गुरु ने पहले तो उसे समझाना चाहा लेकिन जब वह अपने गुमान में अड़ा ही रहा तो बोकोशु ने चुनौती स्वीकार ली। युवक ने स्पर्धा शुरू होते ही लक्ष्य के बीचों-बीच निशाना लगाया और पहले ही तीर में बेध दिया। गुरु को अवाक देखकर वह दंभपूर्ण स्वर में बोला, “क्या आप इससे बेहतर कर सकते हैं?”
जेन गुरु तनिक मुस्कराए और उसे लेकर एक खाई के पास गए। वहां दो पहाड़ियों के बीच लकड़ी का एक कामचलाऊ पुल बना था। पहला कदम ही रखा था कि पुल से चरमराने की आवआवाज आई। युवक ठिठक गया।
बोकोशु आगे निकल गए और उस युवक से अपने पीछे उसी पुल पर आने के लिए कहा। जेन गुरु उसे लेकर पुल के बीचों-बीच पहुंचे और दूर एक पेड़ के तने पर निशाना लगाया। इसके बाद उन्होंने युवक से कहा, “अब तुम भी निशाना लगाओ।”
युवक डगमगाते कदम आगे बढ़ाते हुए पुल के बिच में पहुंचा और निशाना लगाया लेकिन तीर लक्ष्य के आसपास भी नहीं पहुंचा। दूसरी बार फिर कोशिश की फिर वही हाल। युवक निराश हो गया और उसने हार स्वीकार कर ली।
जेन गुरु ने उसे निराशा में डूबा देखकर कहा, “वत्स, तुमने तीर-धनुष पर तो नियंत्रण पा लिया उस मन पर तुम्हारा अब भी नियंत्रण नहीं है जो किसी भी स्थिति में लक्ष्य भेदने के लिए जरूरी है।” युवक ने पूछा, “ऐसा क्यों है?”
बोकोशु ने कहा, “क्योंकि तुम जब तक सीख रहे थे तुम्हारे कौशल का निखार था पर मन पर काबू न रख सके। नतीजा सामने है।”
~ अग्निमित्र
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