न्यूटेलस सेप्टीसीमिया (नवजात में संक्रमण): नवजात शिशुओं में गंभीर बीमारी एवं मृत्यु का एक मुख्य कारण है।
नवजात शिशु में संक्रमण कहाँ से आता है ? संक्रमण अधिकतर माँ से आता है। माँ को बुखार, योनि का संक्रमण, बार – बार असुरक्षित योनि परिक्षण, कुपोषण, इत्यादि से संक्रमण बच्चे में आता है। जन्म पश्चात बच्चे की नाल को असुरक्षित औज़ार से काटना, बिना हाथ साफ़ किये बच्चे को छूना, प्यार करना आदि।
नवजात संक्रमण को कैसे पहचानें?
नवजात संक्रमण की कोई विशिष्टा पहचान नहीं होती। केवल शक की बुनियाद पर कार्य करना होता है।
साधारण चिन्ह:
तापमान काम होना, दूध नहीं पीना, चिड़चिड़ा होना, अधिक रोना, शिथिल पड़ना, सरवास की गति एकदम काम / अधिक होना, दौरे आना, फोड़े – फुंसी होना, नाल का पकना।
संक्रमण की पुख्ता पहचान के लिए नवजात के कुछ रक्त, पेशाब, एक्स-रे एवं रीढ़ की हड्डी से पानी निकाल कर जांच करनी पड़ सकती है।
उपचार:
नवजात में साधारणतः संक्रमण तेज़ी से फैलता है एवं जानलेवा हो सकता है इसलिए उन्हें दवाई इंजेक्शन के रूप में देनी चाहिए। इलाज़ कम से कम 10-21 दिन तक देना पड़ सकता है।
गंभीर लक्षण:
बच्चे का शिथिल पड़ना, दौरे पड़ना, उलटी, पेट फूलना, शरीर में सूजन, चमड़ी का अकड़ना, तापमान काम होना, अधिक बढ़ना।
क्या बीमारी की रोकथाम संभव है?
- जी हाँ रोकथाम संभव है और उपचार की अपेक्षा बचाव ही ज्यादा हितकर है।
- माँ को गर्भावस्था के दौरान उपयुक्त आहार, आराम की आवशयकता है।
- माँ को टेटनैस की सुई गर्भावस्था में दो बार अवश्य लगवाएं। पहली 4-6 माह के बाच और दूसरी पहली के एक माह पश्चात।
- माँ को प्रशिच्छित दाई एवं डॉक्टर को दिखाएँ।
- योनि को स्वच्छ रखें।
- गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनो में संभोग से परहेज करें।
- माँ के संक्रमण का तुरंत उपचार करवाएं।
- नवजात शिशु की सदैव साबुन से हाथ धोकर ही देखभाल करें।
- नियमित स्नान कराएं और स्वच्छ वस्त्र पहनाएं।