इनका ख्याल रखें:
- बार-बार टॉयलैट जाना
- अत्यधिक प्यास लगना
- सामान्य से अधिक थकावट
- वजन का अवांछित ढंग से कम होना
अन्य चेतावनी संकेत:
- रात को उठ कर टॉयलैट का प्रयोग करना
- मुंह का सूखना
- दृष्टि का धुंधला होना
- बार-बार होने वाली इन्फैक्शन
- जननांगों के पास खुजली
- जख्मों का जल्दी ठीक न होना।
टाइप-1 तथा टाइप 2 डायबिटीज
टाइप-1 डायबिटीज बहुत दुर्लभ है और यह जन्मजात होती है। इससे पीड़ित व्यक्ति का शरीर इंसुलिन वह हार्मोन है जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। इसे पैदा करने वाले सैल नष्ट हो जाते हैं। उन्हें इंसुलिन का इंजैक्शन लेना पड़ता है। हालांकि यह आमतौर पर किशोरों में होती है, पर 40 वर्ष की उम्र तक किसी को भी प्रभावित कर सकती है। टाइप- 2 डायबिटीज तब होती है जब शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन पैदा नहीं करता। यह आमतौर पर जीवनशैली से जुड़ी समस्या है जिसका मुख्य कारण मोटापा है। कई लोगों को वर्षों तक इसका एहसास तक नहीं होता है।
प्री-डायबिटीज क्या है?
प्री-डायबिटीज का अर्थ है कि आपका ब्लड शुगर लैवल सामान्य से अधिक हो जाना। यह अभी इतना अधिक भी नहीं होता कि इसे डायबिटीज का नाम दिया जाए परन्तु इसका अर्थ यह है कि आपको इसका खतरा है। यदि डायबिटीज का इलाज न करवाया जाए तो यह शरीर में बड़ी मात्रा में ग्लूकोज छोड़ देती है जिससे आपकी रक्त वाहिनियां, नाड़ियां तथा अंदरूनी अंग नष्ट हो सकते हैं। इसके चलते हृदय रोग, दृष्टि संबंधी समस्याएं तथा नाड़ियों का नष्ट होना जैसी गंभीर समस्याएं होती हैं।
उपचार: इसके उपचार का मुख्य उद्देश्य ब्लड शुगर के लैवल को धीमा रखना है। टाइप-1 के मरीजों को पूरी उम्र इंसुलिन के इंजैक्शन लेने पड़ते हैं। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि नियमित अंतरालों पर खाना खाएं ताकि ब्लड शुगर का लैवल धीमा रखा जा सके। ब्लड शुगर लैवल को नियंत्रण में रखने के लिए दिन भर ब्लड टैस्ट करवाने भी जरूरी हैं। यदि ब्लड शुगर लैवल बहुत अधिक कम हो जाए तो हाइपोग्लाइसिमिया हो सकता है, जिसमें व्यक्ति बेहोश हो सकता है। दूसरी ओर यदि यह बहुत अधिक हो जाए तो डायबैटिक केटोएसिडोसिस होने का खतरा रहता है जिसके चलते एमरजैंसी हास्पिटल ट्रीटमैंट की जरूरत पड़ती है और व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है। चाहे आपको प्री-डायबिटीज हो या पूरी डायबिटीज अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाकर आप हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी फेल्योर तथा दृष्टिहीनता से बच सकते हैं।