जब भी किसी स्प्रिंटर का ज़िक्र होता है तो उभरकर आती है एक लंबी कद-काठी वाली धावक की छवि, जो ट्रैक पर तेज़ी से दौड़ लगा रही है।
भारत की चार फ़ीट ग्यारह इंच की Sprinter Dutee Chand को देखकर पहली नज़र में कह पाना मुश्किल है कि मौजूदा दौर में वो एशिया की सबसे तेज़ दौड़ने वाली महिला खिलाड़ी हैं।
दुती मुस्कुराते हुए बताती हैं कि साथी खिलाड़ी उन्हें प्यार से ‘Sprint Queen‘ कहते हैं।
वो कहती हैं, “साल 2012 में मैंने एक छोटी कार जीती थी, जिसके बाद दोस्तों ने मुझे नैनो कहना शुरू कर दिया था। पर अब मैं (उम्र में) बड़ी हो गई हूं तो सब दीदी ही बुलाते हैं।”
दुति चंद को कैसे आया एथलीट बनने का ख्याल?
दुति चंद ओडिशा के जाजपुर ज़िले से आती हैं। परिवार में छह बहनें और एक भाई समेत कुल नौ लोग हैं।
पिता कपड़ा बुनने का काम करते थे, ज़ाहिर है एथलीट बनने में उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा।
उनकी बड़ी बहन सरस्वती चंद भी स्टेट लेवल स्प्रिंटर रही हैं, जिन्हें दौड़ता देखकर दुती ने भी एथलीट बनने का निश्चय किया।
वो कहती हैं, “मेरी बहन ने मुझे दौड़ने के लिए प्रेरित किया। पढ़ाई के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। उन्होंने कहा कि अगर स्पोर्ट्स खेलोगी तो स्कूल की चैम्पियन बनोगी। तब तुम्हारी पढ़ाई का खर्च स्कूल देगा। आगे चलकर स्पोर्ट्स कोटा से नौकरी भी मिल जाएगी। इसी को ध्यान में रखकर मैंने दौड़ना शुरू किया।”
दुति चंद के सामने था चुनौतियों का पहाड़
दुती की राह में चुनौतियां तो अभी बस शुरू हुई थीं। दौड़ने के लिए न तो उनके पास जूते थे, न रनिंग ट्रैक और न ही गुर सिखाने के लिए कोई कोच।
उन्हें हर हफ़्ते गांव से दो-तीन दिन के लिए भुवनेश्वर आना पड़ता था, जिसके लिए साधन जुटाना लगभग नामुमकिन था।
दुति चंद को कई रातें रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुज़ारनी पड़ीं।
वो बताती हैं, “शुरुआत में मैं अकेले ही दौड़ती थी। नंगे पाव कभी सड़क पर तो कभी गांव के पास नदी के किनारे। फिर साल 2005 में मेरा सेलेक्शन गवर्मेंट सेक्टर में स्पोर्ट्स होस्टल में हो गया। वहां मुझे पहले कोच चितरंजन महापात्रा मिले। शुरुआती दौर में उन्होंने मुझे तैयार किया।”
कैसी थी पहले मेडल की खुशी?
दुती की मेहनत जल्द रंग लाई। साल 2007 में उन्होंने अपना पहला नेशनल लेवल मेडल जीता। हालांकि इंटरनेशनल मेडल के लिए उन्हें छह साल इंतज़ार करना पड़ा।
साल 2013 में हुई एशियन चैम्पियनशिप में उन्होंने जूनियर खिलाड़ी होते हुए भी सीनियर स्तर पर भाग लिया और ब्रॉन्ज़ जीता।
दुती का पहला इंटरनेशनल इवेंट जूनियर विश्व चैम्पियनशिप था, जिसमें भाग लेने के लिए वो तुर्की गई थीं।
दुती उस अनुभव को याद कर कहती हैं, “मैं बहुत खुश थी। उससे पहले तक हमने अपने गांव में कार तक नहीं देखी थी। लेकिन स्पोर्ट्स की वजह से मुझे इंटरनेशनल फ़्लाइट में बैठने का मौका मिला। ये किसी सपने के सच होने जैसा था”।
मेडल आने के बाद लोगों का नज़रिया बदलने लगा। जो लोग मेडल से पहले उनकी आलोचना करते थे, वही अब उन्हें प्रोत्साहन देने लगे।
हॉर्मोन्स को लेकर विवाद
दुति चंद की सबसे कड़ी परीक्षा अभी बाकी थी। साल 2014 राष्ट्रमंडल खेलों के भारतीय दल से उनका नाम अचानक हटा दिया गया।
भारतीय एथलेटिक्स फेडरेशन के मुताबिक उनके शरीर में पुरुष हॉर्मोन्स की मात्रा ज़्यादा पाई गई , जिसकी वजह से उनके महिला खिलाड़ी के तौर पर हिस्सा लेने पर पाबंदी लगा दी गई।
दुती कहती हैं, “उस वक्त मुझे मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जा रहा था। मीडिया में मेरे बारे में खराब बातें आ रही थीं। मैं चाहकर भी ट्रेनिंग नहीं कर पा रही थी”।
