वैश्विक आंकड़ों के अनुसार:
- 80 से 90 प्रतिशत बी.डी.पी. रोगियों ने जीवन में शारीरिक अथवा यौन उत्पीड़न झेला होता है।
- सबसे ज्यादा आत्महत्या के प्रयास 20 के दशक के उम्र वाले करते हैं तथा 30 के दशक की उम्र तक आत्महत्या में मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है।
- हालांकि, आंकड़े दर्शाते हैं कि अधिक महिलाओं में बी.डी.पी. की संख्या ज्यादा है। रिसर्च के अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं ठीक होने के लिए मदद लेती हैं।
बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर के प्रमुख लक्षण:
- वास्तविक अथवा कल्पित अकेलेपन से घबरा जाना जैसे कि किसी प्रियजन के थोड़े से वक्त के लिए भी दूर होते ही अनेक स्वभाव में गुस्सा अथवा असामान्य व्यवहार दिखने लगता है।
- आपसी संबंधों में अस्थिरता दिखाई देना। वे अपने जीवनसाथी को या तो बहुत ही अच्छा या फिर शैतान के रूप में देखती हैं। रिश्तों में उन्हें अच्छाइयों तथा कमियों के संतुलन की समझ नहीं रहती है।
- अपने मन में अपनी छवि को लेकर असंतुलन के चलते अक्सर नौकरी बदलने से लेकर जीवनसाथी, सिद्धांतो, धर्म, यहां तक कि उनकी यौन रुचियों तक में बदलाव चलता रहता है। इसकी वजह है कि उन्हें हमेशा अपनी पहचान की तलाश रहती है।
- खर्च, यौन संबंधों, नशा, लापरवाही से ड्राइविंग, खाने-पीने जैसे कम से कम दो क्षेत्रों में उनमें बिना सोचे-समझे आवेग में या जल्दबाजी में फैसले लेने का स्वभाव दिखाई देता है।
- बार-बार उनमें आत्महत्या का प्रयास, धमकियां देना अथवा स्वयं को नुक्सान पहुंचाने की आदत दिखाई देती है।
- स्वभाव बदलते रहना, जिसकी वजह से वे अपने जीवन से असंतुष्टि, चिड़चिड़ापन या घबराहट महसूस करते हैं। ऐसा कुछ घंटों तक ही रहता है।
- उन्हें हमेशा एक खालीपन महसूस होता रहता है।
- असामान्य, अत्यधिक क्रोध।
- वे दूसरों पर भरोसा नहीं कर पाते हैं। तनाव की हालत में उन्हें शारीर से बाहर तैरने जैसे अजीब अहसास होने की बात भी कह सकते हैं।
बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसॉर्डर के उपचार:
बी.डी.पी. एक मानसिक रोग है और चरित्र में खोट या असंतुलित व्यक्तित्व का मुद्दा नहीं है इसलिए ठीक होने के लिए प्रशिक्षित थैरेपिस्ट से उपचार करवाना आवश्यक है। इसके उपचार के लिए कारगर विधियों में ‘कॉग्रिटीव बिहेवियर थैरेपी’, ‘आई मूवमैंट डिसैंसिटाइजेशन एंड रिप्रोसैसिंग’ (ई.एम.डी.आर.) शामिल हैं।
अक्सर इन थैरेपीज के साथ-साथ रोगी का स्वभाव स्थिर रखने के लिए दवाइयां भी दी जाती हैं। हालांकि, थैरेपी इस रोगी के पूर्ण उपचार का एक हिस्सा भर है, इससे ठीक होने में वक्त, धैर्य तथा खूब मेहनत लगती है।
- ठीक होने की कुछ रणनीतियां शांत करनेवाली किट: रोगियों को अपने पास एक किट रखनी चाहिए जिसमें भावनाओं के अनियंत्रित होते ही तुरंत पंचों इन्द्रियों को शांत करने के लिए चीजें हों। जैसे एक छोटे से जिपलॉक बैग में परफ्यूम, मखमली कपड़ा, मिंट, घंटी रखी जा सकती है।
- ध्यान केंद्रण व्यायाम व गतिविधयां: बी.डी.पी. रोगी में प्रीफ्रंटल कोटैंक्स (दिमाग का वह हिस्सा जो हमें किसी काम पर ध्यान नहीं देने में मदद करता है) सही से काम नहीं करता है। काम पर ध्यान नहीं देने पाने से व्यक्ति बेचैन या क्रोधित हो जाता है। ध्यान केंद्रित करने में मदद करने वाली गतिविधियों तथा व्यायाम करने से राहत मिल सकती है।
- खुद को नुक्सान पहुँचाने से रोकना: खुद को नुक्सान पहुंचाने की इच्छा होने पर कलाई पर रबरबैंड बांधना, हाथों में बर्फ के टुकड़े पकड़ना, लाल मार्क्स से लाइन खींचना ऐसी विधियां हैं जो मददगार हो सकती हैं।
- बेचैनी या क्रोध की स्थिति पर नियंत्रण के तरीके: इसके लिए तापमान में बदलाव करें। चेहरे को ठंडे पानी में डुबोने या आईस पैक लगाने से दिल की धडकन शांत होती है, दिल और दिमाग की ओर रक्त प्रवाह संतुलित होता होता है।कुछ मिनट के लिए जोर लगाने वाला व्यायाम जैसे जॉगिंग भी शरीर को शांत करती है।
सांस लेते हुए मंपेशियों को कसें और छोड़ते हुए ‘शांति’ कहें। कुछ बार ऐसा करने से मन तुरंत शांत हो जाता है।
अध्यात्म: गुरु, मार्गदर्शक या अध्यात्म की शरण लेना इस रोग से ठीक होने में मदद कर सकता है।