शिलाद पत्नी दुर्गावती

शिलाद पत्नी दुर्गावती: वीर राजपूत नारी की लोक कथा

शिलाद पत्नी दुर्गावती: ‘हम लोगों ने खुन की नदी बहा दी थी, महाराज!’ खिन्न सैनिक ने कहा। ‘पर महाराज को बहादुरशाह के क्रूर सैनिकों ने बंदी बना लिया।’ सैनिक ने सिर निचा कर लिया।

शिलाद पत्नी दुर्गावती: वीर राजपूत नारी की लोक कथा

‘बहादुरशाह तो हुमायूँ का एक छोटा सरदार है’ राय ने दुर्ग की अधिपति शिलाद के छोटे भाई लक्ष्मण ने रोष के साथ उत्तर दिया। ‘यदि स्वयं हुमायूँ भी आ जाता तो मैं उसका मुकाबला करता। उस नीच ने भैया को गिरफ्तार कर लिया तो मैं तो हूँ। एक राजपूत के भी रहते म्लेच्छ रायसेन-दुर्ग को स्पर्श तक नहीं कर सकता।’

तलवार चलने लगीं। राजपूतों ने लोथ-पर-लोथ गिराना शुरू कर दिया। मुसल्मान गाजर-मुली की तरह कटने लगे। पर वे टिड्डी-दल की भांति बढ़ते ही जा रहे थे। मुट्ठी भर राजपूत समाप्तप्राय हो चले।

‘सहज में ही दुर्ग छोड़ देने पर हम आपके भाई को सकुशल मुक्त कर देंगे और दुर्ग के किसी भी स्त्री-पुरुष को कोई क्षति नहीं पहुँचायेंगे।आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी, अन्यथा युद्ध के लिये हम विवश हैं।’ लक्ष्मण ने बहादुरशाह के पत्र को एक हीं साँस में पढ़ लिया। शिलाद के भाई लक्ष्मण विचार-तरंगों में डूबने-उतराने लगे। भाभी! दुर्ग छोड़कर अभी-अभी मेरे साथ चली चलो। लक्ष्मण घबराहट से कहा ‘यवन दुर्ग में प्रवेश करना ही चाहते हैं।’

‘कायर और निर्लज्ज कहीं का! गरजकर शिलाद की पत्नी दुर्गावती ने कहा – ‘भाई के बंदी होने पर दुर्ग शत्रु को सौंप कर जनानखाने में छिपता है? धिक्कार है तुझे।’ दुर्गावती अपने ही दाँतों अपना होठ कट रही थी। ‘दुर्ग के स्त्री-पुरुषों की प्रतिष्ठा बचाने के लिये मैंने ऐसा किया है, भाभी!’

‘मुँह में कालिख लगाकर मेरे सामने से अभी हट जा, कायर कहीं का!’ शिलाद की पत्नी अपने वंश में नहीं थी। उसकी आँखे जल रही थीं। अत्यन्त घृणा से उसने कहा – ‘राजपूतों में कलंक लगानेवाले तुझ जैसे अधम राजपूत नहीं ही मिलेंगे। तू प्राण बचाकर भाग जा, पर हम तो वीर राजपूत की पत्नी हैं।’

मुसलमानों ने बड़े उत्साह से ‘अल्लाहो अकबर’ का नारा लगाते हुए दुर्ग में प्रवेश किया; पर उन्होंने देखा कि भीतर चारों ओर भयंकर आग लगी हुई है। वह समस्त मुस्लिम सैन्य के बुझाने से भी नहीं बुझ सकती थी। तीन दिनों तक सेना दूर ही पड़ी रही। अन्त में उन्हें वहाँ रख के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिल सका। सब-के-सब शिलाद-पत्नी दुर्गावती मुक्त-कण्ठ से प्रशंसा करने लगे।

सतीत्व-रक्षण का जितना उज्ज्वल और ज्वलन्त उदाहण भारत के इतिहास में मिलता है, वैसे अन्यत्र अत्यन्त दुर्लभ है।

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