रोशन को काफी देरी हो गई थी। वो जल्दी से जल्दी ओफ्फिस में पहुचना चाहता था। उसके पीछे की सिट पे बैठे मुकेश ने उसे दो तिन बार टोका भी “रोशन धीरे से चला हमें ओफ्फिस जाना है, उपर नहीं!”
पर रोशन मानने वालो में से कहा था। उसने और स्पीड बढ़ा दी। सामने एक मोड़ आ रहा था। वहा गाड़ी उसने थोड़ी धीमी की और फटाक से टर्न मार दिया। सामने ही एक बूढी ओरत बाजार से कुछ सामान ले कर घर जा रही थी। रोशन को संभलने का वख्त न मिला, उसने जोर से ब्रेक मारी पर चर…र..र की आवाज से गाडी उस बूढी ओरत से जा टकराई। उसके सामान की थेली उसके हाथ से छटक गई। उसमे से उसने खरीदे हुवे आलू, टमाटर… सडक पे तितर बितर हो कर गिर पड़े…. बूढी आह की आवाज से वही ढल पड़ी, मुकेश बाइक से उतर पड़ा पर रोशन गाडी समेत आगे जाकर गिर पड़ा। आसपास कोई नहीं था, रोशन चाहता तो वो वहा से आराम से भाग सकता था। रोशन ने एक नजर बूढी पे मारी, और उसके मन में विचार आया “अरे रे ये मेने क्या किया?” वह तुरंत उठ कर खड़ा हुवा। उसने बूढी ओरत को उठाया और पूछा “माजी ठीक तो हो न?”
उस बूढी ओरत ने धीरे से कहा “पानी”
रोशन “तुरंत दोड कर एक ठेलेवाले के पास गया, उसके पास से पानी ले वह उस माजी के पास आया और उसे पानी पिलाया, कंधे से पकडकर उसे उठाया। फिर से रोशन ने पूछा “माजी तुम ठीक तो हो न?”
माजी ने रस्ते पे पड़े सामान की और देखा। रोशन समज गया उसने सडक पर गिरी सब्जियोंको इक्कठा कर थेली में भरकर माजी को दिया। माजी ठीकठाक थी। उसे कुछ नहीं हुवा था। फिर भी रोशन ने रिक्षा को बुलाया। एक दो प्रयत्न के बाद एक रिक्षा रुकी रोशन ने माजी को उसमे बिठाया। माजी का एड्रेस उनसे पूछ रिक्षा वाले को बताया उसे पैसे दिए और माजी को घर तक छोड़ने को कहा। रिक्षा में बैठ माजी जाने लगी रोशन ने ख़ुशी खुशी हाथ हिलाके उन्हें बाय किया। माजी ने भी सामने से हंसकर प्रतिसाद दिया।
अब रोशन मुडा और अपने दोस्त मुकेश के पास गया। मुकेश उसे अचरज से देख रहा था। रोशन ने उसे पूछा “क्या हुवा बे? घुर क्या रहा है?
मुकेश ने कापती आवाज से कहा “रोशन तुम्हारा पैर!!”
रोशन को पहलीबार पीड़ा हुई उसने अपने पाँव की और देखा वो बुरी तरह छिल गया था। और उसमे से खून बह रहा था। सडक पर भी खून था। उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया।
Nice story
स्वामी विवेकानंदजी के मेसेज को बहुत अच्छी तरीके से कहानी मे लिया है
Nice one…. nice story.. I like it