इस खेल के नियम-कायदे भी कुछ अलग होते हैं। पांच खिलाडियों वाली टीम में चार खिलाड़ी पूरी तरह से दृष्टिहीन होते हैं परंतु गोलकीपर आंशिक रूप से दृष्टिहीन होता है। हालांकि, गोलकीपर को कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है इसलिए दृष्टिहीन फुटबॉल में गोलकीपिंग उतनी भी आसान नहीं है, जितनी कि प्रतीत होती है।
वे गोल से दो कदम से अधिक बाहर नहीं आ सकते हैं। इसके अलावा गोलकीपरों को करीब से लगाए जाने वाले फुटबॉल के तेज शॉट रोकने पड़ते हैं। दृष्टिहीन फुटबॉल भी सामान्य फुटबॉल की तुलना में कहीं ज्यादा सख्त होती है जिससे चोट भी अधिक महसूस होती है।
माना जाता है कि खेलों की वजह से दृष्टिहीनों के मनोबल, सूझबूझ और शारीरिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। फुटबॉल ने दृष्टिहीनों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं और खिलाडियों का जीवन के प्रति नजरिया ही बदल गया है।
ब्राजील, भारत सहित जर्मनी में भी दृष्टिहीन फुटबॉल के खेल को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि, जर्मनी भर में करीब 100 दृष्टिहीन फुटबॉल खिलाड़ी ही हैं। इसकी वजह वहां दृष्टिहीनता दूर करने के लिए उपलब्ध अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं हैं। इनमें से भी सभी शत प्रतिशत दृष्टिहीन नहीं हैं। इनकी दृष्टि क्षमता को कुछ वर्गों में विभाजित किया जाता है जो बी 1 (नेत्रहीन) से लेकर बी 3 (5 प्रतिशत दृष्टि) तक होती है।
अलग-अलग क्षमता वाले दृष्टिहीनों के मध्य समानता लाने के लिए खिलाड़ी आंखों पर पटटी बांधते हैं, साथ ही सुरक्षा के लिए वे सिर पर भी हैड गार्ड पहनते हैं।
एक-दूसरे से टकराने से बेचने के लिए भी कुछ नियमों का पालन किया जाता है। फुटबॉल में से आवाज आती है जिस वजह से खिलाड़ियों को पता चलता रहता है कि उनकी गेंद कहां है परंतु खिलाडियों को पता चलता रहता है कि उनकी गेंद कहां है परंतु खिलाड़ियों को यह नहीं पता होता कि अन्य खिलाड़ी कहां-कहां हैं इसलिए जिस भी खिलाड़ी ने फुटबॉल की ओर बढ़ना होता है वह बोल कर संकेत देता है।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर दृष्टिहीन फुटबॉल में हिस्सा लेने की स्वीकृति केवल बी 1 दृष्टि क्षमता वाले खिलाड़ियों को ही होती है। हालांकि, जर्मनी में होने वाली प्रतियोगिताओं में बी 1 से बी 3 दृष्टि क्षमता वाले खिलाड़ी खेल सकते हैं क्योंकि वहां दृष्टिहीन लोगों की संख्या कम है।