टोक्यो ओलंपिक: ‘केतली पहलवान’ और ‘लकवा-पछाड़’ ऐसे ही नहीं कहे जाते ये खिलाड़ी
भारत के जो पहलवान टोक्यो से मेडल ला सकते हैं, उनकी निजी ज़िंदगी किसी बड़े दंगल से कम संघर्ष भरी नहीं है।
दशकों तक हॉकी के अलावा किसी और खेल में ओलंपिक मेडल के लिए तरसते रहे भारत की हालत पिछले कुछ सालों में बेहतर हुई है।
इस बार भारत के कई खिलाड़ियों से ओलंपिक पदक की उम्मीद लगाई जा रही है। उनमें से हरियाणा के तीन पहलवानों की कहानी काफ़ी दिलचस्प है।
दीपक पूनिया (86 किग्रा, फ़्री स्टाइल)
हरियाणा के झज्जर ज़िले के छारा गांव में एक दूध बेचने वाले परिवार में पैदा हुए दीपक पूनिया ने ओलंपिक तक का सफ़र केवल 7 वर्षों में तय किया है।
उनके पिता सुभाष, 2015 से 2020 तक लगातार हर रोज़ अपने घर से 60 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम में दीपक को घर का दूध, मेवे और फल खुद पहुँचाते रहे हैं। चाहे बारिश हो, गर्मी या सर्दी, ये सिलसिला कभी टूटा नहीं।
उनके परिवार वाले यही चाहते थे कि दीपक को डाइट की कमी की वजह से कोई परेशानी न हो।
दीपक पूनिया को उनके नज़दीकी लोग ‘केतली पहलवान’ भी कहते हैं। इसके पीछे एक मज़ेदार घटना है।
दीपक जब केवल 4 वर्ष के थे तभी उनको यह उपनाम मिल गया था।
हुआ कुछ यूँ था कि गांव के सरपंच ने दीपक को एक केतली में रखा दूध पीने के लिए दिया। दीपक ने एक झटके में सारा दूध पी लिया। फिर सरपंच ने उन्हें एक और केतली दी, दीपक उसे भी गटक गए। फिर एक और, फिर एक और इस तरह वह 5 केतली दूध पी गए।
सभी हैरान रह गए कि इतना छोटा बच्चा इतना अधिक दूध कैसे पी सकता है, बस तभी से सब उनको ‘केतली पहलवान’ बुलाया जाने लगा।
दीपक पुनिया ने कुश्ती की शुरुआत केवल एक अदद नौकरी पाने के लिए की थी, वो बस अपने घर का ख़र्च उठाने के लिए कुछ पैसे कमाना चाहते थे लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और एक-एक करके वे कैडेट (2016) और जूनियर कैटेगरी (2019) में वर्ल्ड चैंपियन बन गए।
2019 में ही नूर-सुल्तान, कज़ाखस्तान में हुई सीनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर उन्होंने ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई किया।
अंशु मलिक और सोनम मलिक
केवल 19 वर्ष की आयु में हरियाणा के निडानी गांव की रहने वाली अंशु और मदीना गांव की रहने वाली सोनम, टोक्यो ओलंपिक के लिए qualify करने वाली भारत के सबसे युवा खिलाड़ियों में हैं।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दोनों ही पहलवानों की टीम के सदस्यों और परिवार वालों ने 2020 ओलंपिक में भाग लेने का target रखा ही नहीं था।
अंशु के पिता धर्मवीर और कोच जगदीश ने यही सोचा था कि 2024 में पेरिस में होने वाले ओलंपिक के लिए उन्हें तैयार किया जाए। यही बात सोनम के प्रशिक्षक अजमेर सिंह भी बताते हैं लेकिन दोनों ही खिलाड़ियों को यही कहा गया था कि आपको टोक्यो के लिए ही qualify करना है।
टोक्यो में अंशु 57 किलो भार वर्ग और सोनम 62 किलो भार वर्ग में भाग लेंगी। ये दोनों ही राष्ट्रीय स्तर पर 60 किलो भार वर्ग की प्रतियोगिता में भाग लेती थीं और कई बार एक-दूसरे से भिड़ भी चुकी हैं।
प्रतिद्वंद्वी होने के कारण उनका आपस में टकराव होता ही रहता था। कभी सोनम विजयी होतीं तो कभी अंशु क्योंकि दोनों ही बेहतरीन पहलवान हैं। तब ये सोचा गया कि अगर ये दोनों एक ही category में खेलती रहीं तो किसी एक का नुक़सान होना तय है, लिहाज़ा दोनों की वज़न category ही बदल दी गई।
सोनम को 62 किलो भार वर्ग में और अंशु को 57 किलो भार वर्ग में रखा गया है। इसका नतीजा ये हुआ कि दोनों ने ही अपने वज़न वर्ग के वरिष्ठ पहलवानों को हरा दिया और ओलंपिक में खेलने की योग्यता पाने में कामयाब हुईं।
अंशु के पिता धर्मवीर बताते हैं कि वे तो केवल अपने बेटे को एक बड़ा पहलवान बनाने का सपना देखते थे और उन्होंने उसे C.B.S.M Sports School Nidani में भर्ती भी करा दिया था।
फिर जब अंशु ने एक दिन अपनी दादी से कहा कि वह भी कुश्ती करेगी और भारत के लिए medal लाएगी। तब धर्मवीर ने अंशु को भी उसी प्रशिक्षण केंद्र में भर्ती करा दिया। तब अंशु सिर्फ़ 12 वर्ष की थीं।
अंशु ने 6 महीने में ही उन पहलवानों को पछाड़ना शुरू कर दिया था जो पिछले 3 – 4 साल से प्रशिक्षण ले रहे थे। इसके बाद सबको मानना पड़ा कि उसमें कुश्ती का भरपूर टैलेंट है।
दूसरी तरफ़, सोनम का सफ़र काफ़ी मुश्किलों भरा रहा है। 2016 में सोनम के दाएँ बाज़ू में लकवा (paralysis) मार गया था।
दरअसल, practice के दौरान उन्हें चोट लग गई थी और धीरे-धीरे चोट ने लकवे का रूप ले लिया था।
Neurologist ने तो यहाँ तक कह दिया था कि वो ज़िंदगी भर कुश्ती नहीं खेल पाएंगी लेकिन सोनम ने चमत्कारिक तरीक़े से रिकवर भी किया और लकवे को पछाड़ते हुए 2017 में कई स्टेट और नेशनल दोनों प्रतियोगिताएँ जीतीं। और अब वो ओलंपिक खेलों में भारत का नेतृत्व करेंगी।