सिद्धार्थ कुमार

सिद्धार्थ कुमार: भगवान बुद्ध के बचपन का किस्सा

बुद्ध भगवान का बचपन का नाम सिद्धार्थ कुमार है। महाराज शुद्धोदन ने उनके लिए एक अलग बहुत बड़ा बगीचा लगवा दिया था। उसी बगीचे में वे एक दिन टहल रहे थे। इतने में आकाश से हंस पक्षी चीखता हुआ गिर पड़ा। राजकुमार सिद्धार्थ ने दौड़कर उस पक्षी को लिया। किसी ने हंस को बाण मारा था। वह बाण अब भी हंस के शरीर में चुभा हुआ था। कुमार सिद्धार्थ ने पक्षी के शरीर से बाण निकाला और यह देखने के लिए की शरीर में बाण चुभता है तो कैसा लगता है, उस बाण को अपने दाहिने हाथ से बाहि भुजा में चुभा लिया। बाण चुभते ही राजकुमार के नेत्रों से टप-टप आँसू गिरने लगे। उन्हें अपनी पीड़ा का ध्यान नही था, बेचारे पक्षी को कितनी पीड़ा हो रही होगी, यह सोचकर ही वे रो पड़े थे।

कुमार सिद्धार्थ हंस के घाव धोये, उसके घाव पर पत्तियों का रस निचोड़ा और उसे गोद मे लेकर प्यार से सहलाने लगे। इतने से दूसरे कुमार देवदंत का स्वर सुनयी पड़ा – ‘मेरा हंस यहाँ गिरा है क्या?’

siddharth-kumar-big

राजकुमार देवदंत सिद्धार्थ कुमार के चचेरे भाई थे। वे बड़े कठोर स्वभाव के थे। शिकार करने में उन्हें आनंद आता था। हंस को उन्होंने ही बाण मारा था। सिद्धार्थ कुमार की गोद में हंस को देखकर वे वहाँ दौड़ आये और बोले – ‘यह हंस तो मेरा है। मुझे दे दो।’

सिद्धार्थ बोले – ‘तुमने इसे पाला है?’

देवदंत ने कहा – ‘मैंने इसे बाण मारा है। वह देखो मेरा बाण पड़ा है।’

कुमार सिद्धार्थ बोले – ‘तुमने इसे बाण मारा है? बेचारे निरपराघ पक्षि को तुमने क्यों बाण मारा? बाण चुभने से बड़ी पीड़ा होती है, यह मैंने अपनी भुजा में बाण चुभा कर देखा है, मै हंस तुम्हे नही दूंगा; यह जब अच्छा हो जाएगा, मै इसे उड़ जाने के लिए छोड़ दूंगा।’

कुमार देवदंत इतने सीधे नही थे। वे हंस के लिए झगड़ने लगे। बात महाराज शुद्धोदन के पास गयी। महाराज ने दोनों राजकुमारो की बाते सुनी।

उन्होंने देवदंत पूछा – ‘तुम हंस को मार सकते हो ?’

देवंतने कहा – ‘आप उसे मुझे दीजिये, मै अभी उसे मार देता हूँ।’

महाराज ने पूछा – ‘तुम फिर उसे जीवित भी कर दोगे?’

देवदंत ने कहा – ‘मरा प्राणी कही फिर जीवित होता है?’

महाराज ने कहा – ‘शिकार का यह नियम ठीक है की जो जिस पशु-पक्षि को मारे उस पर उसका अधिकार होता है। यदि हंस मर गया होता तो उस पर तुम्हारा अधिकार होता; लेकिन मरते प्राणी को जो जीवन-दान दे, उसका उस प्राणी पर उससे अधिक अधिकार है, जिसने की उसे मारा हो। सिद्धार्थ ने हंस को मरने से बचाया है। अंतः हंस सिद्धार्थ का है।’

कुमार सिद्धार्थ हंस को ले गये। जब हंस का घाव अच्छा हो गया, तब उसे उन्होंने उड़ा दिया।

आपको “सिद्धार्थ कुमार: भगवान बुद्ध के बचपन का किस्सा” कहानी कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

Check Also

The Christmas Carol of the Birds

Christmas Carol of the Birds: Christmas Folktale

Do you know, when we are having such good times at Christmas, what sweet music …