Shamlal Nai - Indian Folktale

शामलाल नाई

शामलाल बेहद संत स्वभाव और धार्मिक वृत्ति का व्यक्ति था। पेशे से वह नाई था। सामाजिक व्यवस्था में तब नाई छोटी जाति के माने जानते थे। शामलाल मानता था कि नीची जाति में जन्म होना, लोगों के पूर्व जन्म में किए गए दुष्कर्मों का फल है। और यह भी कि जैसे पारसमणि के छूते ही लोहा भी सोना हो जाता है, वौसे ही ईश्वर की आराधना सांसारिक कष्ट में मुक्ति पाने का एकमात्र साधन है और यही बात थी कि शामलाल अपना अधिकाधिक समय पूजा – अर्चना में ही बिताता था।

उसके घर में भगवान कृष्ण की एक बड़ी ही मनोरम मूर्ती थी। रोज सुबह स्नान आदि के पश्चात, शामलाल बड़ी श्रद्धा के साथ उस मूर्ती की पूजा करता और उसके बाद ही अपना काम – धंधा शुरू करता था।

एक बार बादशाह ने शामलाल को बुलाने के लिए अपना नौकर भेजा। शामलाल उस समय अपनी पूजा – पाठ में एकदम तल्लीन था। उसने अपनी पत्नी से कहलवा दिया कि वह घर पर नही हैं। नौकर चार बार उसके घर गया और हर बार शामलाल कि पत्नी ने उसे यही जवाब दिया।

शामलाल का एक पड़ोसी था – कुटिल स्वभाव का। उसे शामलाल फूटी आँख नही भाता था। उसने बादशाह को जाकर बताया कि जब – जब शाही नौकर उसे सन्देश देने गया, हर बार शामलाल घर पर ही बैठा पूजा – पाठ कर रहा था। घमंडी बादशाह गुस्से से लाल हो गया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे शामलाल को पकड़कर नदी में फेंक दें।

पर इससे पहले कि आदेश का पालन हो, भगवान कृष्ण अपने भक्त की रक्षा करने स्वयं ही या पहुंचे। उन्होंने शामलाल का रूप धारण किया और जा पहुंचे बादशाह के पास नाई का सामान लेकर। बादशाह के सामने हाजिर हो, बढ़े अदब के साथ प्रणाम करके खड़े हो गए।

Shamlal Barber and the king‘शामलाल’ को देखते की बादशाह का गुस्सा हवा हो गया। ‘शामलाल’ ने बादशाह को अपने सामने बिठाया और उसकी हजामत बनानी शुरू कर दी। उसके काम से खुश हिकर बादशाह ने आदेश दिया कि उसकी मालिश संगुधित तेल से की जाए।

बादशाह चंदन की चौकोर किर्सी पर बैठ गया और शामलाल ने उसके शरीर पर तेल लगाना शुरू किया। संगुधित तेल से भरा रत्नजड़ित कटोरा बादशाह के बिलकुल सामने पड़ा था। उसने जब कटोरे में झाँका तो उसकी आँखें फ़टी की फ़टी रह गई। तेल में पीतांबरधारी, मुकुट से सुसज्जित श्यामलाल भगवान कृष्ण की परछाई थी।

आश्चर्यचकित बादशाह ने पीछे मुड़कर देखा तो व्ही ‘शामलाल’ तेल मालिश कर रहा था। उसने फिर कटोरे में झाँका तो परछाई कृष्ण की ही थी।

भगवान के उस चुंधियां देने वाले रूप को देखकर बादशाह अपने होश खो बैठा। शाही नौकर बादशाह की मदद को दौड़े और उसे जैसे – तैसे होश में लाये। बादशाह ने शामलाल से कुछ देर रुकने का आग्रह किया। परन्तु ‘शामलाल’ ने कहा कि वह कुछ देर में लौटेगा। बादशाह ने ‘शामलाल’ को मुट्ठी भर स्वर्ण मुद्राए देकर विदा किया।

शामलाल बने कृष्ण सब शामलाल कर घर पहुंचे। स्वर्ण मुद्राओं को हजामत के सामन वाले थैले में डाला, थैला दीवार पर लगी कील से टांगा और लौट आए।

उसके बाद बादशाह बेचैन रहने लगा और किसी भी काम में उसका मन नही लगता था। उसने अपने नौकरों से शामलाल को लिवा लाने का आदेश दिया।

शाही नौकरों को देखकर शामलाल घबरा गया। उसे लगा कि अब वह बादशाह के केहर से नही बच पाएगा।

अपने सामान का थैला लेकर, शामलाल राजमहल की ओर चल पड़ा। तो क्या देखता है कि स्वयं बादशाह उसका स्वागत करने उसकी ओर चले आ रहे हैं? बादशाह के दरबारी यह नजारा भौचक्के होकर देख रहे थे।

शामलाल के चरणों में गिरकर बादशाह बोला, “आज सुबह तेल के कटोरे में आपके असली रूप के दर्शन हुए। कृपा करके मुझे वह रूप एक बार फिर दिखाइए।”

बादशाह ने तेल का कटोरा मंगवाया ओर शामलाल से उसमें झाँकने को कहा। परन्तु इस बार उसे शामलाल का ही चेहरा दिखाई दिया।

शामलाल यह सब देखकर चकरा गया। कुछ देर बाद जब उसे सारी बात समझ में आई तो वह बेतहाशा रोने लगा। रोते – रोते बोला, “है वैकुंठबिहारी, हे नारायण, मेरे लिए आपको कितना छोटा काम करना पड़ा। आप मेरे लिए नाई क्यों बने?”

यह देखकर बादशाह फिर शामलाल के चरणों में गिर पड़ा और रोमांचित होकर बोला, “मै तुम्हारा आभारी हूँ कि तुम्हारी वजह से मुझे भगवान कृष्ण के दर्शन हुए।”

शामलाल ने अपने थैले में पड़ी स्वर्ण मुद्राएं गरीबों में बाँट दी।

उस दिन के बाद, बादशाह की आँखें खुल गई और उसने अपना शेष जीवन ईश्वर को स्मरण करते हुए व्यतीत किया।

भारत की लोक कथाएं ~ राजेश्वरी प्रसाद चंदोला

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