साल 2015 में उन्होंने कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन फ़ॉर स्पोर्ट्स यानी कैस में अपील करने का फ़ैसला किया।
नतीजा दुती के हक में आया और वो मुक़दमा जीत गईं। पर तब तक साल 2016 के रियो ओलंपिक की तैयारियों पर खासा असर पड़ चुका था।
दुती बताती हैं, “रियो की तैयारियों के लिए मेरे पास बस एक साल था। मैंने मेहनत की और रियो के लिए क्वॉलिफाई किया”।
दुती कहती हैं, “मुझे इसके लिए अपना बेस भुवनेश्वर से हैदराबाद बदलना पड़ा क्योंकि साल 2014 में बैन के बाद मुझे कैंपस से निकाल दिया गया था। तब पुलेला गोपीचंद सर ने मुझे अपनी अकैडमी में आकर ट्रेनिंग करने को कहा”।
रियो की चूक से नहीं टूटा हौसला
साल 2016 के रियो ओलंपिक में दुती किसी ओलिंपिक के 100 मीटर इवेंट में हिस्सा लेने वाली तीसरी भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं।
हालांकि उनका सफ़र हीट्स से आगे नहीं बढ़ा। उस वक्त उन्होंने 11.69 सेकेंड्स का समय निकाला।
लेकिन इसके बाद से दुती के प्रदर्शन में लगातार निखार ही आया। साल 2017 की एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उन्होंने 100 मीटर और 4 गुना 100 मीटर रिले में दो ब्रॉन्ज़ मेडल जीते।
साल 2014 एशियन गेम्स में ना खेल पाने की कसर उन्होंने साल 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में पूरी की। तब 11.32 सेकेंड के समय के साथ उन्होंने 100 मीटर का सिल्वर मेडल हासिल किया।
समलैंगिक रिश्ते पर खुलासा
ट्रैक के अंदर खुद को साबित करने के बाद दुती को निजी जीवन के अंदर भी एक लड़ाई लड़नी पड़ी।
साल 2019 में उन्होंने पहली बार ज़ाहिर किया कि वो समलैंगिक रिश्ते में हैं।
इसके बाद उन्हें गांव और परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी।
आज वो अपनी पार्टनर के साथ रह रही हैं। हालांकि media के साथ खास बातचीत में उन्होंने इस संबंध में कुछ भी कहने से मना किया।
इसके अलावा 200 मीटर में भी उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। साल 1986 एशियन गेम्स में पीटी ऊषा के बाद ये भारत का दूसरा एशियाई सिल्वर मेडल था।
नज़र टोक्यो ओलंपिक पर
दुति चंद फिलहाल अपने कोच नागपुरा रमेश की देखरेख में कोचिंग ले रही हैं।
साल 2012 में जब उनकी मुलाक़ात रमेश से हुई थी, तब उनकी 100 मीटर टाइमिंग 12.50 सेकेंड थी। पर आज वो 11.22 सेकेंड का समय निकाल रही हैं।
दुति चंद दस बार खुद का नेशनल रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं। मौजूदा दौर में वो एशिया की नंबर एक 100 मीटर वीमेन स्प्रिंटर हैं।
फिलहाल उनका ध्यान इस साल होने वाले टोक्यो ओलंपिक पर है।
दुती कहती हैं, “टोक्यो में मुझे सबसे कड़ी चुनौती जमैका, अमरीका, ब्राज़ील के एथलीट से मिलेगी। उनके एथलीट ताकत में हमसे काफी आगे है। फिर भी मैं अपनी पूरी जान लगा दूंगी। मैं एशियन गेम्स में मेडल जीत चुकी है। अब मेरा लक्ष्य है कि देश के लिए कॉमनवेल्थ और ओलंपिक दोनों में मेडल हासिल करना”।
खेल के बाद राजनीति पर नज़र
दुती जहां देश के लिए मेडल जीतने का सपना देखती हैं, वहीं उनकी एक ख्वाहिश रिटायरमेंट के बाद राजनीति में कदम रखने की भी है।
दुती कहती हैं, “हम सुबह शाम ट्रैक पर दौड़ते हैं। जब करियर खत्म हो जाएगा तो चाहकर भी किसी ऑफिस में बैठकर काम नहीं कर पाएंगे। इसलिए मैं बच्चों के लिए अकैडमी खोलना चाहती हूं। साथ ही पॉलिटिक्स भी ज्वॉइन करना चाहती हूं जिससे देश की सेवा कर सकूं”।
दुती को साल 2019 में प्रतिष्ठित टाइम मैग्ज़ीन की 100 उभरते हुए सितारों की लिस्ट में भी जगह मिल चुकी है जो अपने-अपने क्षेत्र में अगली पीढ़ी को प्रेरणा दे रहे हैं।