कठिनता से उसको भी किनारे ले आया। किनारे पर के आदमियो ने प्रत्येक बार उँचे स्वर से उसको शाबाशी दी और अन्तिम बार तो उसको खूब शाबाशी दी।

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